scriptअब मानव मिशन की चुनौती | ISRO sets to launch man mission on mars | Patrika News

अब मानव मिशन की चुनौती

locationजयपुरPublished: Sep 24, 2018 09:46:12 am

अंतरिक्ष की पूर्व यात्राओं और मंगल पर मानव मिशन में सबसे बड़ा अंतर यह होगा कि इसमें चालक दल उन परिस्थितियों में रहेंगे, जिनमें जब चाहे संचार स्थापित नहीं हो सकेगा।

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– एम अन्नादुरै, वैज्ञानिक

मंगल ही एक ऐसा ग्रह है जो धरती पर कभी मानव जीवन को खतरा पैदा होने पर इस प्रजाति को बचाने के लिए वैज्ञानिकों की पहुंच में है। इसलिए इस ग्रह की उत्पत्ति के रहस्यों को जानने और वहां मानव बस्तियां बसाने की संभावनाओं या जीवन की मौजूदगी का पता लगाने से जुड़ा मानव मिशन एक महत्त्वाकांक्षी योजना है। इससे जुड़ी चुनौतियों से पार पाने में कम से कम 20 से 25 वर्ष तो लग ही जाएंगे। जब अंतरराष्ट्रीय सहयोग और एक अच्छी योजना के बलबूते भारत कम लागत और पहले ही प्रयास में मंगलयान मिशन में सफल हुआ, तो फिर मंगल पर मानव मिशन को लेकर भी हमें आशावान रहना चाहिए।
दरअसल, लंबे समय के मानव अंतरिक्ष अभियान अलग तरह की चुनौतियां पेश करते हैं। रोबोट मिशनों के विपरीत इंसानों को खाना-पानी, सुरक्षा और मनोरंजन चाहिए। सबसे अहम है उन्हें सुरक्षित धरती पर वापस लाने की चुनौती। मंगल यात्रा पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को जिस पैमाने पर विकिरण (रेडिएशन) का सामना करना पड़ेगा वह एक प्रमुख चिंता का विषय है। धरती पर हमारी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाली कॉस्मिक किरणों से वातावरण का आवरण बचाता है। मंगल पर कोई भी सफल मानव मिशन एक अंतरिक्ष यात्री केजीवन की आखिरी अंतरिक्ष यात्रा होगी क्योंकि वह अपने पूरे जीवनकाल में विकिरण बर्दाश्त करने की अधिकतम सीमा को पार कर जाएगा। इसके लिए ऐसे सुरक्षा उपाय करने होंगे जैसे परमाणु संयंत्रों में स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिए कामगारों के लिए किए जाते हैं।
विकिरण के विभिन्न स्तरों पर जैविक खतरों को लेकर अभी अनिश्चितता है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि गहन अंतरिक्ष में विकिरण का कितना जोखिम उठाया जा सकता है। सबसे खतरनाक है सौर प्रोटोन का विकिरण। सूर्य से निकलने वाले ये अति ऊर्जावान कण हैं और जब सौर गतिविधियां बढ़ती हैं, तब सौर कॅरोना से इन कणों की बौछार होती है। मंगल मिशन के दौरान इनका सामना होता ही है। विकिरण प्रभावों को समझने के लिए उपलब्ध अधिकांश आंकड़े एक्स-रे और गामा-रे किरणों तक ही सीमित हैं। भारी आयनों के विकिरण की एक निरंतर मात्रा का क्या असर होगा इसके बारे में काफी कम जानकारी है।
यह सर्वविदित है कि लंबी अवधि तक भारहीनता की स्थिति मानव शरीर में काफी बदलाव लाती है। शरीर दुर्बल और कमजोर हो जाता है। सबसे गंभीर बदलाव हृदय और रक्तवाहिकाओं में होता है, मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, हड्डियों में कैल्शियम का द्रव्यमान कम होने लगता है और रोग प्रतिरोधक प्रणाली में गिरावट आने लगती है। इससे निपटने के उपाए हैं, पर लंबी अवधि के प्रभावों को ध्यान में रखें तो प्रमाणित नहीं हैं।
अंतरिक्ष की पूर्व यात्राओं और मंगल पर मानव मिशन में सबसे बड़ा अंतर यह होगा कि इसमें चालक दल उन परिस्थितियों में रहेंगे, जिनमें जब चाहे संचार स्थापित नहीं हो सकेगा। आपातकालीन स्थिति में जमीनी केंद्रों से उन्हें कोई सहायता या सुझाव इसलिए समय पर नहीं भेजा जा सकेगा क्योंकि संचार में विलंब होगा। इसलिए एक अत्यंत विश्वसनीय स्वचालित प्रणाली आवश्यक होगी।
मिशन के लिए एक ऐसे अवरोहण चरण (वाहन) का विकास करना होगा जो सभी हार्डवेयर प्रणालियों द्ग जैसे चालक दल का कक्ष, आरोहण वाहन (जिस पर सवार होकर चालक दल मंगल की सतह से पुन: मंगल की कक्षा में आएंगे), प्रणोदक उत्पादन संयंत्र आदि लेकर मंगल की सतह पर पहुंच सके। इस चरण में अन्य पे-लोड के साथ चार उप-प्रणालियां होंगी। एक मूल ढांचा जिसमें सभी उपकरण (पे-लोड आदि) रहेंगे, एक पैराशूट प्रणाली जो मंगल की सतह पर उतरने के दौरान उसकी गति कम करने में मददगार होगी, एक प्रणोदन प्रणाली जो सतह पर उतरने से पहले उसकी रफ्तार पर अंकुश लगाएगी और सतह पर उतरने के बाद परिचालन के लिए एक प्रणाली। पर्याप्त वातावरण होने के कारण वहां पैराशूट प्रणाली प्रभावशाली साबित होगी और यह प्रणोदन प्रणाली की तुलना में बेहतर विकल्प साबित होगा।
मिशन पूरा होने पर चालक दल के सदस्यों को मंगल आरोहण वाहन (एमएवी) में सवार होकर मंगल ग्रह की कक्षा में चक्कर काट रहे अर्थ रिटर्न वाहन (ईआरवी) तक आना होगा। एमएवी को मंगल की सतह पर अवरोहण वाहन पर रखकर उतारा जाएगा। इसके साथ परमाणु ऊर्जा संसाधन और कच्चे माल के रूप में हाइड्रोजन के कई खाली टैंक भेजे जाएंगे, जिनका उपयोग कर एमएवी के लिए आवश्यक ईंधन वहीं तैयार किया जाएगा।
अगर किसी कारणवश आपात स्थिति पैदा होती है और मिशन को एबॉर्ट करना पड़ा तो यात्रियों को मंगल ग्रह के आसपास ही 500 से 6 00 दिनों तक रहना होगा। इससे धरती पर वापस आने वाले वाहन (ईआरवी) में आवश्यक रूप से इतने दिनों के लिए लाइफ सपोर्ट प्रणाली होनी चाहिए। इससे मिशन की लागत और द्रव्यमान (वजन) भी बढ़ेगा। यह एक ऐसा लाइफ सपोर्ट सिस्टम होना चाहिए जिसमें विफलता की गुंजाइश नहीं रहे। यह बेहद चुनौतीपूर्ण और मिशन की सफलता के लिए महत्त्वपूर्ण होगा। मंगल की कक्षा में रहते हुए चालक दल को इतने दिनों तक का विकिरण जोखिम भी उठाना पड़ेगा।
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