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आत्म-दर्शन : भवरोग नाशक

locationनई दिल्लीPublished: Oct 12, 2021 12:11:59 pm

Submitted by:

Patrika Desk

आध्यात्मिक विचार परिपक्व होते ही जीवन में आनन्द-माधुर्य, ऐश्वर्य-सौन्दर्य आदि दिव्यताएं स्वत: स्फुरित होने लगती हैं। सद्विचार व शुभ-संकल्प में प्रतिकूलताओं के परिहार का अपूर्व सामथ्र्य विद्यमान होता है।

आत्म-दर्शन : भवरोग नाशक

आत्म-दर्शन : भवरोग नाशक

स्वामी अवधेशानंद गिरी

जीवन अंतहीन संभावनाओं और अवसरों का अखंड स्रोत है। आध्यात्मिक व्यक्ति प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थिति में अनुकूलता और उचित अवसर ढूंढ लेता है। अध्यात्म, आत्मा के ज्ञान से संबन्धित है और जिस मार्ग पर चलकर ये प्राप्त हो सकता है, वह ज्ञान अनन्त है। आध्यात्मिक विचार परिपक्व होते ही जीवन में आनन्द-माधुर्य, ऐश्वर्य-सौन्दर्य आदि दिव्यताएं स्वत: स्फुरित होने लगती हैं। सद्विचार व शुभ-संकल्प में प्रतिकूलताओं के परिहार का अपूर्व सामथ्र्य विद्यमान होता है।

सनातन-शास्त्र कथन है कि भवरोग नाशक औषधि है – सद््िवचार। अध्यात्म जीवन निस्वार्थ होता है। आध्यात्मिक विचारों के अभाव में व्यक्ति पथ-भ्रष्ट हो जाता है। सांसारिक ज्ञान से अहंकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान से विनम्रता आती है।

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