लेखक टिमोथी आर. क्लार्क ने अपनी पुस्तक, ‘द 4 स्टेज ऑफ साइकोलॉजिकल सेफ्टी: डिफाइनिंग द पाथ टु इनक्लूजन एंड इनोवेशन’ में बताया है कि मनोवैज्ञानिक सुरक्षा चार चरणों में स्थापित की जा सकती है। पहला चरण कर्मचारियों को संगठन में ‘शामिल’ महसूस कराना है। निर्णय लेने की प्रक्रिया में कर्मचारियों को सीधे उनकी टीम या कार्य को प्रभावित करने वाले निर्णयों के लिए शामिल करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है। अगला चरण कर्मचारियों के ‘निर्माण’ पर केंद्रित है। तीसरे चरण में, कर्मचारी ‘प्रेरित’ होते हैं और नए विचारों पर अपने अनूठे दृष्टिकोण को साझा करने के लिए सुरक्षित महसूस करते हैं, साथ ही उन्हें इस बात का भय नहीं होता कि उनके विचारों के आधार पर उन्हें विचित्र या अतार्किक व्यक्ति के रूप में आंका जाएगा। इससे नवाचार के दायरे का विस्तार होता है। इसे टीम के अग्रणी द्वारा चिंतनशीलता से सुनने के भाव और सक्रिय और सहज बातचीत से प्राप्त किया जा सकता है। उन्हें लगातार सुझाव मांगने चाहिए व अपनी मूल योजनाओं/ रणनीतियों में संशोधन के लिए तैयार रहना चाहिए।
अंतिम चरण, जिसे प्राप्त करना आमतौर पर सबसे कठिन होता है, वह स्थिति है जहां कर्मचारी निडर होकर मौजूदा प्रणाली में कमियों और सीमाओं पर सवाल उठाते हैं और यथास्थिति को चुनौती देते हैं। यहीं से उन्हें सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा मिलती है। टीम लीडर्स के निरंतर प्रयासों से इस मुकाम तक पहुंचा जा सकता है। उन्हें स्थापित प्रणालियों और प्रक्रियाओं के प्रति अपनी आत्मीयता और लगाव से हटकर निरंतर सुधार की जरूरत को स्वीकारने की आवश्यकता है।