भोपाल में 21 जुलाई को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में शामिल हुए सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया उसी दिन हुई जांच में कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। होना तो यह चाहिए था कि, जिस प्रकार अन्य पॉजिटिव केसों में नियम है, उनके सम्पर्क में आए सभी लोगों की जांच की जाती। मंत्रिमंडल की बैठक में 30 से ज्यादा मंत्री उपस्थित थे। उनकी जांच तो सबसे पहले होनी चाहिए थी। पर नहीं हुई। या मंत्रियों ने लापरवाही बरतते हुए अपनी जांच नहीं करवाई। चार दिन बाद ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पॉजिटिव निकल गए। चौहान ने भी सभी से अपील की। उसका भी ज्यादा असर नहीं हुआ। बुधवार तक दो मंत्री और पॉजिटिव आ गए।
पता चल रहा है कि अब भी कई मंत्री लापरवाही बरत रहे हैं। मुख्यमंत्री वर्चुअल कैबिनेट में भी अपील कर चुके हैं। पर “शासक वर्ग” को तो जैसे विशेषाधिकार मिला हुआ है। इसलिए लगातार लापरवाही की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग भी यह बताने से बच रहा है कि कैबिनेट में शामिल कितने मंत्री जांच करवा चुके हैं। मंगलवार को पॉजिटिव पाए गए मंत्री तुलसी सिलावट तो चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे। रोज सैकडों लोगों से मिल रहे थे। दूसरे मंत्रियों के भी जन-सम्पर्क, कार्यक्रम निरंतर जारी है। एक प्रमुख मंत्री तो सार्वजनिक स्थल पर भी बिना मास्क के नजर आते हैं। पता नहीं इनमें से कितने मंत्री संक्रमण फैला चुके होंगे। अपनी लापरवाही के चलते हजारों लोगों की जान दावं पर लगा दी होगी।
जनता तभी अनुशासन की पालना करती है, जब उसके नेता भी ऐसा करते नजर आए। यदि नेता-मंत्रियों का स्वयं का व्यवहार ऐसा होगा तो जाने-अनजाने में वे प्रदेश की पूरी जनता को लापरवाही बरतने की शिक्षा दे रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी के समय उनका ऐसा व्यवहार उनके अहम् को भले ही पुष्ट कर दे, पर प्रदेश हित को गहरी चोट पहुंचाने वाला होगा।