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सलाह तक सीमित

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की केरल इकाई के नेताओं को अपने तमाम मतभेद भुला एकजुट हो विधानसभा

Feb 10, 2016 / 10:54 pm

मुकेश शर्मा

rahul gandhi

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की केरल इकाई के नेताओं को अपने तमाम मतभेद भुला एकजुट हो विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा है। सलाह अच्छी है पर सवाल यह है कि केवल केरल ही क्यों? हर राज्य क्यों नहीं और हर चुनाव क्यों नहीं? सवाल यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि पार्टी के सारे नेता अपने मतभेद भुलाकर एकजुट हों, इसके लिए नेतृत्व क्या कर रहा है? क्या यह राहुल गांधी से छिपा है कि कांग्रेस की दिल्ली से लेकर देश के तमाम राज्यों तक क्या हालत है? कार्यकर्ताओं की बात छोडि़ए, नेता तक ऐसे लड़ते दिखाई देते हैं जैसे जन्म-जन्म के दुश्मन हों। केरल में तो भ्रष्टाचार और यौन शोषण के आरोप पिछले सालों में कई नेताओं पर लगे हैं। राहुल गांधी जब केरल के दौरे पर हैं तब वहां की कांग्रेस सरकार शायद चुनाव से ठीक पहले अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से गुजर रही है। मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियों पर आरोप लग रहे हैं।


आरोपों का सच जांच से तय होगा लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि इस सबके पीछे पार्टी के ही कुछ धुरंधरों का हाथ है। अरुणाचल की तो अच्छी-भली बहुमत वाली सरकार खुलेआम विद्रोह से चल बसी। वहां के विधायक नेतृत्व परिवर्तन की मांग करते कई बार दिल्ली तक आए और लौट गए। कोई उनकी सुनने वाला, निर्णय करने वाला ही नहीं था। केरल और अरुणाचल अकेले नहीं हैं। लगता है अन्दरूनी कलह ऐसी बीमारी है जिसने पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर घेर रखा है और पूरी पार्टी राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने या नहीं बनने के सवाल में ही उलझी हुई है। बेशक किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनावी हार-जीत स्थाई नहीं होती। होती रहती हैं लेकिन फिर सवाल यही है कि क्या उसे अपने अस्तित्व की सबसे बुरी हार पर चिंतन-मनन नहीं करना चाहिए? एक सौ तीस साल पुरानी पार्टी होने का दम भरने वाली कांग्रेस 2014 की शर्मनाक हार के कारणों पर बाईस माह बाद बैठक तक नहीं कर पाई है।


 इस बीच अनेक राज्यों में हारे पर कहीं कोई चिंतन नहीं हुआ। कई राज्यों में पार्टी अध्यक्षों पर बदलाव की तलवार लटक रही है तो कई राज्यों में उन्हें दस-दस साल पुरानी कार्यकारिणी से काम चलाना पड़ रहा है। कांग्रेस की सर्वोच्च नीति नियामक संस्था- कार्यसमिति का भी यही हाल है। महीनों में कभी कोई बैठक होती है, वह भी किसी बड़े नेता के निधन पर शोक व्यक्त करने को। राहुल गांधी युवा हैं। तमाम तरह की आलोचनाओं के बावजूद उस परिवार से हैं जिसने पार्टी को हर मुश्किल समय में नेतृत्व दिया है।


तब केवल यह कहने भर से काम नहीं चलेगा कि कांग्रेस को कांग्रेस ही हरा सकती है। उन तत्वों को हराना होगा जो ऐसा करते हैं। इससे पहले कि पार्टी कार्यकर्ता उनके नेतृत्व क्षमता पर अंगुली उठाए, उन्हें दृढ़ता के साथ फैसलों का सिलसिला शुरू करना चाहिए। फैसलों में कमियां रह सकती हैं लेकिन वे हों तो सही। और पार्टी की एकजुटता के लिए फैसले होना और उन पर दृढ़ता से अमल बहुत जरूरी है। नहीं तो फिर छत्तीसगढ़ जैसे वाकये ही होंगे जहां पार्टी के नेता ही पार्टी को हराएंगे। और उसका नुकसान कांग्रेस पार्टी से ज्यादा देश को होगा क्योंकि लोकतंत्र की मजबूती के लिए उसे एक मजबूत विपक्ष चाहिए।

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