ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के शपथ लेने में अभी एक माह है। उन्हें रोजाना कई समस्याओं की सूचनाएं मिल रही हैं जिनसे उन्हें रूबरू होना है। जैसे इराक और सीरिया में ईरान समर्थित लड़ाकों के ठिकानों पर अमरीकी हवाई हमले, तेहरान के निकट सेंट्रिफ्यूज फैक्ट्री पर इजरायली ड्रोन हमला, वियना में वैश्विक ताकतों के साथ परमाणु संधि पर वार्ता का रुकना और 1988 में हजारों राजनीतिक कैदियों की हत्या में संलिप्तता के आरोपों की जांच की मांग आदि।
इनसे परे रईसी के समक्ष सबसे अधिक दबाव वाली स्थिति है पेट्रोलियम उद्योग में हड़ताल और प्रदर्शन। श्रमिकों की यह अशांति रईसी के सामने आसन्न आर्थिक संकट की गंभीरता बताती है। ट्रेड यूनियनों पर प्रतिबंध के बावजूद हाल के वर्षों में श्रमिक सक्रियता काफी बढ़ी है। वजह, ईरानी अर्थव्यवस्था में घोर कुप्रबंधन, व्यापक भ्रष्टाचार और अमरीकी प्रतिबंध हैं। ऊर्जा क्षेत्र यानी पेट्रोलियम कामगारों की नाराजगी ज्यादा भयावह है। देश की राजनीति में उनकी बड़ी भूमिका रही है।
सत्तर के दशक के आखिर में पेट्रोलियम कामगारों की हड़ताल ने देश की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया था। शाह रजा पहलवी द्वारा हड़ताल को बलपूर्वक दबाने की कोशिश और प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवाने से उत्पन्न विरोध अन्य क्षेत्रों में फैल गया था जो अंतत: 1979 की क्रांति में शाह को हटाने का कारण बना। कामगारों में आज जो रोष है, 42 वर्ष पहले की उग्रता की तुलना में वह कुछ भी नहीं है, पर बीते माह राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह सबसे कम मतदान हुआ और बड़ी संख्या में खराब मतपत्र मतपेटियों में डाले गए, उससे जनता की मनोदशा के पर्याप्त संकेत मिलते हैं।
रईसी को तीन सालों से लगातार संकुचित हो रही अर्थव्यवस्था विरासत में मिलेगी। ईरानी रियाल के मूल्य में 80त्न गिरावट आई है और बाइडन प्रशासन संकेत दे रहा है कि उसे आर्थिक प्रतिबंध हटाने की कोई जल्दी नहीं है। ऊर्जा क्षेत्र के श्रमिकों का असंतोष दूसरे क्षेत्रों में फैला तो संभव है कि चार दशक पहले जो ताकतें ईरान के जन्म की गवाह बनी थीं, उन्हें हस्तक्षेप करने को मजबूर होना पड़े।