भाजपा ने अपने घोषणपत्र में उत्तर प्रदेश के किसानों के ऋण माफ करने का ऐलान किया है तो इस वायदे को पूरा करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, केंद्र की नहीं। कृषि मंत्री के बयान के बाद भाजपा शासित राजस्थान, महाराष्ट्र और हरियाणा में सुगबुगाहट शुरू हो गई है।
उत्तराखंड में भी भाजपा और पंजाब में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में कर्ज माफी का वादा किया है। उधर कर्ज वसूली की समस्या से जूझ रहे बैंक इस प्रस्ताव से सहमे हुए हैं। बैंकों का ‘बैड लोन’ 16.6 फीसदी की खतरनाक सीमा पर पहुंच चुका है।
एसबीआई का साफ कहना है कि इससे कर्ज अनुशासन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। देश की लगभग आधी आबादी खेती और संबंधित कार्यों से जुड़ी है, लेकिन जीडीपी में उसका योगदान मात्र 12 फीसदी है।
सरकार द्वारा देश के किसानों पर 12.6 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। इसमें छोटे और सीमांत किसानों का हिस्सा करीब 50 फीसदी है। सब जानते हैं कि अधिकांश छोटे किसान बैंकों से नहीं, साहूकारों से कर्ज लेते हैं। इसलिए सरकारी कर्ज माफी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल पाता।
किसान आत्महत्या आंकड़ों पर नजर डालने से छोटे किसानों के दर्द को बेहतर समझा जा सकता है। देश भर में आत्महत्या करने वाले किसानों में 44.5 प्रतिशत छोटे काश्तकार, 27.9 फीसदी सीमांत, 25.2 फीसदी मझोले किसान और मात्र 2.3 फीसदी बड़े जमींदार।
बैंकों से कर्ज लेने वाली एक दूसरी श्रेणी में बड़े-बड़े उद्योग और कॉर्पोरेट हैं। जो बरसों से लिया खरबों रुपये का कर्ज नहीं लौटा रहे। इस साल के आर्थिक सर्वे में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने ‘बैड बैंक’ का आइडिया उछाला है।
इसे फंसी पड़ी सारी रकम से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। दक्षिण भारत सूखे के संकट में है फिर वहां के किसानों की कर्ज माफी की मांग की अनदेखी कैसे हो सकती है? बड़े उद्योगपतियों द्वारा जानबूझकर कर्ज न लौटाने पर मौन रहने वाली जमात ने किसानों की कर्ज माफी का हर बार विरोध किया है और इस दफा भी उनका रवैय्या वैसा ही है।
बैंकों की दुर्दशा और देश की आर्थिक स्थिति का हवाला देकर वे सरकार पर दबाव बना रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार इस दबाव का सामना कैसे करती है?