ओपिनियन

तय होगी हैसियत

एक ओर दागी नेताओं को टिकट और दूसरी ओर नकदी- शराब की बरामदगी साबित करती है कि चुनाव सुधार को लेकर चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं।

May 13, 2018 / 10:38 am

सुनील शर्मा

karnataka assembly election

कर्नाटक विधानसभा के लिए मतदान शनिवार को होगा। इस चुनाव के परिणाम 15 मई को जो भी निकले, लेकिन एक बात तय है कि नतीजों से देश की सियासत में तमाम नए समीकरण बनेंगे। हिंदुत्व, सॉफ्ट हिंदुत्व, जाति और क्षेत्रीय राजनीति के जो प्रयोग बीते कुछ माह से भाजपा और कांग्रेस सरीखे राजनीतिक दल कर रहे थे, उसका अगला परिष्कृत संस्करण आगे लोकसभा चुनावों में आजमाया जाएगा, या तीसरा मोर्चा, महागठबंधन जैसी कोई नई इबारत उकेरी जाएगी यह इस परिणाम से ही तय होगा।
चिंता की बात यह है कि स्वच्छ राजनीति और लोकतंत्र की मजबूती की फिक्र करने वाले तबके के लिए तो यह चुनाव निराशाजनक ही रहा है। एक ओर दागी नेताओं को टिकट और दूसरी ओर नकदी- शराब की बड़ी बरामदगी यह साबित करती है, कि चुनाव सुधार को लेकर चुनौतियां लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। ये घटने का नाम नहीं ले रही हैं। नैतिकता और मर्यादा का राजनीति से निर्वासन स्थायी भाव की ओर बढ़ता ही जा रहा है। सत्ता हासिल करने के लिए सभी दल नीचे गिरने की होड़ में जुट गये हैं। यह भी कटु सत्य है कि इस पतन में सोशल मीडिया बड़ा राजनीतिक हथियार बन गया है।
झूठ को सच और सच को झूठ दिखाने का एक ऐसा खेल शुरू हुआ है, जो चुनावी मौके पर जनता को मुद्दों से भटकाकर असल तस्वीर से दूर कर देता है। इंटरनेट का बढ़ता दायरा एक ओर हमें तमाम लाभ दे रहा है लेकिन फेक न्यूज का खतरा इसके साथ ही गांवों में प्रवेश करता जा रहा है। ग्रामीणों को उनकी ही स्थानीय भाषा में खतरनाक झूठ परोसा जा रहा है। हर दल से जुड़े लोग और अन्य असामाजिक तत्व आभासी दुनिया की इस अराजकता का पूरा फायदा उठा रहे हैं।
इस चुनाव से निकली अलग-अलग ध्वनि और उनकी आवृत्ति देखें तो यह भी स्पष्ट है कि पार्टियों की अपनी पहचान और उनकी नीतियां तो अब चर्चा में ही नहीं आतीं, क्योंकि उनमें भेद खत्म होता जा रहा है। बहरहाल, इन हालातों के बीच कर्नाटक की जनता के विवेक पर हमें भरोसा करना चाहिए। यह उम्मीद की जाना चाहिए कि पिछली बार करीब 70 फीसदी वोटिंग वाले इस राज्य में मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा और जनता अपने फैसले से सभी दलों और नायकों की सियासी हैसियत तय कर देगी।

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