व्यंग्य राही की कलम से
युद्ध में पराजित होने के बाद जब हुमायूं नदी पार करते वक्त डूबने लगा तो एक भिश्ती ने उसे अपनी मशक में हवा भर के बचाया और अपनी जान बचाने की एवज में हुमायूं ने भिश्ती को एक दिन का बादशाह बना दिया। बादशाह बनने के बाद भिश्ती समझ नहीं पाया कि वह क्या करे तो उसने ‘चमड़े के सिक्के’ ही चला दिए।
एक दिन का बादशाह बनने के दिन तो अब लद गए लेकिन अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली में हमने कुछ महीने के प्रधानमंत्री, कुछ दिनों के मंत्री और कुछ अर्से के मुख्यमंत्री जरूर देखे हैं। इधर कभी-कभी हमारे मंत्री कभी सुझावों के नाम पर, कभी सलाहों के नाम पर एक प्रतियोगितानुमा खेल करवाते हैं जिसमें वह जनता से कहते हैं कि अगर वे एक दिन के मंत्री होते तो क्या करते।
पिछले दिनों रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने यह खेल खेला। सुना है रेल मंत्री को करीब एक लाख सुझाव आये। अब सुझाव देने में अपने बाप का जाता क्या है? वैसे भी भारतीय समाज में एक से एक सुझाव विशेषज्ञ हैं। जिसके घर में कभी वकील नहीं हुआ वह अदालत में दांवपेंच के सुझाव दे सकता है। जिसने कभी खेती नहीं की वह एक कृषि विशेषज्ञ बन कर भाषण दे देता है। स्वास्थ्य सम्बंधी सुझावों के तो हम बादशाह हैं।
जुकाम से लेकर कैंसर उन्मूलन तक की विधि चुटकियों में बता सकते हैं। डेंगू, चिकनगुनिया, वायरल और टायफाइड का इलाज इस विश्वसनीयता से बताते हैं जैसे हमें साल में छह महीने चिकनगुनिया होता रहता है। अब कोई हमसे कहे कि तुम्हें एक दिन का प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो तुम क्या करोगे?
तो भैया हम एक काम जरूर करेंगे। हम एक ऐसा कानून जरूर बनाएंगे जिसके अंतर्गत बिन मांगे सलाह देने वालों को एक वर्ष सश्रम कारावास का प्रावधान होगा। हमें पता है कि इसके पहले अभियोगी हम खुद होंगे क्योंकि बिना मांगे सलाह देने की हमें पुरानी बीमारी है। महंगाई, भ्रष्टाचार, दंगे, गौरक्षा इनके बारे में क्या रोना, यह हमारी शाश्वत बीमारी है।
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