अब रामायणकालीन ब्रह्म छत्र की बात करते हैं। राम-रावण युद्ध का तार्किक व वैज्ञानिक चित्रण थाईलैंड (श्यामदेश) की रामायण ‘रामकियेन’ मलेशिया की ‘हिकायत सेरीराम’, पर्वी तुर्किस्तान की ‘खोतानी रामायण’, सुमात्रा की ‘ककविन रामायण’ और लंका की ‘जानकी हरणम्’ में है। इन देशों ने लंका की सामरिक सहायता भी की थी। दरअसल, दक्षिण एशियाई देशों की रामायणों में भगवान राम को ‘महामानव’ माना गया, जबकि भारतीयों ने ईश्वर माना। अतएव युद्ध में प्रयोग में लाए गए अस्त्र-शस्त्र, ब्रह्म छत्र व अन्य सुरक्षा प्रणालियां गौण रह गईं। इनका स्थान अलौकिक चमत्कारों ने ले लिया।
डॉ. फादर कामिल बुल्के ने ‘राम-कथा: उत्पत्ति और विकास’ तथा मदनमोहन शर्मा के उपन्यास ‘लंकेश्वरÓ में उपरोक्त रामायणों को आधार बनाकर युद्ध का वर्णन अत्यंत विज्ञान-सम्मत व सुरुचिपूर्ण ढंग से किया है। अनेक अस्त्र-शस्त्र के निर्माण व उपयोग के वर्णन के साथ ब्रह्म छत्र का भी उल्लेेख है।
इसी तरह का छत्र राजस्थान के रावतभाटा परमाणु संयंत्र को आपात स्थिति में मिसाइल हमले से सुरक्षित रखने के लिए भी बनाया जा रहा है। यह 570 टन वजन का होगा। यह भारत का पहला आयरन डोम होगा। इसे सुरक्षित रखने के लिए बतौर आवरण एक और छत्र निर्मित किया जाएगा। बहरहाल भारत और इजरायल के छत्रों से पता चलता है कि रामायणकालीन ब्रह्म छत्र का अस्तित्व होना कोई कोरी कल्पना या मिथकीय वर्णन नहीं है।