ओपिनियन

अकेलापन

यहां भी वही “बकवास”। वही चेहरे, वही मोहरे, वही, बहस, वही तर्क
-कुतर्क जो पहले हुआ करते थे। बस ऎंकरनी बदल गई।

Jul 31, 2015 / 11:10 pm

शंकर शर्मा

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