सरकार ने भी रक्षा मंत्री और तमाम रक्षा विशेषज्ञों (सैन्य अधिकारियों समेत) को मैदान में उतार दिए। जनता के मस्तिष्क में बैठा दिया, कार्रवाई जरूर हुई। कितने आतंकी मरे, यह पाकिस्तान गिने। सेना बम दागती है, शव नहीं गिनती। भाजपा ने एक तरह से विपक्ष के हमले को नाकाम कर दिया। इसका तोड़ राहुल गांधी लेकर आए और यकायक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला न्याय योजना की घोषणा कर दी कि इसके तहत देश के ५ करोड़ गरीब परिवारों को 72 ,000 रुपए सालाना दिए जाएंगे। जनता पर इस अचूक अस्त्र का असर दिखने लगा ही था कि अचानक एक दिन खबर आई कि प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करेंगे। चारों ओर कयास लगाए जाने लगे कि मोदी क्या कहेंगे? नोटबंदी और जीएसटी से त्रस्त लोगों में आशंकाएं फैल गईं। मोदी राष्ट्र से मुखातिब हुए, अंतरिक्ष में भारत के महाशक्ति बनने की घोषणा लेकर। विपक्ष का एक और तीर नाकाम हो गया। आरोप लगाए गए कि इसरो की सफलता का राजनीतिकरण किया जा
रहा है। कुछ भी हो, मोदी न्याय योजना से देश का ध्यान हटाने में सफल रहे।
कुल मिलाकर इस बार महाचुनाव ने महाभारत की याद दिला दी। जहां दोनों सेनाओं के महारथी एक से बढ़कर एक अस्त्र चलाते तो प्रतिपक्षी जवाबी तीर से उसे काट देते थे। मतदाता भी आज किंकर्तव्यविमूढ़ होकर जुबानी तीर चलते देख रहा है। वह असहाय है। आक्रोशित भी है। क्योंकि उसके हित की बात कोई नहीं कर रहा है। सत्ता के सौदागर हर सीट पर बोली लगा रहे हैं। जादूई संख्या पाने की होड़ लगी है। जीत की जंग में किसान, बिजली, पेयजल, सड़कें, रोजगार, गरीबी, विकास सब दरकिनार कर दिए गए हैं। देश आर्थिक विकास में कितना पिछड़ गया है। बेरोजगारी और मुद्रास्फीति के आंकड़े दहशत पैदा करते हैं। लेकिन हमारे कर्णधार ‘राष्ट्रभक्ति’ और ‘भ्रष्टाचार’ की तलवारें भांज रहे हैं। इनकी धार आमजन पर कितना असर करेगी, 23 मई को जनादेश जगजाहिर कर देगा।