हाल ही में एमएसएमई की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उदयमी वर्ष 2019 से नकदी के संकट का सामना कर रहे हैं। इस क्षेत्र को राहत देने के लिए सरकार ने लगभग 45 लाख एमएसएमई इकाइयों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये के ऋण देने की घोषणा की है, लेकिन न तो इसे पर्याप्त कहा जा सकता है और न ही यह व्यवहारिक है, क्योंकि बैंक से ऋण हासिल करने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमियों को कुछ शर्तें पूरी करनी होगी, जिसे पूरा करना सभी उद्यमियों के लिये आसान नहीं होगा.
आमतौर पर एसएमईऋण पर ब्याज दर अधिक होता है, क्योंकि बैंक बिना जमानत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमियों को कर्ज देता है। जमानत मुक्त ऋण होने के कारण ऐसे कर्ज के गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) होने की संभावना बढ़ जाती है. एनपीए का दबाव बैंक पर नहीं बढ़े के लिए सरकार इस तरह के ऋणों पर 100 प्रतिशत गारंटी देती है। चूँकि, मौजूदा एनपीए नियम सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधमियों के दबावग्रस्त खातों के पुनर्गठन की अनुमति नहीं देता है। लिहाजा, दबावग्रस्त खातों के एनपीए होने से उद्यमियों और बैंक दोनों पर दबाव बढ़ सकता है। अस्तु, उन्हें राहत देने की जरुरत है, ताकि उधमी अपने कारोबार को बचा सकें और बैंक पर एनपीए का ज्यादा दबाव नहीं बढ़े।
कोविद-19 की वजह से केंद्र सरकार की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है. राजस्व उगाही के लगभग सारे स्रोत फिलवक्त बंद हैं। हालात इतने ख़राब हैं कि 20 लाख करोड़ रूपये के राहत पैकेज की घोषणा के बाद सरकार को नई योजनाओं के क्रियान्वयन पर 1 साल के लिए रोक लगानी पड़ी है। इतना ही नहीं, बजट में घोषित 500 करोड़ रुपये तक की योजनाओं को भी 1 साल के लिये टाल दिया गया है, जबकि वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए नई योजनाओं को जारी रखने की अंतरिम मंजूरी पहले ही दे चुका था। इसके अलावा भी सरकार ने अधिकांश मंत्रालयों और विभागों की पहली तिमाही के व्यय में 15 से 20 प्रतिशत की कटौती की है।
यह स्थिति तब है, जब 20 लाख करोड़ रूपये के राहत पैकेज में पहले दी गई राहतों को भी शामिल किया गया है। उदाहरण के तौर पर लगभग 8 लाख करोड़ रूपये भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग प्रणाली में पहले ही प्रवाहित कर दिया था, जिसे भी इस पैकेज में शामिल किया गया है। पीएम किसान योजना के तहत दी जानी वाली आर्थिक सहायता को भी इस राहत पैकेज में शामिल किया गया है।
सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 में 30.4 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा था, जो पिछले वित्त वर्ष के 26.9 लाख करोड़ रुपये से तकरीबन 13 प्रतिशत अधिक है, लेकिन कोविद-19 की वजह से सरकार को खर्च की राशि को बढ़ाना होगा. चालू वित्त वर्ष में सरकार ने 4.2 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधारी के साथ 12 लाख करोड़ रुपये की उधारी जुटाने की भी योजना बनाई है। सच कहा जाये तो बिना उधारी लिए मौजूदा आर्थिक झंझावतों का सामना करना सरकार के लिए मुमकिन नहीं है।
भारत की खराब आर्थिक स्थिति का एक बहुत बड़ा कारण आर्थिक नीति के निर्धारण में अनिश्चितता का होना भी है. भारत में आर्थिक अनिश्चितता का पैमाना 81 महीनों के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. मई, 2020 में यह सूचकांक जनवरी के 48.1 से 3.6 गुना बढ़कर 173.3 के स्तर पर पहुंच गया है।
इसके पहले यह सूचकांक इतने उच्च स्तर पर अगस्त 2013 में पहुँचा था, जिसका कारण भारत द्वारा अमेरिकी सेंट्रल बैंक से उधार लेना था.
उस कालखंड में भारत की खस्ताहाल आर्थिक स्थिति के कारण बहुत सारे विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) अमेरिका में कम ब्याज दर पर उधारी लेकर भारत में उच्च प्रतिफल पाने की आशा में निवेश कर रहे थे, लेकिन बाद में बहुत से एफआईआई ने निवेश करना बंद कर दिया, जिसके कारण भारत में नकदी की समस्या पैदा हो गई।
मौजूदा स्थिति में कारोबारियों के लिए फिर से कारोबार शुरू करना आसान नहीं है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उधमियों को सीधे तौर पर राहत नहीं दी गई है। राहत घोषणा के साथ बहुत सारे किंतु-परंतु जोड़े गये हैं। इसलिए, बहुत कम उधमियों को बैंक से ऋण मिलने की उम्मीद है। समस्या मजदूरों एवं कामगारों की उपलब्धता की भी है। लॉकडाउन की वजह से अधिकांश मजदूर एवं कामगार अपने गाँव चले गये हैं। अब उन्हें वापिस काम पर बुलाना आसान नहीं है. फिलहाल भारत में आर्थिक अनिश्चितता भी अधिक है। अस्तु, आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए कारोबारियों को आर्थिक मदद देने के साथ-साथ मौजूदा सरकारी नीतियों में भी आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा.