मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इन मशीनों मेंं किसी तरह की गड़बड़ी किए जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। सबसे पहली ही बात तो यह है कि इन मशीनों को देश की जरूरत के लिहाज से तैयार किया गया है। इसका सॉफ्टवेयर देश की सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों ने तैयार किया है।
इनमें इस तरह की चिप लगाई गई है जो एक बार इस्तेमाल के बाद स्वत: ही जल जाती है इसलिए कहा जा सकता है कि इसमें बदलाव करने या सही करने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। इसके डेटा एक बार संरक्षित होने के बाद सुरक्षित रहते हैं।
ये मशीने किसी तार या बेतार से अन्य मशीन से जुड़ी नहीं रहती हैं इसलिए इसमें संग्रहित डेटा चुराया जाना या खराब किया जाना संभव नहीं। ईवीएम के सॉफ्टवेयर विकसित करने वाली टीम इन मशीनों की उत्पादक टीम से बिल्कुल अलग रहती है।
दूसरी बात प्रशासनिक सुरक्षा की होती है यानी ये मशीनें कहां रखी जाएंगी, उन्हें कैसे सुरक्षात्मक तरीके से मतदान स्थल तक पहुंचाया जाएगा, इस सबकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। इस व्यवस्था की तीन स्तरीय जांच होती है।
इसका उचित अभ्यास भी होता है। राजनीतिक दल इसके गवाह होते हैं और वे ही समूची प्रक्रिया को सही तरीके से निपटाने के लिए प्रमाणित भी करते हैं। इसके अलावा सारी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी कराई जाती है।
अंतिम और तीसरे दौर की जांच व अभ्यास मतदान दिवस पर उम्मीदवार या उसके एजेंट के सामने 100 मतदान करके बताए जाते है जो यह साबित करते हैं कि मशीनें सही काम कर रही हैं। किसी भी खराब मशीन को तुरंत बदला जाता है।
मतदान के बाद मशीनों को हथियारों से लैस सुरक्षा सैनिकों की निगरानी मेें मतगणना तक मशीनें रहती हैं। पार्टी एजेंट इन मशीनों पर चौबीसों घंटे निगाह रखते हैं। अनेक ईवीएम की कार्यप्रणाली को अदालतों, यहां तक शीर्ष अदालत में भी चुनौती दी गई किंतु इसके लिए चुनाव आयोग की प्रशंसा ही ही हुई।
सावधानी के तौर पर देश में मतदान पश्चात जिसे वोट दिया गया, उसकी पर्ची निकाल डेटा सुरक्षित रखने वाली मशीनों की जांच भी की जा रही है। उम्मीद है कि अगले लोकसभा चुनाव तक ऐसी मशीनों की खरीद हो जाएगी।
इसके लिए 1690 करोड़ रुपए में मशीनों की खरीद की जा रही है। यह जरूर है कि विवाद उठने से पहले ही चुनाव आयोग को आगे आकर संदेहों को पहले ही दूर करना चाहिए थी। इसमें उसे देर नहीं करनी चाहिए।
(देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे कुरैशी चुनाव सुधारों के पक्षधर हैं ) ऋतु सिंह ..तो फिर मतपत्रों से दोबारा चुनाव कराकर देख लें बहुजन समाज पार्टी ने ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी की बात की हो, ऐसा नहीं है। भारतीय जनता पार्टी भी विपक्ष में रहते हुए इस तरह की शिकायत करती रही है। उसके बड़े नेताओं में खासतौर पर लालकृष्ण आडवाणी ने इस तरह की बातें की थीं, तब किसी ने उनसे तकनीकी आधार नहीं पूछा।
जहां तक हमारी पार्टी का सवाल है तो हमारी पार्टी की शीर्ष नेता बहिन मायावती ने पत्रकार सम्मेलन कर कहा कि ईवीएम में बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां हुईं हैं। उनका इल्जाम गलत नहीं हो सकता। यह साधारण आरोप नहीं बल्कि यह तो भाजपा का बड़ा घोटाला है।
जरा सोचिए, 2012 में भी तो उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे और हम तब भी तो हार गए थे। लेकिन, हमने तब तो यह आरोप नहीं लगाया था लेकिन इस बार हमने यह आरोप बहुत ही सोच-समझकर व तथ्यों के आधार पर लगाया है।
तकनीकी आधार पर ईवीएम में गड़बड़ी की बात पर जो लोग संदेह कर रहे हैं, उनसे मेरा कहना है कि वे सोशल मीडिया का सहारा लें। यूट्यूब पर वे खुद ही देख लें कि ईवीएम के जरिए गड़बड़ी कैसे होती है, उन्हें उनके प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।
जरा यह भी सोचिए, बहुत से यूरोपीय देशों और अमरीका में मतपत्र के जरिए वोट डाले जाने लगे हैं तो आखिर क्यों? वे तो तकनीक के मामले में हमसे आगे ही रहते हैं। उन्होंने भी तो पूर्व में ईवीएम का इस्तेमाल किया लेकिन बाद में उन्होंने पुराने तरीके को ही सही माना।
हमारे देश में भी अब ईवीएम पर हम ही सवाल खड़े नहीं कर रहे, आम जनता इसके परिणामों पर सवाल खड़े कर रही है। उत्तर प्रदेश में जाकर देखिए कि कितने विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं? ऐसा कैसे हो सकता है कि आम जनता को आप सुविधाएं देते नहीं लेकिन लोग आपको ही वोट दे देते हैं?
ऐसा कई मतदान स्थलों पर देखा गया है कि पोलिंग एजेंटों के आकलन और ईवीएम के जरिए हुए मतदान में अंतर रहा है। भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि उसे नोटबंदी के असर के तौर पर मत मिले हैं। जब 1000 और 500 के नोट बंद हुए और 2000 रुपए के नोट पूरे से वितरित नहीं तो भाजपा के नेताओं ने महंगी-महंगी शादियां किस तरह से कीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने नेताओं से इस पर सवाल क्यों नहीं किए? क्या ऐसा हो सकता है कि गैस सिलेंडर सस्ती दरों पर देने का वायदा किया जा रहा हो और हकीकत में लोगों को महंगे सिलेंडर मिल रहे हों, फिर भी वोट एक ही पार्टी को मिल जाएं?
पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हों और फिर भी वोट एक ही पार्टी को मिल रहे हों, यह बात समझ से परे है। यदि भाजपा और प्रधानमंत्री को उत्तर प्रदेश में अपनी जीत पर यकीन है तो फिर मतपत्रों के आधार पर फिर से चुनाव करा लें। दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।
(बहुजन समाजवादी पार्टी की वरिष्ठ नेता)