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नेतृत्व: क्यों पैदा होता है नियंत्रण में विरोधाभास

locationनई दिल्लीPublished: Jan 24, 2022 03:58:35 pm

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Patrika Desk

Prof. Himanshu Roy Article on Leadership: प्रशासन और शोषण के बीच अंतर की एक महीन रेखा है। जब नियंत्रण की इच्छा किसी की आत्म-छवि या सम्मान का हिस्सा बन जाती है, तो कोई भी विचलन या परिवर्तन, बेचैनी और हताशा को जन्म देता है। नियंत्रण विरोधाभास इसी प्रकार उत्पन्न होता है। अधिकार और नियंत्रण के बिना, अराजकता पनपती है जो बेचैनी और विनाश लाती है।

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प्रो. हिमांशु राय
(निदेशक, आइआइएम इंदौर)
मनुष्य हमेशा अपने आसपास की दुनिया को व्यवस्थित और संयोजित करने के प्रयास में लगे रहते हैं। यह जीवन को आदर्श, सुगम और सरल बनाता है और इससे काम करने में आसानी होती है। यहां तक कि प्रकृति भी, व्यापक दृष्टिकोण से, एक प्रकार के ‘पैटर्नÓ अर्थात प्रतिमान का पालन करती है, जिसे घटनाओं के प्रत्याशित परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को अनुकूलित करने के लिए समझा जा सकता है। नियमों, प्रक्रियाओं, नीतियों और मानदंडों के माध्यम से संगठन और मानकीकरण का भाव मानव जाति की प्रगति में सहायक रहा है। न्याय, समानता, आदि जैसी अवधारणाओं को समाहित करने की मानवीय क्षमता एक जीवित समाज और संस्कृति की नींव रही है। इस के आधार पर ही प्रकृति के विपरीत, नम्र लोगों को भी फलने-फूलने और प्रबल होने के अवसर मिलते हैं, जहां अन्यथा केवल ‘मत्स्य न्याय’ का नियम लागू होता है, और सिर्फ योग्यतम ही जीवित रहता है। लेकिन अनुमान और नियंत्रण के साथ, शक्ति, अधिकार और पात्रता की भावना भी उत्पन्न होती है, क्योंकि व्यक्ति तंत्र और लोगों को प्रभावित करने की क्षमता का अनुभव करता है।

शक्ति और अधिकार, दोधारी तलवारें हैं। यह समझने वाला व्यक्ति स्वीकारता है कि इच्छाशक्ति के बावजूद बाहरी प्रणालियों को नियंत्रित करने की एक सीमा है और कुछ पहलुओं को कभी भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता। जाहिर है, कि प्रशासन और शोषण के बीच अंतर की एक महीन रेखा है। जब नियंत्रण की इच्छा किसी की आत्म-छवि या सम्मान का हिस्सा बन जाती है, तो कोई भी विचलन या परिवर्तन, बेचैनी और हताशा को जन्म देता है। नियंत्रण विरोधाभास इसी प्रकार उत्पन्न होता है। अधिकार और नियंत्रण के बिना, अराजकता पनपती है जो बेचैनी और विनाश लाती है। अनियंत्रित अधिकार या नियंत्रण की शक्ति को अगर एक व्यक्ति आत्म-मूल्य से जोड़े, तो यह उसे भ्रष्ट कर सकती है।

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नियंत्रण की असीम इच्छा से व्यवस्थाओं का शोषण होता है और संसाधनों, प्रयासों और समय की बर्बादी होती है। एक ओर जहां बहुत कम नियंत्रण उप-इष्टतम है, वहीं, इसका बहुत अधिक होना दीर्घकालिक विकास के लिए हानिकारक है और व्यावहारिक रूप से अप्राप्य भी है। उपयुक्त नियंत्रण की मात्रा निर्धारित करने में संदर्भ और परिस्थितियां प्रमुख कारकों में से हैं। यह लीडरों और प्रबंधकों के लिए जटिल चुनौती है, क्योंकि इसकी गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए एक संतुलन बनाए रखने की भी आवश्यकता होती है। यही संतुलन सफलता की ओर अग्रसर भी करता है और तनाव और मानसिक दबाव से भी मुक्ति दिलाता है।

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