२०१० में भारतीय दल को १०१ तथा मैनचेस्टर में ६९ पदक मिले थे। गोल्ड कोस्ट खेलों में ७१ देशों ने भाग लिया। भारतीय खिलाडिय़ों ने कुल ६६ (२६ स्वर्ण, २० रजत और २० कांस्य) पदक जीते। आखिरी दिन सायना नेहवाल ने भारत की ही पी.वी. संधू को हरा बैडमिंटन एकल का स्वर्ण जीता। भारत के दो एथलीटों को जरूर कमरे में सुई मिलने के कारण खेलों से बाहर होना पड़ा। इस एक घटना को छोड़ भारतीय दल का प्रदर्शन कुल मिलाकर उत्साहवर्धक रहा।
भाला फेंक स्पद्र्धा में पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण हमारी झोली में आया तो पहलवानी, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, टेबल टेनिस, बैडमिंटन में पुरुष ही नहीं महिला खिलाडिय़ों ने भी सफलता की नई इबारत लिखी। ३६ वर्षीय मुक्केबाज और तीन बार विश्व विजेता रहीं मैरीकॉम ने राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार स्वर्ण पदक जीता। भारतीय दल की सफलता से देश में हर खेल प्रेमी को गर्व है। अब सरकार को देखना है कि वह टोक्यो में २०२० में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए अभी से खिलाडिय़ों को हर संभव मदद दे।
खिलाडिय़ों में प्रतिभा की कमी नहीं, लेकिन खेल संगठनों में अधिकारी जमाए बैठे राजनेता और प्रशासनिक अधिकारियों की मनमानी के वे अक्सर शिकार हो जाते हैं। कभी उन्हें विश्वस्तरीय कोच नहीं मिलते तो कभी विदेशी धरती पर अभ्यास का मौका नहीं मिलता। चूंकि खेल मंत्रालय भी ओलम्पिक पदक विजेता राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़ के पास है और प्रधानमंत्री स्वयं घोषणा कर चुके हैं कि खेलों और खिलाडिय़ों के लिए संसाधनों की कमी नहीं होने देंगे, सरकार को खेलों के विकास के लिए खिलाडिय़ों को ही आगे करना चाहिए। ताकि राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता एशियन और फिर ओलम्पिक खेलों में भी हमारे खिलाड़ी दोहरा सकें।