ऑक्सीजन संकट से सबसे बड़ा सबक यह मिला कि भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं में दवा एवं जांच आपूर्ति शृंखला और प्रक्रिया को सुदृढ़ करना होगा। राज्यों को पहले से चल रही निशुल्क दवा एवं जांच योजनाओं के लिए सरकारी फंडिंग बढ़ा कर उनके क्रियान्वयन में सुधार लाना होगा और भागीदार स्टाफ की क्षमताएं बेहतर बनानी होंगी। एक साल पहले देशव्यापी लॉकडाउन से लोगों को बहुत सी असुविधाओं और परेशानियों का सामना करना पड़ा था। फिलहाल राज्यों की ओर से अपने स्तर पर लागू सख्त पाबंदियों के परिणाम अच्छे नजर आ रहे हैं। इस तरह राज्य और जिला विशेष के डेटा और विशेषज्ञ परामर्श का सदुपयोग होता है। विकेंद्रीकृत निर्णय की इस प्रक्रिया को महामारी रोकथाम के अन्य क्षेत्रों में भी और बल मिलना चाहिए। सख्त पाबंदियां लागू करने के साथ-साथ राज्यों को वंचितों एवं निचले तबके के लोगों की सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए।
कोरोना की तीसरी और उसके बाद की लहर का मुकाबला करने के लिए टीकाकरण बढ़ाना बहुत जरूरी है। कोविड उपयुक्त व्यवहार की अनुपालना सुनिश्चित करने और वैक्सीन के प्रति संकोच दूर करने के लिए नई संचार नीतियां तैयार करनी होंगी और इस लहर के चले जाने के बाद भी उसे जारी रखना होगा, तब तक, जब तक कि यह महामारी देश ही नहीं, पूरी दुनिया से ही न चली जाए। भारत में वायरस के स्ट्रेन की जीनोम सीक्वेंसिंग और अन्य संबंधित वैज्ञानिक अध्ययन बढ़ा देना चाहिए ताकि महामारी की रणनीति में आवश्यक और समयानुसार सुधार करने में मदद मिल सके। माना जा रहा है कि भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक है। राज्यों को कोरोना से होने वाली मौतों का पंजीकरण और उनका रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था में सुधार लाना होगा, क्योंकि सही आंकड़ों से ही महामारी संबंधी सही तस्वीर सामने आएगी।
राज्य सरकारों को एक-दूसरे के अनुभवों से सीख लेनी होगी। पहली लहर के दौरान हल्के लक्षण दिखने पर होम आइसोलेशन, निजी अस्पतालों व प्रयोगशालाओं में इलाज संबंधी लागत पर कैपिंग और इलाज प्रक्रिया को आसान कर कुछ राज्यों ने मृत्यु दर कम करने में सफलता पाई थी। दूसरी लहर में मुम्बई और केरल ने ऑक्सीजन संकट की चुनौती से निपटने की योजना पहले ही बना ली थी। महाराष्ट्र के नांदुरबार जैसे जिलों में पहले से योजनाबद्ध कार्य करने का परिणाम रहा कि ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकी। यह सब विकेंद्रीकृत योजना की जरूरत और प्रभावी प्रतिक्रिया में हर स्तर की निर्णायक भूमिका को दर्शाता है। ऐसी केस स्टडी सभी राज्यों व जिलों के साथ साझा की जा सकती है।
महामारी से निपटने की कोशिशों के आकलन की मुख्य कसौटी यह है कि सरकारों ने अपनी तरफ से क्या कदम उठाए? क्या सरकारी उपायों से स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं में वृद्धि हुई या फिर लोगों को स्वयं अपनी देखभाल और सेवा करनी पड़ी? क्या महामारी के चलते लोगों को इलाज पर खर्च करना पड़ रहा है? जरूरत है कि स्वास्थ्य सेवाएं सभी को निशुल्क और समय रहते मिलें, सरकारें यह सुनिश्चित करें।
(लेखक जनस्वास्थ्य नीति, वैक्सीन और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ हैं)