भारत में लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर हो रहा है। अर्थव्यवस्था निरंतर गिरती जा रही है। देश के किसान केन्द्र सरकार से नाराज हैं। इसलिए वे आंदोलनरत हैं। देश में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। ऐसे अनेक कारण हैं, जिनसे भारत का लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर हो रहा है।
-नवीन कुमार फलवाडिया, सुजानगढ़
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लोकतंत्र जनता के द्वारा और जनता की सरकार है, जहां जनहित का ध्यान रखा जाता है। महीनों से किसान अपने हक के लिए आंदोलन किए जा रहे हैं और उनकी बात ना मानते हुए सरकार तानाशाही कर रही है। फिर कैसा लोकतंत्र? जहां पत्रकारों को जनता तक सच पहुंचाने के लिए हिरासत में ले लिया जाता है, वहां कैसा लोकतंत्र? जहां भ्रष्टाचार, धार्मिक भेदभाव व हिंसा आम हो रही हो, वहां लोकतंत्र पर सवाल तो उठेंगे ही।
– दीप्ति जैन, उदयपुर
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लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। इसका उदाहरण है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ दिनों पहले दिल्ली के संबंध में बिल पास किया है। इसमें एजजी को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर निर्वाचित सरकार को सत्ता सौंपी। यह बिल लोकतंत्र के विरुद्ध है
-दीपेश नामदेव, ग्वालियर, एमपी
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महामारी के समय जब देश में संकट आया तो साबित हुआ कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं का ढांचा मजबूत व पारदर्शी है। यही वजह है कि कोविड से लड़ने में सफलता मिली। हमें अपनी संवैधानिक संस्थाओं को मजबूत बनाए रखना होगा।
-राहुल सोनी, प्रतापगढ़़
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देश का लोकतांत्रिक ढांचा कमजोर हो रहा है। राजनीतिक दलों को सिर्फ सत्ता चाहिए, भले ही इसके लिए कुछ भी करना पड़े। जिस लोकतंत्र का सम्मान होना चाहिए, वह अब नहीं रहा। अभद्र भाषा का प्रयोग आम हो गया है। स्वार्थ सिद्धि ने सभी दलों को अंधा बना दिया है। देश में आए दिन हिंसात्मक घटनाएं हो रही हैं। दूसरे पर दोषारोपण करना ही इन नेताओं का धर्म हो गया है। हमें भारत के लोकतंत्र को सुरक्षित रखने की जरूरत है।
-मंजु चतुर्वेदी बागड़ी, भीलवाड़ा
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पिछले पांच से सात सालों में स्थिति अधिक बिगड़ गई है। पत्रकारों को प्रताडि़त करना आम है। अपनी बात रखने वालों पर लगातार देशद्रोह जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज करना सामान्य बात हो चुकी है।
-ईश्वर दास मीना, सुमेरपुर
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लोकतंत्र का अर्थ जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन है। लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार से सदनों औऱ सार्वजनिक मंचों पर नेता अमर्यादित भाषा व झूठे आरोप-प्रत्यारोप लगाकर एक दूसरे को नीचा दिखाने का जो प्रयास: कर रहे हंै, वह लोकतंत्र के लिए जहर के समान है।
-वीरभान गुर्जर, अजमेर
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बिगड़ रही है भारत की छवि
विगत कुछ वर्षों से भारत में मीडिया पर हमले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन, राजद्रोह के प्रकरणों में वृद्धि, सरकारी जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, मॉब लिंचिंग, किसान आंदोलन के प्रति सरकार की संवेदनहीनता जैसी घटनाओं के कारण भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को गहरा आघात पहुंचा है। इससे भारत की छवि वैश्विक पटल पर बिगड़ रही है।
रूद्र यादव, नागौर
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स्वतंत्र भारत में जब लोकतंत्र को अपनाया गया तब कई पाश्चात्य विद्वानों ने इस विशाल राष्ट्र की भौगोलिक, सांस्कृतिक व अशिक्षा को बाधक मानते हुए इस शासन व्यवस्था की सफलता पर प्रश्नचिह्न खड़े किए थे, परन्तु सात दशकों की कालावधि में अन्य लोकतांत्रिक देशों से तुलना करें, तो भारतीय लोकतंत्र सफल रहा है। समय के साथ भारतीय राजनीति में जाति, मजहब, धनबल, बाहुबल, अपराधीकरण, अलगाववाद का प्रवेश जैसी अनेक चुनौतियां अवश्य है,ं जिनसे निपटने के गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है।
-नरेन्द्रसिंह बालोत, जालोर