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सामयिक : क्या किसी राष्ट्र के लिए संभव है मंगल पर अंतरिक्ष यात्री भेजना ?

– नए बाइडन प्रशासन का समग्र एजेंडा पहले की तुलना में काफी बड़ा और ज्यादा लागत वाला है, फिर भी अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए इसमें गुंजाइश नहीं है।

Mar 01, 2021 / 08:00 am

विकास गुप्ता

सामयिक : क्या किसी राष्ट्र के लिए संभव है मंगल पर अंतरिक्ष यात्री भेजना ?

मिच डेनियल्स

नासा के अंतरिक्ष यान ‘पर्सिवरेंस’ की सफल लैंडिंग से मंगल ग्रह पर जीवन तलाशने के अभियान में पहली सफलता मिल गई है। अमरीका के मानव अंतरिक्ष यान कार्यक्रम को लेकर विश्व भर में सामूहिक रुचिली जा रही है। इसमें चांद को मंच बनाकर लाल ग्रह का लक्ष्य साधने वाले अमरीक ह्युमन स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम के अनुमानों को हवा दी है। हालांकि, जब कभी मानव जाति अगली सरहद पर पहुंचती है तो इस संदेह के लिए कारण होते हैं कि क्या यह वाकई अमरीकी सरकार का अंतरिक्ष अभियान होगा। विडम्बना यह है कि इंसान को चांद पर भेजने वाला देश अपने इस अगले अभियान में सफलता से दूर हो सकता है।

याद करना होगा कि अमरीका के राष्ट्रपति जॉन.एफ. कैनेडी ने अपोलो की उड़ान के सपने के बारे में कहा था कि हमें कोशिश करनी चाहिए सिर्फ इसलिए नहीं कि यह आसान है, बल्कि इसलिए कि यह कठिन है। जैसे पर्सिवरेंस की उपलब्धि चकाचौंध करने वाली है, वैसे ही लाल ग्रह के लिए ह्युमन स्पेसफ्लाइट की जरूरतें भी। कुछ वर्ष पहले एक राष्ट्रीय आयोग बना था जिसकी मैंने सह-अध्यक्षता की थी। आयोग ने निष्कर्ष निकाला था कि मंगल पर ह्युमन स्पेसक्राफ्ट कार्यक्रम के लिए एक केन्द्रीयकृत लक्ष्य बनाने के अलावा दशकों तक बेरोक-टोक चलने वाली अन्य कई प्रतिबद्धताएं अपनानी होंगी, साथ ही अधिक निवेश, जिस पर मुद्रास्फीति का असर न पड़े। मैं अपनी व्यवस्था का शुक्रगुजार हूं जो हमें हर दो वर्ष में राष्ट्रीय दिशा बदलने का मौका देती है, चार वर्ष में राष्ट्रपति पद के चुनाव होते हैं। हर नए राष्ट्रीय प्रशासन का अपना एजेंडा होता है। राष्ट्रपति हमेशा ही नवाचार के लिए उत्सुक होते हैं, बजाए पुरानी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के। राजकोषीय आर्थिक और अन्य राष्ट्रीय नीतियों को बार-बार बदला जा सकता है। यही अंतरिक्ष नीति के साथ भी हुआ है। नासा की प्रमुख रणनीतियों को झटका देते हुए यानी अपोलो से लेकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक स्पेस शटल भेजने और आगे भी कई परियोजनाओं तक। अंत में मंगल ग्रह तक पहुंचने के बारे में विचार किया गया।

अंततोगत्वा, मुझे कहना होगा कि नए बाइडन प्रशासन का समग्र एजेंडा पहले की तुलना में काफी बड़ा और ज्यादा लागत वाला है, पर अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए इसमें थोड़ी या कोई गुंजाइश नहीं है। कांग्रेस वार्षिक आधार पर बजट तय करती है। उसके कार्ड में नासा की बीस वर्ष वाली परियोजनाएं संभवत: नहीं हैं। सांसदों को स्पेस सेंटर्स पर खर्च निरर्थक लगता है। तो क्या अमरीकी अगली आधी सदी यह देखने में बिता देंगे कि चीनी अंतरिक्ष यात्री या रोबोट्स बेरोक-टोक वहां जा रहे हैं जिस स्थान पर पहले कोई नहीं गया है? मुक्त उपक्रमों की वरीयतापूर्ण शैली से निजी कंपनियां अस्तित्व में आ गईं हैं जो राजनीतिक वास्तविकताओं के भार से मुक्त हैं और सरकार की बेमेल प्रणाली के बाद भी हमें अच्छा मौका देती हैं कि चांद की सतह की तरह ही मंगल पर पहला मानव एक स्वतंत्र देश का स्वतंत्र नागरिक ही होगा।

(लेखक अध्यक्ष, परड्यू यूनिवर्सिटी इंडियाना के पूर्व गवर्नर हैं)

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