माई लॉर्ड! प्रश्न यह भी है कि देशभर में खुशी की लहर क्यों है? क्या इसमें न्यायपालिका की संवैधानिक प्रक्रिया के प्रति रोष नहीं दिखाई पड़ता? निर्भया काण्ड के आरोपी अभी तक सजा के लागू होने से दूर हैं। इस घटना ने तो रावण के आसुरी अत्याचारों को भी श्रेष्ठ साबित कर दिया था। क्यों नहीं उन्हें आज तक सजा दे पाई न्यायपालिका? क्या जनता क्रोधित नहीं होगी? जो कुछ बलात्कारियों ने उन्नाव गैंगरेप पीडि़ता के साथ किया, क्या जनमानस उद्वेलित नहीं होगा? तीन दिसम्बर को ही राजस्थान में सवाईमाधोपुर की पॉक्सो कोर्ट ने एक मामले में पुलिस की ओर से दायर पूरक चार्जशीट को रद्द करके मूल चार्जशीट के मुख्य आरोपी को ही फिर से मुख्य आरोपी घोषित किया है। पुलिस ने उसे आरोप मुक्त ही कर दिया था। क्या आप इस बात से भी पूर्ण संतुष्ट हैं कि हैदराबाद के चारों मृतक गैंगरेप में शामिल थे या कोई दर्शक भी रहा होगा अथवा बेकसूर भी होगा। अब प्रमाण की बात कैसी?
पुलिस फाइल बन्द करने का कह रही है। उधर कल फरीदकोट में यौन पीडि़ता डॉक्टर न्याय के लिए डी.सी. कार्यालय के बाहर साथियों के साथ धरने पर बैठी। पुलिस उसे ही उठा कर ले गई। वाह! देशभर में बलात्कारियों के हौंसले बुलंद हैं। कहीं तो घरों में घुसकर गैंगरेप को अंजाम दे रहे हैं। पुलिस हमदर्दी के नाम पर खुलकर पीडि़ताओं का शोषण कर रही है। आरोपी भी पुलिस की सहायता से कोर्ट से बरी हो रहे हैं। जिनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं, वहां पीडि़ताओं के सामने और उनके परिजनों के सामने धमकियां और दबावों की बौछार होती है। न्याय मिलना इस देश में दूर की कौड़ी है। फिर पीडि़ता यदि गरीब परिवार से हो तो?
माई लॉर्ड! आज की यह कानूनी प्रक्रिया शीघ्र न्याय प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है। यह देरी ही जनआक्रोश का मुख्य कारण है। और यह भी सच है कि व्यक्ति भावावेश में फिर कोई बड़ी गलती कर बैठता है। हैदराबाद की एनकाउण्टर की घटना कानूनी रूप से सही नहीं कही जा सकती, मानवाधिकार की दृष्टि से भी आरोपियों को अपनी बात कहने का अधिकार था, जो उनसे छीन लिया गया। यह लोकतांत्रिक नहीं है, किन्तु जनता की प्रतिक्रिया भी उतनी ही सत्य है। कानून जनभावनाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
ऐसे गंभीर/संगीन अपराधों पर न्याय में देरी अन्याय ही होगा। इसके लिए निर्णय आपके स्तर पर ही होना चाहिए। कानून प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन हो जाने चाहिएं। जिस तेजी से समय और संसाधन बदल रहे हैं, मानसिकता किसी अन्य दिशा में समाज को खींच रही है, वहां अपराधी के मन में भय पैदा करना ही पहली आवश्यकता है। माई लॉर्ड! आज देश में बलात्कार की घटनाएं, हत्याओं से ढाई गुना अधिक हो चुकी हैं और रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं। कारण अपनी जगह हैं।
कानूनी प्रक्रिया सरल एवं अल्पावधि की होनी चाहिए। एक तो एफआईआर तुरन्त होना आवश्यक है। पुलिस की कारस्तानियां यहीं से शुरू हो जाती हैं। दूसरे, ऐसे मामलों के लिए उच्चतम न्यायालय में ही अलग बेंच होनी चाहिए। गैंगरेप के मामले नीचे किसी भी कोर्ट में न जाएं। आपके अधीन जांच हो और तुरन्त सजा सुना दी जाए। पूरा देश आपके आगे नतमस्तक रहेगा। अपराधी राख हो जाएंगे और उनके संरक्षक भी।