कश्मीर मामले में अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला भले ही केन्द्रीय सरकार नेे लिया हो, किन्तु यह राजनीति से बहुत ऊपर का फैसला है। सन् 2015 में मैंने तीनों क्षेत्रों का दौरा किया था। सन् 1947 में आए शरणार्थियों को आज भी भारतीय नागरिकता नहीं मिली। मैंने लगभग सभी कश्मीरी पंडि़तों के कैम्प देखे थे। अनुच्छेद 370 तथा 35 ए की चर्चा अपनी पुस्तक ‘जम्मू-कश्मीर; जन्नत का इंतजार’ में विस्तार से की है। समय-समय पर ‘पत्रिका’ के ‘सम्पादकीय’ के माध्यम से अनुच्छेद 370 के विरोध में भी खुलकर लिखता रहा हूं। मेरी दृष्टि में तो यह देश के माथे पर धब्बा ही नहीं, नासूर था। इसके कारण एक ओर साख हमेशा चर्चा में बनी रहती थी, दूसरी ओर पाकिस्तान को आतंकवाद फैलाने का खुलकर मौका मिलता रहा है। अब तो यह उसको बड़ी शिकस्त माननी पड़ेगी।
कश्मीर के लिए कहा जाता रहा है-
‘अगर फिरदौस बर-रुए ज़मी अस्त।
हमीनस्तो, हमीनस्तो, हमीनस्त ॥’
शीघ्र ही देशवासियों को लगेगा कि वास्तव में यदि स्वर्ग कहीं है, तो बस यहीं है। आज एक नए युग की शुरूआत हुई है। आजाद वातावरण, जहां युवा मुक्त पंछी की तरह अपना आसमान ढूंढ सकेंगे। देशवासी यहां बसेंगे, उद्योग-धंधे खुलेंगे, आर्थिक उन्नति भी होगी, अधिकार भी मिलेंगे। पहली बार पंचायतों के खातों में सीधा 35000 करोड़ रुपया पहुंचा। अब तक देश में उपलब्ध कई अधिकारों से वहां के नागरिक वंचित थे। उनका अपना संविधान, झण्ड़ा था। हमारे उच्चतम न्यायालय के फैसले लागू नहीं थे। आरक्षण कानून, शिक्षा एवं सूचना के अधिकार के अतिरिक्त संविधान का अनुच्छेद 73 एवं 74 लागू नहीं था। आर्थिक आपातकाल की अनुच्छेद 360 भी लागू नहीं था। यदि कश्मीर की बेटी किसी गैर-कश्मीरी बेटे से विवाह कर ले तो उसे सम्पत्ति का अधिकार छोडऩा पड़ेगा। जबकि पाकिस्तानी नागरिक को यह छूट थी। दोहरी नागरिकता का प्रावधान भी उपलब्ध था। अनुच्छेद 370 को लेकर मैं यहां संविधान निर्माताओं में से एक स्व. डॉ. भीम राव अम्बेडकर की बात का उल्लेख करना चाहूंगा।
‘आप यह चाहते हो कि, भारत कश्मीर की रक्षा करे। कश्मीरियों को पूरे भारत में समान अधिकार हों पर भारत और भारतीयों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं देना चाहते। मैं भारत का कानून मंत्री हूं और मैं अपने देश के साथ इस तरह की धोखाधड़ी में शामिल नहीं हो सकता।’
पिछले 70 वर्षों से चल रहे दोगलेपन के इस वातावरण की विदाई रंग लाएगी। जैसाकि अमित शाह ने अपने वक्तव्य में रखा कि आतंकवाद का मूल ही अनुच्छेद 370 था। इसकी आड में चंद लोगों ने लाखों लोगों को गरीबी का जीवन जीने को मजबूर कर रखा था। केन्द्र की सहायता भी आम आदमी तक नहीं पहुंची। जैसा कि गृहमंत्री ने पांच साल का एक अवसर मांगा है और आश्वासन दिया है कि यदि कश्मीर मामले में अनुच्छेद 370 हटता है तो सरकार वहां पर विकास का एक नया वातावरण तैयार कर देगी। रक्तपात की घटनाएं तो ठहर चुकी हैं। पी.डी.पी. के साथ मिलकर सरकार बनाने का भाजपा के माथे का धब्बा भी धुल गया है। अत: देश को नए प्रभात, पाक को लात और विदेश में नई साख की ओर देखना चाहिए।