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अहम सवाल: अबकी बार-किसकी सरकार

locationनई दिल्लीPublished: Feb 21, 2019 04:46:00 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अपने करिश्मे को बरकरार रखने और सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चुनौतियां हैं।

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अहम सवाल: अबकी बार-किसकी सरकार

अनंत मिश्रा

हर चुनाव से पहले उठने वाला ‘यक्ष प्रश्न’ एक बार फिर से देश के सामने खड़ा है। राजनीतिक विश्लेषकों के साथ-साथ राजनीतिक दलों, राजनेताओं के अलावा आम जनता भी इस सवाल का जवाब जानना चाहती है कि आखिर ‘अबकी बार-किसकी सरकार।‘ हर बार की तरह देश का मिजाज जानने का दावा करने वाली चुनाव एजेंसियां इस बार भी पूरे दम-खम के साथ मैदान में उतरने के लिए कमर कस रही हैं। लेकिन लाख टके का एक और सवाल हम सबके सामने मुंह बाए खड़ा है। सवाल ये कि चंद हजार लोगों से चंद सवाल पूछकर क्या 135 करोड़ जनता के मानस को समझा जा सकता है? अधिकांश लोगों का जवाब शायद ना होगा।
विविधताओं वाले इस देश के राजनीतिक मूड को समझने के लिए सर्वेक्षण एजेंसियों पर आंख मूंद कर भरोसा करना सही नहीं होगा। देश ने 2004 में समय से पहले चुनाव के पीछे के ‘शाइनिंग इंडिया’ नारे को ध्वस्त होते हुए देखा है, तो 2009 में तमाम धारणाओं के विपरीत मनमोहन सिंह सरकार की सत्ता में वापसी को भी देखा है। पांच साल पहले हुए चुनाव में नरेन्द्र मोदी के
नेतृत्व में एनडीए के 336 सीटें जीतने का अनुमान कितने लोगों को रहा होगा। अत: यह कहने और समझने में संकोच नहीं होना चाहिए कि देश का हर आम चुनाव पिछले चुनाव से अलग होता आया है। हर चुनाव में मतदाता राजनीतिक दलों के साथ राजनेताओं को भी संदेश देता है। अब ये अलग बात है कि उस संदेश को कितने लोग समझ पाते हैं। पांच राज्यों में आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के संदेश को भी समझने की जरूरत है। इससे लोकसभा चुनाव की भावी तस्वीर का आकलन करने में मदद मिल सकती है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जनमत भाजपा के विरुद्ध रहा। तीनों राज्यों में कांग्रेस सत्ता पाने में कामयाब हो गई। तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति पर मतदाताओं ने फिर भरोसा जताया तो पूर्वोत्तर का छोटा राज्य मिजोरम कांग्रेस के हाथ से फिसल गया। ये तो हुआ पहला संदेश। नतीजों का दूसरा संदेश ये कि राजस्थान-मध्यप्रदेश में भाजपा हारी, लेकिन कांग्रेस उम्मीदों के अनुरूप जीत दर्ज करने में नाकामयाब रही। राजस्थान में कांग्रेस को भाजपा से महज आधा फीसदी मत अधिक मिले, तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बनाने के बावजूद भाजपा के मुकाबले आधा फीसदी मतों से पिछड़ गई।

सियासी सौदेबाजी के लिए विकल्प खुले रख रहे छोटे दल

अलग-अलग राज्यों में चुनाव से पहले नए गठजोड़ बन और टूट रहे हैं। चन्द्रबाबू नायडू और उपेन्द्र कुशवाहा मोदी सरकार का साथ छोड़ चुके हैं तो महाराष्ट्र में शिवसेना और उत्तर प्रदेश में अपना दल भाजपा को आंखें दिखा रहे हैं। बिहार में पिछली बार आमने-सामने रहे भाजपा और जद-यू एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
यही हाल यूपीए का है। महागठबंधन का फार्मूला जमीन पर फिलहाल नजर नहीं आ रहा। अभी तय नहीं है कि सपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनता दल और वामपंथी दल किधर जाएंगे? तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक भी अभी अधरझूल में दिख रही है। यानी इन सभी दलों ने तमाम विकल्पों को खुला रखा है। चुनाव नतीजे आने के बाद ये दल नए सिरे से रणनीति बना सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने अपने करिश्मे को बरकरार रखने और सहयोगियों को साथ लेकर चलने की चुनौतियां हैं।
कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की हार मोदी केलिए बड़ा झटका है। इस बार मोदी को अपनी उपलब्धियों के सहारे मतदाताओं के सामने जाना होगा। रेाजगार, नोटबंदी, रफाल और राममंदिर जैसे मुद्दों पर जनता को जवाब देना होगा।
राहुल गांधी भी पहले के मुकाबले परिपक्व नजर आ रहे हैं। विधानसभा चुनावों की जीत ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया है। लेकिन दिल्ली जीतने के लिए पहले अखिलेश यादव, मायावती, ममता बनर्जी के साथ दूसरे छोटे दलों में स्वीकार्यता की परीक्षा राहुल को पास करनी जरूरी है।

15 साल, 2 पीएम

आजादी के बाद से ही मिले मताधिकार का सुखद पहलू ये है कि बीते 15 साल में देश ने दो ही प्रधानमंत्री देखे हैं। पांच साल से मोदी इस पद पर हैं तो पहले दस साल तक मनमोहन सिंह थे। 1947 से 1977 तक तीस साल में भी जेएल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री व इंदिरा गांधी पीएम पद पर रहे। पहले 30 साल और अभी के 15 साल में कुल पांच पीएम। लेकिन 1977 से 2004 के बीच 27 सालों में देश ने 10 पीएम देखे थे।
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