छिछले आरोप-प्रत्यारोपों से कलुषित होती राजनीति के दौर में सूखे से लड़ने के लिए महाराष्ट्र के लोगों द्वारा मिले चार सौ करोड़ रूपए के चंदे की खबर सुकून देने वाली है। अच्छी बात ये है कि सूखे से जूझ रहे किसानों की मदद के लिए आगे आने वालों में आम आदमी से लेकर किसान, फिल्मी सितारे और खिलाड़ी सब शामिल हैं। राजनीतिक दलों के बीच कुर्सी की लड़ाई ने पिछले दो-तीन दशकों में वैमनस्यता की दीवार खड़ी कर दी है। राजनेता एक-दूसरे को विरोधी की बजाय दुश्मन मानने लगे हैं। राजनीतिक दलों के शीष्ाü नेताओं में औपचारिक संवाद के सेतु ध्वस्त होते जा रहे हैं। आमजन में भी समाज के लिए कुछ करने का अहसास धूमिल पड़ता जा रहा है। ऎसे दौर में महाराष्ट्र के लोगों ने देश को जो दिशा दिखाई है, वह स्वागत योग्य तो है ही अनुकरण करने लायक भी है। दुनिया के किसी भी देश या राज्य में कोई सरकार कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, आमजन के सहयोग के बिना सफल नहीं हो सकती। किसी भी आपदा से निपटने में सरकारी प्रयासों के बजाय जन सहयोग बड़ी भूमिका निभाता है। गुजरात में डेढ़ दशक पहले आए विनाशकारी भूकंप की कड़वी यादें आज भी डराती हैं लेकिन उस विपत्ति से निपटने के लिए समूचे देश का उठ खड़ा होना सुखद अहसास भी कराता है। महाराष्ट्र पिछले कई सालों से भयंकर सूखे की चपेट में है। अनेक किसान आत्महत्या करने को मजबूर हुए हैं तो लाखों किसानों के सामने जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया है। ऎसे दौर में राज्य के लोगों का उठ खड़ा होना सरकार और किसानों को हौंसला प्रदान करेगा। महाराष्ट्र सरकार के साथ-साथ वहां के राजनीतिक दलों को आम आदमी की इस पहल को और आगे बढ़ाना चाहिए। राजनीतिक दलों का काम हर समय राजनीति करना ही नहीं होना चाहिए। सूखे से जूझ रहे किसानों की मदद के लिए आगे आने वाले लोगों ने राजनीतिक दलों को संदेश दिया है, जिसे उन्हें समझना चाहिए। देश की जनता हर आपदा का सामना करने के लिए तैयार है, ये उसने दिखा दिया है। जरूरत महाराष्ट्र की मुहिम को देश भर में फैलाने की है। राजनीतिक दल राजनीति के साथ-साथ समाज को जोड़ने में सक्रिय भूमिका निभाने लगें तो देश की आधी समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। लेकिन ऎसा करने के लिए तुच्छ स्वार्थो का त्याग तो करना ही होगा, अपने-पराए के भेद को भी छोड़ना होगा।