scriptइस एक बात को जानने के बाद आप भूल से भी नहीं खाएंगे टॉफी, च्यूइंगम और चॉकलेट्स | Jiletin and its side effect | Patrika News

इस एक बात को जानने के बाद आप भूल से भी नहीं खाएंगे टॉफी, च्यूइंगम और चॉकलेट्स

Published: Dec 14, 2017 02:28:04 pm

जिलेटिन बनाने के लिए जानवरों की हड्डियों, जोड़ों और उनकी खाल को पानी में उबाला जाता है

jiletin and side effects

jiletin and side effects

– मेनका संजय गांधी

मैं टॉफी नहीं खाती क्योंकि इनमें जिलेटिन का इस्तेमाल होता है। वर्षों देखने-परखने के बाद मुझे यह ज्ञात हुआ कि ज्यादातर टॉफियों में जिलेटिन इस्तेमाल होता है। एक बार मैं मेरी एक मित्र की दुकान पर कुछ खरीदने के लिए गई। कुछ समय बिताने के बाद मेरी निगाह गई, जब खाद्य सामग्री के पैकेटों पर लाल और हरे रंग के स्टिकर लगाए जाने लगे तो मेरी उस सहेली ने सारी टॉफियों के ऊपर लाल रंग के स्टिकर जो शाकाहारी नहीं होने को सूचित करते हैं, लगा दिए। इनमें मेरी खास पसंदीदा काले रंग की टॉफी भी शामिल थी।
उसने बताया वह और उसके जैसे दुनिया भर के अन्य दुकानदार चीन से ये टॉफियां खरीदते हैं और उन्हें दोबारा नई पैकिंग में बेचते हैं। इसके बाद से ही मैंने तय कर लिया मैं अब ये टॉफियां नहीं खाऊंगी। जिलेटिन एक प्रकार का गंधहीन, रंगहीन पदार्थ है, जो जैली बनाने व गाढ़ा करने के लिए काम में लिया जाता है। जब इसे गर्म पानी में डाला जाता है तो यह घुल जाता है और ठंडा होने पर जैल बन जाता है। विभिन्न खाद्य पदार्थों को जिलेटिन के माध्यम से अधिक स्वादिष्ट बनाया जाता है। इसका इस्तेमाल टॉफियों व चॉकलेटों, बेबी जैली, मिंट, च्युंगम, आईसक्रीम, डिब्बा बंद केक, आईसिंग, फ्रॉस्टिंग, क्रीम चीज, दही, क्रीम, पॉपटाटर्स, भुनी हुई नमकीन आदि बनाने में होता है।
कॉफी व दुग्ध उत्पादों, चीनी डम्पलिंग्स, कॉस्मेटिक्स (हाइड्रोलाइज्ड कोलेजन के नाम से) शैम्पू, फेसमास्क में भी जिलेटिन का इस्तेमाल किया जाता है। वसा कम करने वाले खाद्य उत्पादों में भी जिलेटिन का इस्तेमाल कर ऐसा स्वाद बनाया जाता है, जिससे बिना अतिरिक्त वसा डाले उसकी अनुभूति हो। इसका इस्तेमाल डिब्बाबंद जूस जैसे सेब का रस व सिरका बनाने के लिए भी किया जाता है। सारे पेय पदार्थों में पाया जाने वाला पीला रंग जिलेटिन की वजह से ही आता है।
जिलेटिन बनाने के लिए जानवरों की हड्डियों, जोड़ों और उनकी खाल को पानी में उबाला जाता है। इनमें 28 फीसदी सूअरों की चर्बी व 27 फीसदी गायों के मांस का इस्तेमाल किया जाता है जबकि एक प्रतिशत किसी भी जानवर की चमड़ी का। जिलेटिन बनाने के लिए जानवरों के बचे हुए उन अंगों का इस्तेमाल किया जाता है जो मांस उद्योग के किसी काम के नहीं होते जैसे पैर, खाल, सींग हड्डियां आदि। इसमें कोई पोषक तत्व नहीं पाया जाता, इसका इस्तेमाल बस पदार्थ को गाढ़ा करने वाले जैल के रूप में किया जाता है।
इसे किस वजह से खाद्य पदार्थ माना गया, समझ से परे है। दरअसल यह जानवरों के बेकार अंगों व अम्ल या एल्केलाइन के संयोग से बना पदार्थ है, जो बाजार में करीब 545 रुपए प्रति किलो बेचा जा रहा है। इसका कारोबार बढ़ता ही जा रहा है । भारत में 2016 से 2024 के बीच देश में डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों के कारोबार में 6-7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है, खासतौर पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में। शाकाहारियों को अब तक इस प्रकार की खाद्य पदार्थ सामग्री के लिए अगर-अगर (एक प्रकार की समुद्री काई) पर निर्भर रहना पड़ता था। इसके विकल्प हैं कैरागीनन, पैक्टिन, कोंजक व ग्वार गम आदि। हाइप्रोमैलोस को जिलेटिन कैप्सूल का समुचित विकल्प माना जा सकता है लेकिन इसका उत्पादन अधिक महंगा पड़ता है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो