जरूरी है सूखे और बाढ़ के संकट से बचाव की तैयारी
Published: May 24, 2023 09:32:26 pm
मौसम में अप्रत्याशित रूप से आ रहा बदलाव और अल नीनो की आशंका ने आने वाले दिनों में सूखे, बाढ़ और पानी के संकट के खतरे को बढ़ा दिया है। अमरीका के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अल नीनो के प्रभाव के चलते आने वाले महीनों में एशियाई देशों में बाढ़, सूखा और पानी के संकट के हालात बन सकते हैं। सेंटर के वैज्ञानिकों की मानें, तो जुलाई से इसका प्रभाव शुरू होकर नवम्बर-दिसम्बर और जनवरी में चरम पर दिखाई देगा।


जरूरी है सूखे और बाढ़ के संकट से बचाव की तैयारी
ज्ञानेंद्र रावत
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद मौसम में अप्रत्याशित रूप से आ रहा बदलाव और अल नीनो की आशंका ने आने वाले दिनों में सूखे, बाढ़ और पानी के संकट के खतरे को बढ़ा दिया है। अमरीका के क्लाइमेट प्रेडिक्शन सेंटर के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अल नीनो के प्रभाव के चलते आने वाले महीनों में एशियाई देशों में बाढ़, सूखा और पानी के संकट के हालात बन सकते हैं। सेंटर के वैज्ञानिकों की मानें, तो जुलाई से इसका प्रभाव शुरू होकर नवम्बर-दिसम्बर और जनवरी में चरम पर दिखाई देगा।
असलियत में देश में कुल खेती योग्य जमीन का लगभग 56 फीसदी हिस्सा बारिश पर ही आधारित है। जून से सितम्बर तक लगभग 73 फीसदी से अधिक बारिश दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है। यह फसल के लिए बेहद जरूरी है। ऐसे में प्रभावी प्रबंधन के माध्यम से सूखे के खतरे को कम किया जा सकता है। पानी में उगाई जाने वाली फसलें कम से कम बोने की किसानों को सलाह, तालाबों के निर्माण, नहरों की सफाई, नलकूपों को ठीक करने, खराब नलकूपों की मरम्मत या उन्हें बदलने की सरकार की सलाह आकस्मिक योजना का ही हिस्सा है। अलनीनो से मानसून में तकरीबन 15 से 18 फीसदी तक गिरावट की संभावना जताई जा रही है। अलनीनो के प्रभाव से 2016 में पड़ी गर्मी का रेकॉर्ड 2023 में टूट सकता है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रैंथम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का मानना है कि अल नीनो के कारण तापमान में तेजी से जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव का दायरा काफी बढ़ जाएगा। दुनिया के उन देशों के लिए जो पहले से ही हीट वेव का सामना कर रहे हैं, उनके लिए इसका मुकाबला कर पाना चुनौती भरा होगा। एशियाई देशों में अल नीनो के असर के चलते आसमान में नमी कम होने से बारिश नहीं होने के कारण सूखे जैसे हालात बन जाते हैं। यह खतरे का संकेत है। जापानी मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार इसके व्यापक स्तर तक पहुंचने की 80 फीसदी आशंका है, जो खतरे का संकेत है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह 80 फीसदी सामान्य प्रभाव वाला होगा, जबकि कुछ की मान्यता है कि यह 55 फीसदी से अधिक तक बहुत ही शक्तिशाली होगा।
भारतीय कृषि और अल नीनो का संबंध काफी पुराना है, जिसे दरगुजर नहीं किया जा सकता। और यह भी सच है कि अल नीनो दुनिया के जलवायु पैटर्न को बदलने की क्षमता रखता है। यह भी कि अल नीनो का सर्वाधिक प्रभाव बारिश के पैटर्न पर पड़ता है। इससे पेरू, मैक्सिको, चिली, दक्षिण-पश्चिमी अमरीका के सूखे और मरुस्थली इलाकों में भारी बारिश, बाढ़ और बर्फबारी हो सकती है। साथ ही ब्राजील, आस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, उत्तर-पूर्वी अमरीका और दक्षिणी एशिया यानी भारतीय उप महाद्वीप में सूखे की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत और ऑस्ट्रेलिया हो सकते हैं, जहां सूखे जैसी स्थिति का जोखिम सबसे ज्यादा होगा। समुद्र की सतह में गर्मी बढऩे से जलीय जीवों के जीवन पर खतरा बढ़ सकता है। फसलों की पैदावार में गिरावट का चौतरफा असर हमारी आर्थिक व्यवस्था पर पडऩे की आशंका है। तापमान में बढ़ोतरी का असर बारिश के संकट के रूप में नजर आएगा, जिससे समूची व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।
ऐसे राज्य जो पूरी तरह मानसून पर ही निर्भर हैं और वहां पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था भी नहीं है, उन इलाकों में यदि अच्छी बारिश नहीं होती है, तो वहां तिलहन, दलहन, कपास, धान और गन्ने की फसलें प्रभावित होंगी। मानसून की स्थिति खराब होने पर स्वाभाविक है कि इन फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस दशा में महंगाई भी बढ़ेगी। कृषि उपज में कमी का असर ग्रामीणों की मांग पर पड़ेगा। कृषि उत्पादन पर इस प्रकार के सूखे का असर निश्चित ही दूरगामी और काफी गंभीर होगा। इस तरह की आपदाओं के कारण अर्थव्यवस्था, खासकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इससे हुई तबाही के कारण गंभीर असर नजर आते हैं। हाल ही में म्यांमार और बांग्लादेश में आए शक्तिशाली चक्रवात मोका के दौरान एजेंसियों की चेतावनियों, स्थानीय सरकार की तैयारियों के कारण हजारों लोगों की जान बचाने में कामयाबी मिली। जहां तैयारियों में कमी रह गईं, वहां बड़ी तादाद में लोग हताहत हुए और अब भी लापता हैं। इसलिए सही समय पर बचाव के पर्याप्त उपाय तो किए ही जा सकते हैं।