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Kushabhau Thackeray Birth Centenary Year : भारतीय गणतंत्र के निस्पृह राजनीतिक-संन्यासी

locationनई दिल्लीPublished: Aug 30, 2021 09:41:27 am

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Patrika Desk

Kushabhau Thackeray Birth Centenary Year : जन कल्याण ही था कुशाभाऊ ठाकरे के जीवन का लक्ष्य।ठाकरे ने जीवनपर्यंत मूल्यों पर आधारित राजनीति का अनुसरण किया।
कुशाभाऊ ठाकरे जन्म शताब्दी वर्ष पर पढिय़े केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का ये लेख …

Kushabhau Thackeray Birth Centenary Year

Kushabhau Thackeray Birth Centenary Year

नरेंद्र सिंह तोमर
(लेखक केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री हैं)

Kushabhau Thackeray Birth Centenary Year : अपनी साधारण जीवन-शैली और निष्काम कर्मयोग से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि समाज में राजनीतिक-शक्ति की तुलना में नैतिक-शक्ति की प्रभावशीलता और मान्यता ज्यादा है। देश में सार्वजनिक जीवन में नैतिक और राष्ट्रीय मूल्यों का तेजी से क्षरण हो रहा है। ऐसे दौर में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत कुशाभाऊ ठाकरे (Kushabhau Thackeray) के जन्म शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम शुरू हो रहे हैं। यह संयोग सार्वजनिक जीवन में उन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित करने का एक अवसर प्रदान करता है, जिनकी कमी को यह देश शिद्दत से महसूस कर रहा है।

ठाकरे के त्यागमय जीवन और उनके राजनीतिक एवं सामाजिक अवदान का पुनर्पाठ उन राजनीतिक मान्यताओं की पुनस्र्थापना के लिए जरूरी है, जो सार्वजनिक जीवन में तेजी से गुम होती जा रही हैं। ठाकरे के पारदर्शी जीवन पर यदि नजर डालें तो उनकी जीवटता हमें चौंकाती है। सिद्धांतों के प्रति उनकी सजगता, सतर्कता और समर्पण सार्वजनिक जीवन में बिरले ही देखने को मिलती है। सत्ता के ऊपर संगठन की सर्वोच्चता उनके राजनीतिक मानकों को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है। हमें उनके बारे में इससे ज्यादा कोई उदाहरण देने की जरूरत नहीं है।

ठाकरे ने जीवनपर्यंत मूल्यों पर आधारित राजनीति का अनुसरण किया। मूलत: वे संगठन के आदमी थे। संगठन से दूर सत्ता में उन्हें घुटन-सी महसूस होती थी। कई मर्तबा उन्हें सत्ता की ओर धकेलने के प्रयास हुए और हर मर्तबा उन्होंने संगठन में ही लौटना पसंद किया। किसी भी संगठन को गढऩे के लिए जरूरी अर्हताएं उनमें कूट-कूट कर भरी थीं। उनकी सादगी के सभी लोग कायल थे। वे कभी थकते नहीं थे। संगठन की जड़ों को मजबूत करने के लिए वे लगातार जुटे रहते थे। उन पर राजनीति के प्रलोभनों का कभी असर होता नहीं था। वे बड़ी से बड़ी बात सरलता से कह देते थे। शायद इसीलिए कार्यकर्ताओं से काम लेने की उनकी क्षमता बेमिसाल थी। आज वे हमारे बीच में नहीं हैं, फिर भी मध्य प्रदेश में मेरे जैसे अनगिनत भाजपा कार्यकर्ता होंगे, जिन्हें कभी भी अलग से कुशाभाऊ ठाकरे को याद करने की जरूरत नहीं होती है। वक्त-बेवक्त अथवा अनुकूलताओं और प्रतिकूलताओं के बीच वे हम सब लोगों की राजनीतिक-दिनचर्या का हिस्सा बनकर कहीं भी, कभी भी सामने खड़े हो जाते हैं।

उनके साथ काम करने और संगठन को खड़ा करने का अनुभव आज भी हम सब लोगों को दिशा-निर्देश देता है कि अमुक राजनीतिक-समस्या के निदान के लिए कौन-सा मार्ग अख्तियार करना बेहतर होगा? मध्य प्रदेश में या अन्य कई राज्यों में यदि भाजपा संगठन और उसकी सरकारें नैतिक धरातल पर सफलतापूर्वक अपने काम को अंजाम देती नजर आ रही हैं, तो उसका एकमात्र कारण यही है कि पार्टी और सरकार में अनेक महत्त्वपूर्ण स्थानों पर वे लोग काम संभाल रहे हैं, जिनकी राजनीतिक-परवरिश कुशाभाऊ ठाकरे जैसी शख्सियत की देख-रेख में हुई है। उन्होंने इन कार्यकर्ताओं के राजनीतिक-संस्कारों को तराशा है। वे आजीवन सत्य के पक्षधर बने रहे। सत्य और संगठन के हितों की खातिर वे कभी भी कोई समझौता नहीं करते थे और न ही किसी विपरीत परिस्थिति में वे किसी के आगे घुटने टेकते थे। सत्य और सिद्धांत की जमीन पर सत्ता और संगठन का बड़े से बड़ा व्यक्ति उन्हें झुका नहीं सकता था।

ठाकरे ने अपने कर्म-योग और जीवन शैली से राजनीतिक सत्ता की मदांधता और मादकता से जुड़े उन सभी मुहावरों को गलत सिद्ध किया है, जो सार्वजनिक जीवन में हर कदम पर देखने और सुनने को मिलते हैं। सत्ता और संगठन के शिखर के आसपास उनकी प्रभावी और कार्यशील उपस्थिति के बावजूद वे अहंकार, मदांधता और निरंकुशता जैसे दुर्गुणों से कोसों दूर थे, जो आम राजनीतिक कार्यकर्ताओं में सहज ही देखने को मिल जाते हैं। हम लोगों ने निकटता से उनके जीवन की सादगी, सरलता, निश्छलता, सामथ्र्य और विनम्रता को देखा और महसूस किया है। दो जोड़ी धोती-कुर्ता, चादर और माता पिता की एक फोटो तक सीमित टिन के एक छोटे से बक्से में समा जाने वाली उनकी छोटी-सी दुनिया का नैतिक धरातल कितना विशाल, व्यापक और विराट था, यह हम लोगों ने नजदीक से जाना है। शायद ठाकरे जैसे राजनीतिक-कर्मयोगी के उदात्त व्यक्तित्व की बदौलत ही भाजपा खुद को ‘ए पार्टी विद डिफरेंसÓ के रूप में प्रस्तुत करने का दंभ पालती थी।

उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने जो शानदार सफलता पाई है, उसमें कुशाभाऊ की राजनीतिक-साधना का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ठाकरे का सम्पूर्ण जीवन भाजपा को ही समर्पित रहा है। संगठन ही उनके लिए परिवार था और उनकी सारी जिंदगी भारतीय जनता पार्टी के आंगन में ही बीती थी। जनसंघ के जमाने से संगठन के लिए समर्पित ठाकरे भाजपा की संगठनात्मक-संरचना के प्रमुख शिल्पकारों में से एक थे।

उन्हें पहली मर्तबा जैसा देखा था, वे अंतिम समय तक वैसे ही बने रहे। उनके भीतर के अपने संघर्ष, शारीरिक-पीड़ाएं और परेशानियां कभी मुखर होकर उनकी राजनीतिक और सामाजिक साधना में व्यवधान पैदा नहीं कर पाईं। उनका जीवन कभी भी निजता के पिंजरे में कैद नहीं रहा। उनकी संवेदनाएं मनुष्यता के कल्याण के लिए हर वक्त बेचैन रहती थीं। शायद इसीलिए समीक्षक ठाकरे को भारतीय गणतंत्र का निस्पृह राजनीतिक-संन्यासी मानते हैं। वे समाज में जन-कल्याण की भावनाओं से आच्छादित राजनीति रोपना चाहते थे। अपनी साधारण जीवन-शैली और निष्काम कर्मयोग से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया था कि समाज में राजनीतिक-शक्ति की तुलना में नैतिक-शक्ति की प्रभावशीलता और मान्यता ज्यादा है।

ठाकरे की जिंदगी का स्पष्ट संदेश यह है कि राजनीति की दुनिया में अंधेरी ताकतों से लडऩे वाले योद्धाओं को आगे भी पूरी जीवटता के साथ सक्रिय रहना पड़ेगा, क्योंकि अभी हम सत्ता के माध्यम से जन-कल्याण के उन लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सके हैं, जो मानव-कल्याण के लिए आवश्यक हैं। ठाकरे के लिए राजनीति भले ही उनके कर्म का साधन रही हो, लेकिन उनका साध्य हमेशा समाज ही था। राष्ट्रीय जीवन के शिखर पर विराजमान हस्तियों में ठाकरे जैसे कालजयी समर्पित व्यक्तित्व के उदाहरण बिरले ही कहीं मिल पाएंगे…।

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