रिपोर्ट निराशाजनक है। सिर्फ 14 फीसदी जर्मन, अमरीकी लोकतंत्र को अन्य देशों के लिए आकर्षक मॉडल के रूप में देखते हैं जबकि 54 फीसदी का कहना है द्ग ‘अमरीका अच्छा उदाहरण हुआ करता था, पर हाल के वर्षों में ऐसा नहीं हुआ है।’ फ्रांस, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, जापान और आस्ट्रेलिया में जन-विचार इसी तरह धूमिल है। न्यूजीलैंड में दस में से केवल एक नागरिक अमरीकी लोकतंत्र को अभीष्ट लोकतंत्र के रूप में देखता है। जाहिर है, बाकी लोकतांत्रिक दुनिया विशेषकर ट्रंप के अधिकारवादी रुख से प्रभावित नहीं थी जिन्होंने साजिशों के सिद्धांतों को फैलाया, संकीर्णतावादी ट्वीट किए, और तब जबकि कोविड-19 से चार लाख लोगों की जानें जा चुकी थीं, यह कहते हुए घातक विद्रोह को उकसाया द्ग जाओ संख्याओं का पता लगाओ। यह परेशान करने वाली अपरिहार्य दुविधा को उजागर करता है, जिसका सामना मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन को करना चाहिए।
वर्ष 2016 में जब से ट्रंप रिपब्लिकन फ्रंटरनर के रूप में उभरे, चीन उथल-पुथल का फायदा उठा रहा है। कोविड महामारी से निपटने में ट्रंप की विफलता जब दुनिया के सामने स्पष्ट हो गई तो बीजिंग ने उनके कथनों को सबूत के तौर पर उद्धृत किया। कहने की जरूरत नहीं कि चीन बाकी दुनिया के लिए कोई मॉडल नहीं है। लेकिन ट्रंप का कार्यकाल चीनियों के लिए उपहार में लिपटी प्रचार की चाल थी। यह इसलिए मायने रखता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएं चीन की ओर खिंची चली जा रही हैं। पूरे अफ्रीका में कराए गए जनमत सर्वेक्षण में, चीन ने अमरीका को भी अपने साथ खींच लिया है। दस में से छह अफ्रीकियों में चीन के बारे में अनुकूल दृष्टिकोण है। जबकि अमरीका अभी भी सर्वश्रेष्ठ विकास मॉडल के रूप में देखा जाता है। चीन बहुत पीछे नहीं है। यह कुछ ही दशकों में एक भारी बदलाव है और यह अमरीकी विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा क्योंकि विकासशील देश यह तय करेंगे कि उन्हें वाशिंगटन के साथ रहना है या बीजिंग के साथ।
अमरीका की खराब राजनीति और वास्तविक तानाशाही के बीच तुलना, निश्चित रूप से अतिशयोक्तिपूर्ण है। बाइडन और सीनेट के डेमोक्रेट्स यूएस में लोकतंत्र की रक्षा के लिए आक्रामक तरीके से जूझ रहे हैं। यह चेतावनी होनी चाहिए। अमरीका जब तक अनुकरण के लिए फिर से एक उदाहरण नहीं बन जाता, तब तक पूरी दुनिया लोकतंत्र के लिए अंधकारमय और खतरनाक जगह बनी रहेगी।