मैनावती की मूच्र्छा टूटी तो उन्होंने देखा, उनका सिर उनकी मां की गोद में है और मां मुस्कुराती हुई उनका सिर सहला रही हैं। उन्हें आश्चर्य हुआ! उन्होंने आंखें बंद कर के खोलीं तो देखा, उनका सिर पुत्री पार्वती की गोद में है। वे घबरा गईं। सोचा, यह कैसी माया है? आंखों को पुन: बंद कर के खोला तो पाया, वे मां की गोद में हैं। वे घबरा कर बार-बार आंखें मींच कर देखतीं; पर हर बार वही लीला। कभी मां तो कभी पुत्री। अंतत: माता मैनावती समझ गईं, पुत्री पुत्री नहीं है जगतमाता है। शीश झुका लिया। पुत्री ने मुस्कुरा कर कहा, ‘उठो मां, संसार का स्वामी तुम्हारे दरवाजे पर जामाता बन कर आया है। स्वागत करो उसका…।’
शिव आंगन में आए तो पार्वती की सखियों ने परिहास किया, ‘शरीर में भभूत क्यों लपेटे हैं सरकार? पुरुष हैं तो क्या हुआ, सुन्दर दिखने का अधिकार तो आपको भी है। पार्वती जैसी सुन्दर कन्या के साथ विवाह हो रहा है आपका, उसके योग्य बनिए।’ शिव मुस्कुराए। बारात में आईं ऋषि पत्नियों ने उनकी ओर से उत्तर दिया, ‘भोले किसके लिए सजते सखी! सजाने वाली अब आ रही है तो सजने लगेंगे।’ ऋषियों ने मंत्रोच्चार प्रारम्भ किया, माता पार्वती ने शिव के गले में वरमाला डाल दी। सबने देखा, भभूत लपेटे औघड़ से दिखने वाले शिव करोड़ों कामदेवों से भी अधिक सुन्दर दिखने लगे थे। वर पक्ष की ऋषिपत्नियों ने कहा, ‘पुरुष का सौन्दर्य स्त्री की संगत में भी उभरता है।’ इस प्रकार महादेव माता पार्वती के हुए।