डिजिटल अधिकार संस्थाओं के अनुसार इंटरनेट शटडाउन एक तरह का मानवाधिकार उल्लंंघन है। इंटरनेट बंद करना लोगों की दिनचर्या को पूरी तरह बंद कर देने जैसा है। ऐसे में जरूरी है कि सरकारें इसे कम से कम बंद करें। परीक्षा में नकल, दंगे और दूसरी समस्याओं से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर ज्यादा मेहनत करें। साफ है कि इंटरनेट बंद करना ही किसी समस्या का अंतिम समाधान नहीं हो सकता।