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उपेक्षा से उबरा भारत अब उभरती महाशक्ति

Published: Aug 09, 2022 10:25:34 pm

Submitted by:

Patrika Desk

आजादी का अमृत महोत्सव
भारत की विदेश नीति का निश्चयात्मक रुख बन रहा है विश्व भर के विशेषज्ञों में चर्चा का केंद्र

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

स्वर्ण सिंह
विजिटिंग प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलम्बिया और प्रोफेसर, जेएनयू, नई दिल्ली

विविधता से सजी भारतीय सभ्यता और संस्कृति ही है जिसके कारण ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ प्राचीन काल से ही समाज के रोजमर्रा के दृष्टिकोण से लेकर शासकों और विद्वानों के नीति निर्देशन और दर्शन की साझी सोच का मूलमंत्र रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप की इस अद्वितीय धरोहर की अमिट छाप आज भी भारत के विस्तारित पड़ोस में देखी जा सकती है। करीब 19वीं शताब्दी के मध्य तक भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आर्थिक व्यवस्था का केंद्र बना रहा और आज विश्व के ज्यादातर विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि इस शताब्दी के मध्य यानी 2050 तक भारत फिर से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरेगा। यही कारण है कि विश्व अब भारत को एक उभरती हुई महाशक्ति के नजरिए से देखता है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिशा निर्देशन को लेकर योगदान की अपेक्षाओं के चलते भारत की विदेश नीति की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। भारत के भविष्य को लेकर गौरवान्वित होने के साथ इसके इतिहास को खंगालना भी जरूरी है ताकि भारत आने वाली चुनौतियों से सुलझने के लिए विश्व को तत्पर और सक्षम नजर आए।
यूरोपीय ताकतों के उदय के बाद प्राचीन काल से अत्यंत समर्थ रहे भारत के दमन और उपेक्षा की कहानी करीब १०वीं शताब्दी से शुरू होती है। तब तक इस भारतीय उपमहाद्वीप की आर्थिक समृद्धि और सामाजिक उन्नति की फैलती चर्चा दूर-दूर से महत्त्वाकांक्षी शासकों को इस ‘सोने की चिड़िया’ की ओर आकर्षित करने लगी थी। 16वीं शताब्दी के यूरोपीय वणिकवाद से पनपे प्रादेशिक राष्ट्र निर्माण और फिर 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति के चलते इन देशों के वैश्विक स्तर के उपनिवेशवाद ने इनको भारत से प्रभावित होने से ज्यादा उसे प्रभावित करने का सामथ्र्य दिया। पर भारत के अहिंसावादी स्वतंत्रता संग्राम और ब्रितानिया शासकों की विश्व भर में अपने साम्राज्यवाद के अधीन देशों को क्रमिक तरीके से आजादी देने की नीति के चलते स्वतंत्र भारत के संस्थापकों को अपनी मौलिक सभ्यता और संस्कृति को बचाए रखने और विदेश नीति को प्राचीन दर्शन से जोड़े रखने का अवसर मिला। इसमें कुछ विरले भारत-प्रेमी यूरोपीय विद्वानों और प्रशासकों का भी योगदान रहा। उदाहरण के लिए, भारत ब्रितानिया के राष्ट्रमंडल का हिस्सा बना रहा। यही कारण था कि भारत स्वतंत्र होने के पहले से ही विश्व शांति में योगदान देने के लिए समर्पित हो चुका था। विश्व के उपनिवेशों के साम्राज्यवाद के विरोध में हुई 1927 की ब्रसेल्स कॉन्फ्रेंस से लेकर मार्च-अप्रेल 1947 में नई दिल्ली में हुई ‘एशियन रिलेशंस कॉन्फ्रेंस’ तक अपने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के साथ-साथ भारत लगातार विश्वस्तर पर रंगभेद और उपनिवेशवाद से लडऩे में अग्रिम रहा। भारत आजाद होने से पहले ही संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य बन चुका था। भारत शायद इकलौता देश है जिसके संविधान के अनुच्छेद 51 में भारत की आने वाली सरकारों से यह अपेक्षा रखी गई कि वे विश्व शांति के लिए लगातार प्रयत्नशील रहेंगी। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में सैनिकों के लिहाज से भारत का तीसरा सबसे बड़ा योगदान है। न केवल इस मोर्चे पर भारत ने सैकड़ों शहादतें दी हैं, बल्कि कई बार इन शांति सेनाओं का भारत बखूबी नेतृत्व भी कर चुका है।
आज भारत बदलाव के एक दौर से गुजर रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नवंबर में चीन से आगे बढ़कर भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। इस वर्ष के अंत तक ब्रिटेन से आगे बढ़कर भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आज भारत परमाणु अस्त्रों वाली विश्व की बड़ी सैन्यशक्ति भी बन चुका है। इस बदलते परिप्रेक्ष्य में विदेश नीति के उदेश्य, रुझान और रणनीति भी मौलिक रूप से बदल रहे हैं। भारत कम विकसित और विकासशील देशों के हितों के लिए तो लगातार लड़ ही रहा है, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और बड़ी ताकतों से तालमेल भी बढ़ा रहा है। आज विश्व 20वीं सदी के उपनिवेशवाद, शीतयुद्ध और रंगभेद की चुनौतियों से आगे बढ़कर आतंकवाद, विश्वव्यापी महामारी, ऊर्जा व पर्यावरण सुरक्षा जैसी नई चुनौतियों से जूझ रहा है। इसीलिए भारत, जो पंचशील, निर्गुटता, राष्ट्रमंडल के सिद्धांतों और संगठनों में विश्वास रखता है, आज व्यावहारिकता के साथ बहुसंरेखण की नीति अपनाकर अधिक से अधिक परियोजनाओं और राष्ट्रों से जुडऩे की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि सभी बड़ी शक्तियां आज भारत को अपने साथ जोडऩे को तत्पर हैं और भारत विश्व की कई बड़ी समस्याओं में प्रभावी व प्रमुख योगदान दे रहा है। विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमरीका भारत को हिंद-प्रशांत और मध्य एशिया के अपने दोनों ‘क्वाड’ (चतुष्कोणीय समूह) में शामिल करता है तो रूस और चीन से भी भारत ने अच्छा तालमेल बना रखा है।
भारत की बढ़ती हुई साख, दृश्यता और क्षमता के साथ भारतीय विदेश नीति का अपने मूल हितों को लेकर बढ़ता हुआ यह निश्चयात्मक रुख आज विश्व भर के विशेषज्ञों में चर्चा और भविष्यवाणियों का केंद्र बनता जा रहा है।
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