दिल्ली देश की राजधानी है। वहां कौन नहीं रहता? राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, केबिनेट सचिव और दिल्ली की सरकार..सब! फिर दिल्ली को सर्वे में ६५वां स्थान मिलता है तो शर्म किसे आनी चाहिए? राजस्थान का अगर एक भी शहर रहने लायक टॉप २५ शहरों में नहीं है तो बदनामी किसकी होगी? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर राजनीति से ऊपर उठकर ही चिंतन-मनन होना चाहिए? कमियां एक दिन की नहीं हैं। दोषी अगर इन ४-५ सालों की सरकारें हैं तो वे सरकारें कैसे दोषमुक्त हो सकती हैं, जो इनसे पहले ६७ वर्ष रहीं? जरूरत इस बात की है कि कमियों को दूर किया जाए? रहने लायक शहरों के मापदण्डों को पूरी तरह स्पष्ट किया जाए और शहरी विकास की तमाम योजनाओं को चाहे वे केन्द्र की हों अथवा राज्यों की या फिर स्थानीय सरकारों की, उनमें समन्वय बनाया जाए। बातें तो सारे राजनीतिक दल शहरी विकास की योजनाओं को जमीनी स्तर पर बनाने की करते हैं लेकिन जब मौका मिलता है तब काम दिल्ली, जयपुर, भोपाल अथवा रायपुर यानी हर राज्य की राजधानी से ही होता है। किस शहर की क्या जरूरतें हैं, इससे कोई लेना-देना नहीं। स्मार्ट सिटी की अवधारणा सबके लिए एक जैसी है। डिजिटल भारत होना ठीक है लेकिन उससे पहले शहर को बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा और परिवहन की सुविधा मिलनी चाहिए। वहां की कानून व्यवस्था ऐसी हो कि महिला भी अकेले निकल सके।
आज के हालात में आदमी का भी अकेले निकलना मुश्किल होता जा रहा है। और यह हाल तो शहर के हैं। गांवों की हालत और चिंताजनक है। समझ नहीं आता कि हमारे राजनेता और अधिकारी, सुशासन के नाम पर दुनिया भर के जो दौरे करके आते हैं, उनकी सीख कहां काम आती है? बेहतर यही होगा कि सरकारें सबसे पहले दस मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान केन्द्रित करें और उसी के हिसाब से योजनाएं बनाएं। यह जरूरी नहीं है कि, पहले से बसे शहरों में भीड़ बढ़ाई जाए। जरूरी यह है कि उनके आसपास रहने लायक नए शहर बनाए जाएं।