शक्ति और अधिकार, दोधारी तलवारें हैं। यह समझने वाला व्यक्ति स्वीकारता है कि इच्छाशक्ति के बावजूद बाहरी प्रणालियों को नियंत्रित करने की एक सीमा है और कुछ पहलुओं को कभी भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता। जाहिर है, कि प्रशासन और शोषण के बीच अंतर की एक महीन रेखा है। जब नियंत्रण की इच्छा किसी की आत्म-छवि या सम्मान का हिस्सा बन जाती है, तो कोई भी विचलन या परिवर्तन, बेचैनी और हताशा को जन्म देता है। नियंत्रण विरोधाभास इसी प्रकार उत्पन्न होता है। अधिकार और नियंत्रण के बिना, अराजकता पनपती है जो बेचैनी और विनाश लाती है। अनियंत्रित अधिकार या नियंत्रण की शक्ति को अगर एक व्यक्ति आत्म-मूल्य से जोड़े, तो यह उसे भ्रष्ट कर सकती है।
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नियंत्रण की असीम इच्छा से व्यवस्थाओं का शोषण होता है और संसाधनों, प्रयासों और समय की बर्बादी होती है। एक ओर जहां बहुत कम नियंत्रण उप-इष्टतम है, वहीं, इसका बहुत अधिक होना दीर्घकालिक विकास के लिए हानिकारक है और व्यावहारिक रूप से अप्राप्य भी है। उपयुक्त नियंत्रण की मात्रा निर्धारित करने में संदर्भ और परिस्थितियां प्रमुख कारकों में से हैं। यह लीडरों और प्रबंधकों के लिए जटिल चुनौती है, क्योंकि इसकी गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए एक संतुलन बनाए रखने की भी आवश्यकता होती है। यही संतुलन सफलता की ओर अग्रसर भी करता है और तनाव और मानसिक दबाव से भी मुक्ति दिलाता है।
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