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आख्यान : इस तरह दूर किया जगतमाता ने मैनावती की आशंकाओं को

locationनई दिल्लीPublished: Aug 04, 2021 10:42:28 am

Submitted by:

Patrika Desk

बारातियों के साथ शिव को देख मैनावती ने सोचा, ‘यह कैसा वर है प्रभु! पार्वती जैसी सुकुमारी कन्या इस वैरागी से ब्याही जा रही है?

आख्यान : इस तरह दूर किया जगतमाता ने मैनावती की आशंकाओं को

आख्यान : इस तरह दूर किया जगतमाता ने मैनावती की आशंकाओं को

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

(लेखक पौराणिक पात्रों और कथानकों पर लेखन करते हैं)

सेविकाओं ने दौड़ कर माता मैनावती को संदेश पहुंचाया, ‘अम्मा! बारात आ गई। द्वारपूजा हो रही है, चल कर उस अद्भुत वर को देख लो जिसके लिए पार्वती तप कर रही थी।’ मैनावती को लगा कि सेविका की बातों में व्यंग्य है, वे झटक कर गवाक्षों तक पहुंचीं। देखा, अड़भंगी शिव अद्भुत रूप में उपस्थित हैं। बारात, जिसमें देव-दानव, भूत-पिशाच, मनुष्य-पशु सभी आए हैं। किसी के हाथ नहीं हैं तो किसी के पूरे शरीर में केवल हाथ ही हाथ हैं। किसी के गले पर शीश नहीं तो किसी के दस-दस शीश हैं। जितने बाराती हैं, उनका स्वरूप उतने ही प्रकार का है। वर बने शिव अपने समूचे शरीर पर भभूत लपेटे हुए हैं जिसके कारण उनका स्वरूप विकराल दिख रहा है। वे बैल पर बैठे हैं, वस्त्र के नाम पर कमर में मृगछाला है और वक्ष पर उपवीत। माता ने सोचा, ‘यह कैसा वर है प्रभु! पार्वती जैसी सुकुमारी कन्या इस वैरागी से ब्याही जा रही है? हा देव!’ वे मूच्र्छित हो गईं।

मैनावती की मूच्र्छा टूटी तो उन्होंने देखा, उनका सिर उनकी मां की गोद में है और मां मुस्कुराती हुई उनका सिर सहला रही हैं। उन्हें आश्चर्य हुआ! उन्होंने आंखें बंद कर के खोलीं तो देखा, उनका सिर पुत्री पार्वती की गोद में है। वे घबरा गईं। सोचा, यह कैसी माया है? आंखों को पुन: बंद कर के खोला तो पाया, वे मां की गोद में हैं। वे घबरा कर बार-बार आंखें मींच कर देखतीं; पर हर बार वही लीला। कभी मां तो कभी पुत्री। अंतत: माता मैनावती समझ गईं, पुत्री पुत्री नहीं है जगतमाता है। शीश झुका लिया। पुत्री ने मुस्कुरा कर कहा, ‘उठो मां, संसार का स्वामी तुम्हारे दरवाजे पर जामाता बन कर आया है। स्वागत करो उसका…।’

शिव आंगन में आए तो पार्वती की सखियों ने परिहास किया, ‘शरीर में भभूत क्यों लपेटे हैं सरकार? पुरुष हैं तो क्या हुआ, सुन्दर दिखने का अधिकार तो आपको भी है। पार्वती जैसी सुन्दर कन्या के साथ विवाह हो रहा है आपका, उसके योग्य बनिए।’ शिव मुस्कुराए। बारात में आईं ऋषि पत्नियों ने उनकी ओर से उत्तर दिया, ‘भोले किसके लिए सजते सखी! सजाने वाली अब आ रही है तो सजने लगेंगे।’ ऋषियों ने मंत्रोच्चार प्रारम्भ किया, माता पार्वती ने शिव के गले में वरमाला डाल दी। सबने देखा, भभूत लपेटे औघड़ से दिखने वाले शिव करोड़ों कामदेवों से भी अधिक सुन्दर दिखने लगे थे। वर पक्ष की ऋषिपत्नियों ने कहा, ‘पुरुष का सौन्दर्य स्त्री की संगत में भी उभरता है।’ इस प्रकार महादेव माता पार्वती के हुए।

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