scriptपत्रकारिता वही सही जो रहे देशवासियों के हित से बंधी | Journalism is right which is tied to the interest of countrymen | Patrika News

पत्रकारिता वही सही जो रहे देशवासियों के हित से बंधी

locationनई दिल्लीPublished: Mar 08, 2021 10:57:48 am

– मनोरंजन बाजार में तब्दील होता जा रहा अब सूचना का बाजार
– जन माध्यम का उद्देश्य ही पाठकों और दर्शकों को बनाना, उनकी रुचियों का परिष्कार करना रहा है। हिन्दी के पाठकों में वह विवेक अपेक्षित है कि जिसके बल पर वे यह निर्णय कर सकें कौन पत्र उन्हें नई अभिज्ञता दे सकेगा, रुचि का परिमार्जन कर सकेगा और विवेक को संवर्धित कर सकेगा।

पत्रकारिता वही सही जो रहे देशवासियों के हित से बंधी

पत्रकारिता वही सही जो रहे देशवासियों के हित से बंधी

कृपाशंकर चौबे

भारत के पहले समाचार पत्र ‘हिकीज बंगाल गजट; ऑर द ओरिजिनल कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ का प्रकाशन जेम्स आगस्टस हिकी नामक अंग्रेज ने 29 जनवरी 1780 को किया था। उस अंग्रेजी साप्ताहिक के मास्टहेड यानी अखबार के नाम के ठीक नीचे लिखा होता था – ‘ए वीकली पॉलिटिकल एंड कमर्शियल पेपर, ओपन टु ऑल पार्टीज बट इन्फ्लुएंस्ड बाइ नन।’ इस तरह भारत में पत्रकारिता की प्रेरणाएं, प्रयोजन और प्रतिज्ञाएं उसके स्थापना काल में ही जनोन्मुखी थीं। हिकी ने ही भारत में इस विधा को जन्म दिया था। यह भारतीय पत्रकारिता की आदि प्रतिज्ञा है कि उसे हर पक्ष के प्रति उन्मुक्त रहना चाहिए किंतु प्रभावित कि सी से नहीं होना चाहिए। हिकी का अखबार ईस्ट इंडिया कंपनी से प्रभावित होकर उसका कभी पिछलग्गू नहीं बना, बल्कि अंग्रेजी शासन की अनीति की आलोचना करता रहा। उसके कारण हिकी पर जुर्माने लगे, उसे जेल भेजा गया किंतु उसने अपना रुख नहीं बदला। जिस कोलकाता में ‘हिकीज बंगाल गजट’ निकला, वहीं हिंदी पत्रकारिता का भी जन्म हुआ। हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ 30 मई 1826 को कलकत्ता से निकला तो उसके संपादक युगल किशोर शुक्ल ने प्रवेशांक में ही लिखा था, ‘यह ‘उदंत मार्तण्ड’ अब पहले पहल हिन्दुस्तानियों के हित के हेतु…।’ इसमें पत्रकारिता की एक परिभाषा भी अंतर्निहित है कि पत्रकारिता वह है जो देशवासियों के हित से बंधी हो। ब्रिटिश शासन काल में हिंदुस्तानियों का हित स्वाधीनता हासिल करने के संघर्ष में निहित था इसलिए ब्रिटिश हुकूमत का बराबर कोपभाजन बनने के बावजूद स्वाधीनता संग्राम के लिए जनमानस को तैयार करने के मिशन को लेकर भारतीय भाषाओं में अनेक समाचार पत्र निकले। इनमें पहला स्मरणीय नाम है दिल्ली से 8 फरवरी 1857 को अजीमुल्ला खां के संपादन में निकले ‘पयामे आजादी’ का। इसी तरह 1907 में शांतिनारायण भटनागर द्वारा इलाहाबाद से प्रकाशित उर्दू साप्ताहिक ‘स्वराज’ के सब मिलाकर 75 अंक निकले। ‘स्वराज’ का ध्येय वाक्य था: हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा है। देश प्रेम के लिए ‘स्वराज’ का जो आवेग था, उस आईने में समकालीन हिंदी पत्रकारिता को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि क्या उसमें वह आवेग बचा हुआ है?

समकालीन हिंदी पत्रकारिता को इस पर भी आत्मपरीक्षण करना चाहिए कि वह भारतीय पत्रकारिता की आदि प्रतिज्ञा की कसौटी पर खरा उतर रही है? क्या वह किसी से सचमुच प्रभावित नहीं होती? आज की पत्रकारिता को इस पर भी आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या उसका मूल लक्ष्य देशहित है? पहले के अखबारों के लिए देश हित सबसे ऊपर होता था। वे पाठकों को बनाते थे। जन माध्यम का उद्देश्य ही पाठकों और दर्शकों को बनाना, उनकी रुचियों का परिष्कार करना रहा है। हिन्दी के पाठकों में वह विवेक अपेक्षित है कि जिसके बल पर वे यह निर्णय कर सकें कौन पत्र उन्हें नई अभिज्ञता दे सकेगा, रुचि का परिमार्जन कर सकेगा और विवेक को संवर्धित कर सकेगा। वैज्ञानिक और शैक्षणिक प्रगति का लाभ पाठक व दर्शक उठा सकें और भूमंडलीकरण के सांघातिक प्रभावों से अपने को बचा सकें।

भूमंडलीकरण के दबाव ने मीडिया का स्वरूप और चरित्र बदल डाला है। उदारीकरण के फलस्वरूप उभरी नई विश्व अर्थव्यवस्था में हाशिए के समाज के लिए मीडिया में बहुत कम जगह बची या नहीं बची है। बाजारवाद के इस दौर में सर्वहारा की आवाज सुनने वाले बहुत कम जन माध्यम हैं। विचारणीय यह भी है कि आज तेज गति से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है। पूरे विश्व का सूचना बाजार गर्म है, बल्कि वह मनोरंजन बाजार की शक्ल में तब्दील हो चुका है और इसमें भारतीय पत्रकारिता और पाठक आत्मविस्मृत हैं। पाठक या दर्शक इसमें अपनी सुध-बुध खोता जा रहा है। केबल टीवी का जाल फैलता जा रहा है।

विदेशी उपग्रह चैनलों के आने से भारत के सांस्कृतिक जीवन में साम्राज्यवादी संस्कृति का दबाव भी बढ़ा है। क्या इससे भारत के वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक गौरव और पहचान के विकृत होने का अंदेशा नहीं है? यह प्रश्न भी आज कम अहम नहीं है।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में जनसंचार के प्रोफेसर हैं)

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