भारत का स्वास्थ्य तंत्र सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सेवाओं से मिलकर बना है। आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना गरीबों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बेहतर बनाती है, लेकिन बहुत-से मुद्दे स्वास्थ्य तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे चिकित्साकर्मियों का योग्यता के मुकाबले कम वेतन, और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी। स्वास्थ्य क्षेत्र के इन मूलभूत रोगों के प्राथमिक उपचार पर अधिक खर्च की जरूरत है। भारत सरकार जीडीपी का एक प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करती है, जो जी-20 समूह के सदस्य देशों में सबसे कम है। चीन जीडीपी का 3 और ब्राजील करीब 4 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है। भारत में केंद्र व राज्यों को स्वास्थ्य सेवा के लिए बड़ा बजट आवंटित कर तुरंत जन स्वास्थ्य खर्च में निवेश दो गुना कर देना चाहिए। ‘मिलाप’ जैसी ऑनलाइन क्राउडफंडिंग वेबसाइट पर ऐसे माता-पिता की गुहारों की भरमार है, जो अपने बीमार बच्चे के इलाज के लिए वित्तीय मदद मांग रहे हैं।
हम स्वास्थ्य तंत्र को कई अन्य उपतंत्र के रूप में देख सकते हैं और आम बजट को बेहतर ढंग से खर्च कर सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा के तीन विशिष्ट उपतंत्र को विभिन्न प्रकार की दक्षता की आवश्यकता है। एक, रोग निवारक एवं कल्याण संबंधी स्वास्थ्य सेवाएं, जो हर व्यक्ति की पहुंच में हों। इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र के लिए व्यापक संभावनाएं हैं। सरकार निम्न आय वर्ग के परिवारों को सालाना चेक-अप वाउचर देकर संपूर्ण राष्ट्र के लिए सालाना चेक-अप अनिवार्य कर सकती है। दो, अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाएं। इसमें निजी एवं सार्वजनिक दोनों संस्थाओं के लिए अवसर हैं। अस्पताल सेवाओं तक गरीबों की पहुंच में सहायक आयुष्मान भारत योजना का दायरा बढ़ा कर इसमें 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शामिल किया जा सकता है। यह थोड़ा महंगा कदम हो सकता है, लेकिन इससे बच्चों एवं उनके परिवारों की सेहत सुरक्षित हो सकेगी। तीन, दुर्लभ रोग एवं आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाएं, हालांकि इसके लिए विशेषज्ञता एवं परिष्कृत सेवाओं की जरूरत है। बहुत ही कम लोग इसके तहत स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेते हैं और इसकी कीमत अत्यधिक है। सबके द्वारा देय एवं सबको लाभान्वित करने वाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के माध्यम से आपातकालीन सेवाओं की लागत सरकार वहन कर सकती है। ध्यान देना होगा कि जनता के स्वास्थ्य की अनदेखी कर कोई देश तरक्की नहीं कर सकता और भारत ने लंबे अर्से से सार्वजनिक मानव विकास की अनदेखी की है। यही वजह है कि उत्कृष्ट परिणाम नहीं मिल पाए हैं, खास तौर पर हिन्दी भाषी क्षेत्र में।