व्यंग्य राही की कलम से
अगर आप मोदी और महंगाई के बीच रिश्ते की तलाश करें तो वह भाई-बहन का निकलेगा। मोदी भाई जब दो बरस पहले चुनावी सभाओं में भाषण देते तो कसम से हम भी टीवी में दिखती हजारों की भीड़ के साथ ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाने लगते। हमारी ये हरकत देखकर श्रीमतीजी कहती- हर बात में जल्दी करते हो। थोड़ी थावस रखो।
अगर नरेन्द्र भाई ने महंगाई पर लगाम लगा दी तो मैं भी मोदी भाई के गुण गाऊंगी। उस वक्त लगता कि अगर मोदी भाई आ गए तो कसम से साल-दो-साल में सारा देश बदल डालेंगे। छह महीने में काला धन ले आएंगे। साल भर में कश्मीर का आतंकवाद खत्म कर देंगे। डेढ़ साल में भ्रष्टाचार खत्म कर देंगे। दो साल में पच्चीस रुपए में एक डालर मिलने लगेगा। सवा दो साल में बेरोजगारी मिटा देंगे।
अपने गले की कसम भाइयों, हमारे मन में ये सारी आशाएं हमें नरेन्द्र भाई मोदी के भाषण सुन-सुन कर ही जगी थी। लेकिन हाय। कसम से दिल टूट गया। अब तो कहने को जी करता है कि भाई तुम भी वही निकले जो पहले वाले थे। वे एक ‘खानदान’ (गांधी-नेहरू) के लिए पचते हैं तुम भी एक परिवार (संघ) के लिए समर्पित हो। कांग्रेस चाहती थी कि ‘भाजपा’ देश से मिट जाए, तुम चाहते हो देश ‘कांग्रेस’ से मुक्त हो जाए। इन दो सालों में जितना वक्त ड्रेस बदलने में लगाया उतना महंगाई कम करने में लगाते तो चने की दाल सौ रुपए पार नहीं जाती।
यह मत समझना कि हम चाहते हैं कि एक बार फिर से यूपीए का घोटाला राज वापस आ जाए। आपने अपने सांसदों से कहा है कि पन्द्रह से बाईस अगस्त तक तिरंगालेकर वे आपकी सरकार की उपलब्धियों को गिनाये। बेहतर होता कि आप उनसे कहते कि महंगाई कम करने में जुट जाओ। हमें बुलेट ट्रेन नहीं बस सस्ती दाल, सस्ती सब्जी, सस्ता अनाज, सस्ते घर, सस्ते कपड़े चाहिए। आप जैसे शानदार कुरते जाकट पहन कर कौन हमें बारातों में जाना है। हमें तो चैन से जीना है बस।