मैं गुजरात में नर्मदा नदी के साधु बेट टापू पर बनाई गई सरदार वल्लभभाई पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची उस प्रतिमा के सामने हूं, जिसे देखकर हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊंचा है। इस प्रतिमा के पीछे बसे कई गांवों और आणंद के निकट खुद सरदार पटेल के पैतृक गांव करमसद के ग्रामीणों का दर्द इस प्रतिमा को देखने के लिए उमड़ रहे सैलानियों के लिए भले ही कोई मायने न रखता हो, लेकिन इस देश के किसान, आदिवासी की गुरबत की एक बानगी जरूर है।
करमसद के ग्रामीण बताते हैं कि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी खुद करमसद को केंद्र से विशेष दर्जा दिलवाने के लिए इस गांव के लोगों के साथ खड़े थे। स्थानीय निवासी मिथिलेश अमीन ने सरदार पटेल के पुश्तैनी मकान के परिसर में बातचीत करते हुए कहा कि पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बनने से देश और दुनिया में खूब चर्चा हुई, लेकिन करमसद को उतना फायदा नहीं मिल पाया। अमीन पहले भाजपा संगठन में पदाधिकारी थे लेकिन बाद में भाजपा छोड़ दी। केतन पटेल व अमित वाघेला ने बताया कि लोग पटेल के गांव की उपेक्षा से दुखी है।
गांव को विशेष दर्जा मिले तो विकास तो होगा ही सरदार पटेल की विरासत देखने देश दुनिया के लोग आएंगे। अतुल परमार का कहना था कि सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए करमसद से कोसों दूर सरदार की प्रतिमा लगवाई है। इसके प्रति गुजरात के लोगों ने अपनी भावनाओं की झलक विधानसभा चुनाव में दिखा दी थी। लोकसभा चुनावों में भी इसका असर दिख सकता है।
बहरहाल, करमसद के मुख्य चौराहे पर लगी सरदार पटेल की छोटी सी प्रतिमा और गांव के लोग करमसद को विशेष दर्जा दिए जाने की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। लोगों का कहना है सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा बनाने के संकल्प पर काम शुरू करते समय नर्मदा नदी के आसपास के किसानों और आदिवासियों के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। केवडिय़ा में सरदार सरोवर बांध देखने आने वाले सैलानियों के सहारे चलने वाली चाय-नाश्ते की छोटी-छोटी थडिय़ां चलाने वाले लोग अब ग्राहकों को तरस रहे हैं। ऐसी ही एक थड़ी चलाने वाली संगीता बेन ने बताया कि पहले प्रवासी अपनी गाडिय़ों पर आते थे तो यहां रुक कर चाय नाश्ता करते थे तो हमारा गुजारा चल जाता था मूर्ति लगने के बाद सरकार ने ठेके पर बड़ी-बड़ी बसें लगा दी है। प्रवासियों को बांध और मूर्ति से काफी दूर रोक कर उनकी गाडिय़ां वहीं पर रखवा दी जाती है और बसों में बिठा कर बांध और मूर्ति तक ले जाया जाता है।
ऐसे में ग्राहक उनकी दुकानों पर नहीं आते। दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा को देखने के लिए रोजाना देशभर से भीड़ उमड़ रही है। पूरा परिसर मोदी मय है। भरूच से मूर्ति स्थल तक पहुंचने के लिए चमाचम सडक़ बनी है। सैलानियों की भारी आवक के मद्देनजर मूर्ति के आसपास व्यावसायिक गतिविधियों के लिए बड़े पैमाने पर गरीब आदिवासियों की जमीनें अधिगृहित की जा रही है। जब मैं केवडिय़ा पहुंचा तो इसका अंदाजा लगा।
आदिवासियों और पुलिस के बीच भिड़ंत ही चल रही थी। इस बारे में जब पूछा गया तो ग्रामीणों ने बताया कि केवडिय़ा गांव की जमीन पर श्रेष्ठ भारत भवन का निर्माण हो चुका है और सरकार की इस गांव में हर राज्य का भवन बनाने की योजना है। उसी के तहत आज जिला कलक्टर हरियाणा भवन के लिए चिन्हित जमीन का कब्जा लेने के लिए लवाजमे के साथ आए हुए थे। बदहवास आदिवासी महिला पुरुष इसका विरोध करने जुटे थे। मौके पर काफी भीड़भाड़ हो गई थी। इस दौरान कुछ युवकों ने पुलिस पर पत्थर फेंक दिए और इसके जवाब में पुलिस को भी हल्का बल प्रयोग करना पड़ा।
मामला बढ़ता देख कलक्टर कार्यवाही स्थगित कर लौट गए। पुलिस के जाने के बाद मौके पर गुस्साई महिलाओं और युवकों की भीड़ वापस आ जुटी। एक महिला विमला बेन ने बताया कि हम मर जाएंगे मगर हमारी जमीन नहीं देंगे। हमारी जमीन चली जाएगी तो हम हमारे बच्चों को कैसे पालेंगे। मूर्ति निर्माण के दौरान भी हमारे बच्चों को काम नहीं दिया गया, पढ़े लिखे युवकों को सफाई का काम दे रहे हैं।
एक पढ़े लिखे युवक कांति भाई ने बताया कि हमारी जमीनें संविधान की पांचवीं अनुसूची में आती है। उसका किसी अन्य उपयोग के लिए अधिग्रहण ग्राम पंचायत की अनुमति के बिना सरकार भी नहीं कर सकती। इस बारे में केवडिय़ा सरपंच भीका भाई से बात करनी चाही तो पहले वह बोले कि गांव के कुछ लोग नकारात्मक सोच रखते हैं। लेकिन जैसे ही हमने कैमरा निकाला तो उन्होंने बात करने से ही इनकार कर दिया। यह घटना तो बानगी भर है केवडिय़ा ही नहीं कोठी, भूमलिया, वघाडिय़ा, लिम्बडी, नवगाम, गोरा आदि कई गांवों के आदिवासी पग-पग पर सुरक्षा बलों की रोक-टोक से भी परेशान हैं, अपने ही घर में जाने के लिए उनको आए दिन झिड़कियां खानी पड़ रही है।
एक दर्जन से ज्यादा लोस सीटों पर भाजपा मुश्किल में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी स्थल के ये हालात और करमसद के लोगों की पीड़ा से पूरे इलाके में जनता की परेशानियां बढ़ा रही है। विधानसभा चुनावों में बाल-बाल बची भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 26 में से 26 सीटें जीतने का कारनामा दोहरा देगी, ऐसा भाजपा के लोग भी नहीं कहते। पार्टी के ही अंदरुनी सर्वे में 26 में से 12 से 14 सीटें खतरे में बताई गई हैं। हालात की गंभीरता को भांपते हुए भाजपा सतर्क हो गई है।
कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि ये करो या मरो का चुनाव है पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना पानीपत की लड़ाई से की है। शाह के अनुसार अगर चुनाव में हमारी हार होती है तो यह पानीपत की लड़ाई में मराठाओं की हार की तरह होगी। वाकई खासकर गुजरात में तो यह नाक की लड़ाई ही लग रही है। इसी के लिए भाजपा को गत विधानसभा चुनाव में प्रचार के आखिरी तीन दिन पूरी ताकत लगानी पड़ी थी। पार्टी के तेवर से लगता है कि इस बार भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाएगी। सभी नहीं तो कांग्रेस के मुकाबले डेढ़ी सीटें हासिल करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
इधर, पीएम मोदी ने खुद जोरशोर से लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर काम शुरू कर दिया है। तीन तलाक, आरक्षण, राफेल, औद्योगिक घरानों से जुड़े बैंकों के कर्जदारों, किसानों के विषय पर पूरी तैयारी के साथ पार्टी मैदान में उतरने वाली है। गुजरात में लोकसभा की 8 शहरी सीटों पर तो भाजपा की स्थिति मजबूत है। गत विधानसभा चुनावों में भी इन शहरी सीटों ने ही भाजपा की नैय्या पार लगाई थी। शेष 18 सीटों में से सौराष्ट्र की कुल 8 में से 6 सीटों राजकोट, सुरेंद्रनगर पोरबंदर, जूनागढ़, जामनगर व अमरेली में जीत हासिल करने के लिए भाजपा को नाकों चने चबाने होंगे। इसी तरह उत्तरी गुजरात की 5 में से 3 सीटों मेहसाणा, पाटण व साबरकांठा में राह आसान नहीं लगती।
मध्य गुजरात में 9 में से 5 आणंद, भरूच, छोटा उदयपुर, पंचमहल, दाहोद सीटें भाजपा के लिए मुश्किल लग रही हैं। दक्षिण गुजरात जरूर भाजपा का अभेद्य गढ़ बना हुआ है जहां की तीनों सीटों नवसारी, सूरत व वलसाड़ में उसकी जीत में कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही है।नोटबंदी व जीएसटी के सवाल पर आणंद में व्यापारी महेश भाई का कहना था कि सरकार के कदमों से उन लोगों को परेशानी है जो दो नंबर का काम करते हैं। एक नंबर का काम करने वालों को तो आसानी हुई है। हालांकि, वह यह भी जोड़ देते हैं कि भाजपा को पिछली बार की तरह एक तरफा जीत नहीं मिल पाएगी।
भाजपा से नाराजगी पर खुश है कांग्रेस भाजपा के लिए खुश होने की बात यह है कि गुजरात में कांग्रेस पार्टी आलाकमान के पुरजोर प्रयासों के बावजूद एक नहीं हो पा रही है। कांग्रेस के नेता तीन राज्यों में मिली सफलता से खुशफहमी में हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस नेता जनता में भाजपा के प्रति नाराजगी पर ज्यादा आस लगाए बैठे हैं। भरूच शहर कांग्रेस प्रमुख विक्की शोकी का कहना है कि लोग भाजपा और मोदी से नाराज हैं, इसलिए कांग्रेस को फायदा होगा। भाजपा को पहले जितनी सीटें नहीं मिल पाएगी। जो खोएगी, भाजपा खोएगी और जो पाएगी, कांग्रेस पाएगी।
उनका कहना है कि आधी सीटें आ सकती है बशर्ते पार्टी विधानसभा चुनावों की तरह टिकट वितरण में कोई गड़बड़ झाला न कर दे। कांग्रेस से जुड़े एक नेता किरण भाई का कहना था कि कांग्रेस में इस बार काफी समय बाद उत्साह का माहौल है और इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा।