स्त्री अधिकार और समानीकरण के मुद्दे को लेकर हैरिस के पहले भाषण को देखना-समझना होगा, जिससे चीजेें स्वत: ही स्पष्ट हो जाती हैं। हैरिस महिलाओं की बात करते हुए कहती हैं कि महिलाएं हमारे लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं, वे औरतें जिन्होंने 100 वर्ष पहले 19वें संशोधन के लिए लड़ाई लडऩे के अलावा दशकों मताधिकार के लिए संघर्ष किया है। यह उस संघर्ष की याद दिलाता है, जहां स्त्री को एक नागरिक होने की अर्हता हासिल करने के लिए एक लंबी लड़ाई छेडऩी पड़ी हो। इसी क्रम में हैरिस कहती हैं, ‘इस पद पर पहुंचने वाली वह पहली महिला हो सकती हैं, लेकिन इस कड़ी में वह अंतिम नहीं हैं। ‘वे कहती हैं, ‘आज के इस पल ने हर वर्ग की महिलाओं के लिए रास्ता बनाया है। इस कथन के पीछे जो दर्शन है वह यह कि स्त्री जीवन, साहचर्य और आकांक्षाओं की संभावनाओं का विस्तृत वितान रचने का सामथ्र्य रखता है पर इस वितान की सिकुडऩ का भय भी गाहे-बगाहे सालता रहता है।
एशियाई समाज में तो उस पर यह सोच लाद दी जाती है कि वह कैसे कपड़े पहने, कैसे हंसे, कैसे चले, कैसे बोले इत्यादि। स्त्री होने के साथ नस्लभेद की बात भी की जाए, तो चोट दोहरी हो जाती है। यदि स्त्री बड़े पद पर पहुंचकर स्त्री हितों की रक्षा और समतावादी समाज की स्थापना के प्रयास करे, तो बेहतर समाज की आशा की जा सकती है। कमला हैरिस अल्पसंख्यकों के मुद्दों और असमानता की खाई को पाटने के लिए लगातार काम करती रही हंै। ऐसे में उनसे कुछ उम्मीद तो बंधती है।