हिन्दी गजल के आधारभूत मापदंडों की बात करें तो सबसे पहले गजल कहने के लिए बहर (मीटर) का ज्ञान होना जरूरी है। गजल एक निश्चित बहर में ही कही जा सकती है। बहर लघु यानी छोटी और दीर्घ यानी बड़ी मात्राओं (जिन्हें वजन भी कहते हैं) के शब्दों का एक निर्धारित क्रम और संयोजन होता है। जैसे अ या ब के लिए 1 मात्रा और आ या अन्य संयुक्त अक्षरों जैसे है, हां, रे, री, ई आदि के लिए 2 मात्राओं का प्रयोग करते हैं। आधे अक्षर को नहीं गिना जाता। इन मात्राओं के संयुक्त संयोजन से एक बहर निर्मित कर गजल की भावभूमि तैयार की जाती है। हिन्दी गजल के दूसरे अंग हैं रदीफ और काफिया। गजल में रदीफ वह होता है पूरी गजल में जिसकी आवृत्ति उसी रूप में बिना किसी परिवर्तन के बार-बार होती है। जबकि काफिया में दूसरे शब्द से तुक मिला कर नया सार्थक शब्द बनाया जाता है और यह रदीफ से ठीक पहले आता है। इसे गजल के एक इस मुखड़े के उदाहरण से समझ सकते हैं – चाहे कुछ दिन बाद करेगा… तू भी मुझको याद करेगा। इसमें ‘करेगा’ रदीफ और ‘बाद’ और ‘याद’ काफिया है।
गजल में दो पंक्तियों के संयोजन से एक ‘शेर’ बनता है। एक गजल कई शेरों का एक गुलदस्ता होती है। गजल के पहले शेर को ‘मतला’ कहते हैं। एक गजल में कम से कम 5 शेर होना जरूरी होता है। गजल का हर शेर एक-दूसरे से स्वतंत्र हो सकता है। अच्छी गजल कहने के लिए बहर, लय और ध्वनिबोध और अच्छी भाषा की समझ होनी चाहिए।