डब्ल्यूएचओ ने जो रिपोर्ट जारी की है वह वायु प्रदूषण के संशोधित मानकों के आधार पर है। बड़ी चिंता इस बात की है कि कोरोना महामारी में भी पन्द्रह फीसदी मरीजों की मौत की वजह पीएम-२.५ को माना गया है। सीधे तौर पर कोरोना संक्रमितों के श्वसन तंत्र में आई समस्याओं की बड़ी वजह वायु प्रदूषण भी रहा है। यही वजह है कि कोरोना की दूसरी लहर शहरों के साथ-साथ शहर बनते जा रहे गांवों में ज्यादा मारक साबित हुई। तीसरी लहर यदि आई तो बच्चों पर खतरा ज्यादा होगा, यह आशंका लंबे समय से जताई जा रही है। यह प्रदूषण बच्चों की रोग प्रतिरोधकता कम करने वाला बन कर सामने आया है।
पहले ही हमारे यहां अधिकांश महानगर प्रदूषण के तय मानकों पर खरे नहीं उतर रहे थे। डब्ल्यूएचओ ने प्रदूषण के पैमाने को लेकर जो नए मानक जारी किए हैं, उनके मुताबिक तो कई छोटे-बड़े शहर भी वायु प्रदूषण के तय मानक पर खरे उतर पाएंगे इसमें संदेह है। वायु प्रदूषण का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है। जाहिर है चिकित्सा सेवाओं पर भी इसका दबाव पड़ता है। ऐसे दौर में जब पहले ही दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था कोविड के कारण प्रभावित हुई है, सेहत के मोर्चे पर यह दबाव और भयावह हो सकता है।
देखा जाए तो वायु प्रदूषण का खतरा दुनिया भर में इस कदर बढ़ गया है कि बचाव के खास इंतजाम किए बिना राहत की उम्मीद नहीं की जा सकती। वह भी ऐसे दौर में, जब उद्योगों, वाहनों समेत तमाम दूसरे माध्यमों से हम सब वायु प्रदूषण बढ़ाने में ही लगे हुए हैं। ऐसे में सिर्फ एक ही तरीका है कि प्रदूषण की रोकथाम के प्रयास ईमानदारी से किए जाएं। तमाम वैश्विक मंचों पर तो प्रदूषण रोकथाम की चर्चा हो ही, सभी तरह का प्रदूषण कम करना सरकारों की प्राथमिकता में आना ही चाहिए।