scriptपहले निपटें चीन से टकराव के मुद्दे | issue should be resolved between india and china | Patrika News

पहले निपटें चीन से टकराव के मुद्दे

locationइंदौरPublished: Feb 20, 2017 11:27:00 am

Submitted by:

चीन की सोच को भारत को समझना होगा। इससे पहले चीन का सीमा विवाद को लेकर रवैया हमेशा ढुलमुल रहा है। चीनी राजनेता अक्सर कहते हैं कि उलझे हुए मुद्दों को भविष्य के लिए छोड़कर जिन मुद्दों पर सहमति बन सके उन पर सहयोग पहले करना चाहिए।

हमारे विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक भारत-चीन के बीच पहली रणनीतिक वार्ता 22 फरवरी को बीजिंग में होगी। उन्होंने ये भी संकेत किया कि इसमें दोनों देशों के बीच टकराव के मुद्दों पर बातचीत होगी। इस संदर्भ में तीन बातें जान लेना जरूरी है। 
पहला, हाल ही ऐसा लगने लगा है कि भारत पर भी अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘वैकल्पिक सच’ का बुखार नजर आने लगा है। उदाहरणस्वरूप गत सप्ताह ही हुए ‘ऐरो इंडिया’ एयर शो के बारे में मीडिया में लिखा गया कि चीन पहली बार इस एयर शो में शामिल हुआ। जबकि चीनी मीडिया के अनुसार, चीन 2009 से ही इस एयर शो में शामिल होता रहा है।
फिर, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक भारत-चीन के बीच यह पहली रणनीतिक वार्ता बताई गई जबकि विदेश मंत्रालय की वेबसाइट बताती है कि इस तरह के पांच दौर पहले हो चुके हैं। इतना जरूर है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में यह पहला दौर है।
दूसरा, सरकारों को यह कहने से भी बचना होगा कि इतिहास हमसे ही शुरू होता है। पिछले वार्ता के दौरों को समझे बगैर ना तो टकराव के मुद्दों का हल निकाला जा सकता है और ना प्रबंधन किया जा सकता है। तीसरा, हम नीति निर्धारित करें तो चीन के साथ बराबरी की होड़ में न जाएं। नब्बे के दशक में दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात अनुपात संतुलित था। 
आज व्यापार संतुलन में चीन का पलड़ा भारी है। दिल्ली से भी कम आबादी वाले देश आस्ट्रेलिया का व्यापार आज भारत-चीन के व्यापार से दुगना है। रही बात, इस बार की रणनीतिक वार्ता की तो दो मुद्दे प्रमुखता से रहने चाहिए। पहला यह कि भारत चाहता है कि आतंकी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार आतंकी सूची में डाला जाए। 
दूसरा यह कि न्यूक्लिअर सप्लाई गु्रप (एनएसजी)में भारत को पूर्ण सदस्यता दी जाए। दोनों ही मसलों पर चीन कहता है कि ये द्विपक्षीय नहीं बल्कि बहुपक्षीय मसले हैं जिनका हल आपसी वार्ता से नहीं निकाल सकते। मसूद अजहर के मसले पर चीन हमेशा पाकिस्तान की भाषा बोलता रहा है। वह यही कहता है कि मसूद के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। 
एनएसजी के मामले में भी वह यही कहता रहा है कि न्यूक्लियअर टेस्ट बेन ट्रीटी (एनटीबीटी) पर जिन देशों के हस्ताक्षर नहीं हैं उनके लिए एक जैसा मापदंड तय किया जाना चाहिए। जबकि भारत कहता रहा है कि वर्ष 2008 से ही उसे एनएसजी से विशेष छूट प्राप्त है। 
इसलिए उसकी एनएसजी में सदस्यता को सामान्य नहीं बल्कि विशेष रूप से जांचना होगा। परंतु मसूद अजहर के मामले में अब पाकिस्तान का रवैया भी बदला है। अमरीकी दबाव में उसने मसूद को नजरबंद कर उसका नाम पाक के आतंक निरोधी कानून में भी दर्ज किया है। उम्मीद है कि पाक के इस बदले रुख से चीन का रवैया भी बदलेगा। 
रहा, एनएसजी से जुड़ा सवाल। अमरीका से बेहतर रिश्तों के चलते डॉ.मनमोहन सिंह ने वेस्टिंग हाउस कंपनी से भारत में 6 न्यूक्लिअर पावर रिएक्टर लगाने की संधि पर हस्ताक्षर किए थे। अब यह कंपनी जापानी तोशिबा के पास है। तोशिबा में वित्तीय संकट के दौर के चलते कंपनी के चेयरमैन को इस्तीफा देना पड़ा है, ऐसे में ये रिएक्टर खटाई में पड़ गए हैं। 
चीन को यह समझाना होगा कि वह हमारे लिए इस क्षेत्र में कैसे अच्छा सप्लायर बन सकता है। तीन और मुद्दे जो इस वार्ता में आने चाहिए। पहला, चीन के प्रधानमंत्री लीख छ्यांग हमारे यहां वर्ष 2013 में आए थे। चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा मोदी सरकार के कार्यकाल में अभी नहीं हुई है। इसको लेकर भी माहौल बनाना होगा। 
दूसरा, पिछले दिनों मुंबई विश्वविद्यालय में एक व्याख्यान में भारत में चीन के राजदूत लुओ चाओहुई ने प्रस्तावित किया कि भारत-चीन मैत्री एवं सहयोग संधि होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर भी शीघ्र कार्रवाई होनी चाहिए। ये दोनों बातें नई हैं। 
चीन की सोच को भारत को समझना होगा। इससे पहले चीन का सीमा विवाद को लेकर रवैया हमेशा ढुलमुल रहा है। चीनी राजनेता अक्सर कहते हैं कि उलझे हुए मुद्दों को भविष्य के लिए छोड़कर जिन मुद्दों पर सहमति बन सके उन पर सहयोग पहले करना चाहिए। 
तीसरा, चीन में इस बात को लेकर भी असमंजस हो सकती है कि इससे पहले तक भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच की वार्ता की अगुवाई करते रहे हैं। दोनों देशों के बीच ऐसे अब तक 18 डायलॉग हुए हैं जिन्हें भारत-चीन के बातचीत का सबसे अहम तंत्र माना जाता रहा है। 
विदेश सचिव स्तर की रणनीतिक वार्ता से चीन को यह समझना काफी मुश्किल हो जाएगा कि दोनों वार्ताों में ज्यादा प्रभावी आधार किसका होगा? इस बार की वार्ता में विश्व स्तर और एशिया प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों पर भी बात हो सकती है। 
डोनाल्ड ट्रंप के ट्रांस पेसेफिक पार्टनरशिप(टीपीपी) से पीछे हटने और यूरोपीय यूनियन के ब्रेग्जिट में उलझे होने से भारत और चीन दोनों देशों के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि वे आपसी मुद्दों को सुलझाकर क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर के मुद्दों में आपसी योगदान की समझ को विकसित करें। 
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो