अधर में जनादेश
कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने जिस तरह से बूथ प्रबंधन किया, वह भी इस चुनावी जीत का कारण बना।

- संदीप शास्त्री, राजनीतिशास्त्री
कर्नाटक विधानसभा के लिए जो नतीजे आए हैं, उनसे यह तो साफ है कि भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई है। लेकिन अपने बूते पर सत्ता पाने के लिए भाजपा जरूरी बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई है। यों तो यह मतदान के पहले ही कहा जा रहा था कि जनता दल (एस) त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में ‘किंगमेकर’ की भूमिका में रहने वाली है, लेकिन बदली परिस्थितियों में जद (एस) की अहमियत बढ़ गई है।
सत्ता की दौड़ में पिछड़ी कांग्रेस ने जद (एस) के नेता कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया है। कांग्रेस व जद (एस) के एक साथ जाने के फैसले के बावजूद भाजपा भी अपनी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिखती है। इस दक्षिण भारतीय प्रदेश में ऐसी राजनीतिक परिस्थितियां कोई नई बात नहीं है। पहले भी जब भाजपा सत्ता में आई थी, तब वह ११० सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि तब निर्दलीयों का सहारा उसको बहुमत की तरफ ले गया था। बेंगलूरु के म्युनिसिपल चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, लेकिन कांग्रेस व जद (एस) ने मिलकर बोर्ड बनाया। अब जो हालात बने हैं, उनमें कांग्रेस का मुख्य मकसद कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से बाहर रखना है। इसीलिए वह तीसरे नंबर की पार्टी को भी मुख्यमंत्री पद सौंपने को तैयार है।
जो खबरें आ रहीं हैं, उनके मुताबिक जद (एस) सुप्रीमो पूर्व पीएम एच.डी. देवगौड़ा ने कांग्रेस के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है। अब सबकी निगाहें कर्नाटक के राज्यपाल वजूभाई वाला की ओर हैं। सब जानते हैं कि वजूभाई वाला गुजरात में भाजपा के प्रमुख नेताओं में से रहे हैं। अभी जो खबर आई है, उसके मुताबिक राज्यपाल ने कांग्रेस नेताओं को मुलाकात का समय नहीं दिया। यों तो सबसे बड़े दल के रूप में सरकार बनाने का स्वाभाविक दावा भाजपा के पास है, लेकिन गोवा व पूर्वोत्तर के अनुभवों को देखते हुए इस परिपाटी का ठोस आधार नहीं लगता। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण देकर बहुमत साबित करने का मौका दें। बहुमत के आंकड़े से भाजपा जितनी दूर है, उससे खरीद-फरोख्त के बिना सब कुछ संभव हो पाएगा, ऐसी उम्मीद कम ही है।
हालांकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है, इसलिए फिलहाल कयासों के दौर ही रहने वाले हैं। कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के परिणाम यदि जद (एस) नेता कुमारस्वामी की ताजपोशी कराने में कामयाब हो जाते हैं तो इसे वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी होने वाले कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन की शुरुआत कहा जा सकता है। हो सकता है कि ऐसे गठबंधन का अस्तित्व लंबे समय तक नहीं रह पाए।
कांग्रेस को चुनाव में इस तरह की शिकस्त मिलने का अंदाजा चुनाव प्रचार की शुरुआत में किसी को नहीं था। मई के आरंभ तक माना जा रहा था कि कांग्रेस व भाजपा में कांटे का मुकाबला है। लेकिन पहली तारीख से १० तारीख के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनाव रैलियों ने भाजपा के पक्ष में काफी माहौल बनाया। राजनीतिक विश्लेषक यही अनुमान लगा रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार दक्षिण कर्नाटक में भी भाजपा ने पैर जमाए हैं।
दरअसल, कांग्रेस के पास भाजपा की आक्रामक प्रचार शैली का जवाब नहीं रहा। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश कर भाजपा के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश जरूर की, लेकिन भाजपा ने उल्टा दांव चल दिया। उसने इसे हिंदुओं को बांटने का मुद्दा बनाया।
इन चुनावों में भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसकी संगठन क्षमता में नजर आई। भाजपा ने जिस तरह से बूथ प्रबंधन किया, वह भी इस चुनावी जीत का कारण बना। कांग्रेस के पास इस संगठनात्मक तैयारी का माकूल जवाब नहीं था। रहा सवाल जद (एस) का, तो कांग्रेस के वोटों में वह भी सेंध लगाने में कुछ हद तक सफल मानी जा सकती है। इसीलिए उसका प्रदर्शन इन चुनावों में उम्मीद से ज्यादा रहा। कहा तो यह भी जा रहा है कि कर्नाटक विधानसभा के इन चुनावों में राजनीतिक दलों ने पानी की तरह पैसा बहाया है। हर चुनाव में इस तरह के सवाल आते हैं, लेकिन मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि ज्यादा धन खर्च करने वाले नेता या दल को चुनाव में जीत हासिल होती है।
बहरहाल कांगे्रेस, कर्नाटक का यह चुनाव हार गई है। उसके नेताओं ने भी यह बात मान ली है। कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का दांव खेलकर कांग्रेस एक तरह से नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस-मुक्त भारत के अभियान को रोकने का प्रयास भी करेगी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई भाजपा सरकार बनाए या फिर कांग्रेस के सहयोग से जद (एस) के नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनें, यही सवाल अगले एक-दो दिन तक राजनीतिक परिदृश्य में छाया रहेगा। सारा दारोमदार कर्नाटक के राज्यपाल की भूमिका पर रहने वाला है।
Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें (Hindi News App) Get all latest Opinion News in Hindi from Politics, Crime, Entertainment, Sports, Technology, Education, Health, Astrology and more News in Hindi