२२ राज्यों में हुए सर्वे में राजस्थान सबसे फिसड्डी रहा तो पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सहित मध्य भारत के प्रमुख राज्यों में भी हालात ठीक नहीं हैं। सबसे बड़ी बात, इंस्पेक्टर या दरोगा जैसे अधिकारियों के रवैये से तो जनता भारी परेशान थी ही, वरिष्ठ अधिकारियों के कामकाज से भी इन राज्यों में अधिसंख्य जनता संतुष्ट नजर नहीं आई। मतलब सीधा है, पुलिस का इकबाल टूट रहा है। क्यों? क्या कारण हो सकते हैं इसके? तीन प्रमुख कारण जो सामने नजर आते हैं, उनमें प्रथम भ्रष्टाचार, दूसरा राजनीतिक दबाव और तीसरा नफरी की कमी।
भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) भी सौ साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी है। वक्त के साथ इसका नहीं बदलना भी एक बड़ा कारण है जनता के भरोसे के टूटने का। कोई भी राज्य हो, पुलिस पर भ्रष्टाचार के मामले सर्वोपरि मिलेंगे। घटना होने पर देर से पहुंचना, पीडि़त को कानूनी झमेलों का डर दिखाना, आरोपित रसूखदार हो तो उसे बचाने के तमाम अनुचित हथकंडे अपनाना, रिश्वत मांगना आदि अनेक मामले प्रतिदिन सुर्खियों में रहते हैं। जिनके कारण आम आदमी, पुलिस के पास जाने से ही घबराता है। किसी पीडि़त की मदद के लिए लोग सामने नहीं आते। उन्हें डर होता है, पुलिस मामलों में फंसा देगी। आखिर जनता में विश्वास पैदा करने, अपराध व अपराधियों को खत्म करने और समाज में सद्भाव बनाए रखने के उद्देश्य से गठित पुलिस बल का ऐसा हाल क्यों हो गया?
सरकारों को इन पर गंभीर चिंतन करना चाहिए। पुलिस से भरोसा उठा तो सामाजिक समरसता ही खत्म हो जाएगी। अराजकता फैल जाएगी। कानून पर धन और बाहुबल हावी हो जाएगा। केन्द्रीय गृह मंत्रालय को सभी राज्यों के गृह विभागों की तत्काल बैठक बुलाकर सर्वे के परिणामों पर विचार कर कारगर कदम उठाने होंगे। नफरी और आधुनिक साजो-सामान, प्रशिक्षण, वेतन, सुविधाओं का आकलन फिर से करना होगा। हालात अभी हाथ से बाहर नहीं हुए हैं। आमजन में सुरक्षा का भाव खत्म हुआ तो फिर हमारे देश और मध्यपूर्व या सीरिया में क्या फर्क रह जाएगा।