न्याय, सबूत और वकील
Published: Apr 08, 2016 11:59:00 pm
टे लीविजन धारावाहिक अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी आत्महत्या मामले में शक की सुई उनके बॉयफ्रेंड राहुल राज की
टे लीविजन धारावाहिक अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी आत्महत्या मामले में शक की सुई उनके बॉयफ्रेंड राहुल राज की ओर घूम रही है। उन्होंने गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर बचाव के लिए जिस वकील को तय किया, उसी ने उन्हें कटघरे में खड़ा कर पैरवी करने से मना कर दिया। राहुल को अग्रिम जमानत की अपील के लिए अन्य वकील की सेवाएं लेनी पड़ीं। सवाल यह है कि क्या कोई वकील अपने मुवक्किल को इस तरह मझधार में छोड़ सकता है? असत्य के पक्ष में मुकदमा नहीं लडऩा वकालत के पेशे के लिहाज से कितना सही है? यदि सारे वकील ऐसा ही करें तो आरोपित को अपना पक्ष रखने का मौका कैसे मिलेगा? ऐसे ही मुद्दों पर स्पॉटलाइट…
मनन कुमार मिश्रा चेयरमैन, बीसीआई
टेलीविजन धारावाहिक की प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी के बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह का मामला या हो किसी अन्य का मामला, यदि एक बार केस लेने के बाद अधिवक्ता उसे बीच में ही छोड़ देता है तो यह गैर पेशेवराना रवैया ही कहलाएगा। एक बार केस हाथ में लेने के बाद मामले को अंजाम तक पहुंचाए बिना बीच में छोडऩा ठीक नहीं कहा जा सकता।
कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि बहुत से अधिवक्ता एक स्वर में कहते हैं कि वे फलां आरोपित व्यक्ति का केस नहीं लड़ेंगे। इस तरह के मामले अलग होते हैं।
ऐसा तब होता है जबकि आरोपित के बारे में स्पष्ट होता है कि उसने अपराध किया है। हालांकि केवल अपनी मान्यता के आधार पर किसी को अपराधी मानकर केस नहीं लडऩा ठीक नहीं है लेकिन अधिवक्ता आगे बढ़कर ही पहले से कह दें कि फलां व्यक्ति का केस वे नहीं लड़ेगे तो ऐसे मामले में वे न तो आरोपित से मिलते हैं और न ही उससे किसी तरह की बात करते हैं। जब कोई वकील तय कर ले कि उसे अपने मुवक्किल का मुकदमा लडऩा है और इस मामले में मुवक्किल से बात करके, पीछे हट जाए तो उसे गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कहा जाएगा। अब राहुल राज के वकील ने किस से तरह मुकदमा लडऩे से मना किया, इस बारे में कुछ भी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में उसे गैर पेशेवराना करार देना ठीक नहीं है।
काम ही बचाव करना
हम अधिवक्ता हैं और हम हमारे मुवक्किल की बात को आगे रखकर केस लड़ते हैं। इस बात को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए, यदि हमारे मुवक्किल ने कोई हत्या की है तो बतौर अधिवक्ता हमें यह नहीं जानना चाहिए, वह हमें क्यों नहीं बता रहा है कि उसने हत्या की है। हमारे काम का दायरा यह है कि हमारा मुवक्किल कह रहा है, वह बेकसूर है। हमें उसकी कही गई बात को सही मानते हुए आगे बढऩा है और उसका पक्ष न्यायालय में रखते हुए उसे निर्दोष साबित करना है। यह बात सही है कि कई बार निजी जानकारियों के मुताबिक हम मानते हैं कि फलां व्यक्ति दोषी है, इसके बावजूद हमारी जानकारी एक तरफ हैं। हम हमारी जानकारियों को न्यायालय में नहीं बोल सकते। यह गैर पेशेवराना हो जाएगा।
जांच एजेंसी नहीं
हमारा काम किसी भी मामले की जांच करना नहीं है। हम जांच एजेंसी भी नहीं है। हमारा काम है, हमारे मुवक्किल के पक्ष को न्यायालय के सामने पेश करना। हमारे काम का दायरा सीमित है और इसे समझना बेहद जरूरी है। हम किसी मामले के चश्मदीद गवाह तो होते नहीं हैं। ऐसे में हमारा मुवक्किल हमारे पास आता है और कहता है कि वह निर्दोष है और खुद को निर्दोष साबित करने के लिए उसके पास जो दस्तावेज हैं, जानकारियां है, वह वकील को बताता है। केवल इन्हीं जानकारियों के आधार पर केस को लडऩा होता है। वकालत के पेशे के सिद्धांत इस बात की अनुमति नहीं देते कि हम निजी जानकारियों से निर्देशित हों। बहुत बार बड़े-बड़े मामले सामने आते हैं और उस मामले पर मीडिया कुछ कह रहा होता है, लोग कई तरह की बातें कर रहे होते हैं।
वंचितों को मिले न्याय
ऐसे में इन सारी बातों के आधार पर वकील तय करने लग जाएं कि वे केस लड़ें या नहीं लड़ें तो शायद कोई किसी भी आरोपित को वकील उपलब्ध ही नहीं होगा। हमारे पास कोई भी वंचित, परेशान व्यक्ति आता है, वह न्याय पाने की आस में पूरे विश्वास के साथ आता है। वह जानता है कि वह जितना बताएगा, कोर्ट में वकील उतना ही कहेगा। कई बार हमारे पेशे की चिकित्सकों के पेशे से तुलना की जाती है लेकिन चिकित्सा सेवा का पेशा अलग है और हमारा पेशा बिल्कुल अलग है। हम डॉक्टर की तरह कोई जांच या अनुसंधान नहीं करते। डॉक्टर मरीज से बहुत सी बाते पूछते भी हंै लेकिन हम ऐसा नहीं करते। मुवक्किल की ओर से दी गई जानकारी व तथ्यों से केस को ईमानदारी के साथ लडऩा ही हमारा पेशा है।
यह है प्रकरण
टीवी अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी के कथित आत्महत्या मामले से उसके मित्र राहुल राज सिंह के वकील ने खुद को अलग कर लिया है। राहुल राज सिंह पर अपनी प्रेमिका प्रत्यूषा बनर्जी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। प्रत्यूषा की मां सोमा की ओर से बंगुरनगर पुलिस थाने में दर्ज करायी गई शिकायत के आधार पर पुलिस ने एक प्राथमिकी दर्ज की थी जिसके बाद कल राहुल के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। राहुल की अग्रिम जमानत भी खारिज हो गई है।
&’मैं मानवीय आधार पर मामले से अलग हुआ हूं। मुझे महसूस हुआ कि मुझे यह केस नहीं लडऩा चाहिए और इससे अलग हो गया ताकि किसी के साथ अन्याय नहीं हो।Ó- राहुल के वकील नीरज गुप्ता