‘एकांत’ या ‘अकेलापन’-
जापान में ‘कोडोकु’ शब्द ‘एकांत’ और ‘अकेलेपन’ दोनों के लिए इस्तेमाल होता है और समाज में दोनों के बीच का अंतर धुंधलाता जा रहा है। करीब 10 लाख लोग बाकी दुनिया से अलग अपने में ही सिमट कर रह रहे हैं। आधुनिक युग के इन एकांतवासियों को ‘हिकिकोमोरी’ नाम जापानी मनोवैज्ञानिक तमाकी साइतो ने 1998 में दिया था। हाल ही एक गेम डवलपर और यूट्यूबर नितो सूजी इसलिए खबरों में था, क्योंकि तथ्य सामने आया कि वह दस साल से अपने घर से नहीं निकला है। दरअसल, अपनी शैक्षणिक और रोजगार संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं में नाकाम लोग ‘हिकिकोमोरी’ का जीवन जीने लगते हैं। कुछ किताबों और फूड ड्रामा ‘द लोनली गुर्मे’ ने भी जापान की इस समस्या को महिमामंडित करने में कसर नहीं छोड़ी है।
26 प्रतिशत महिला कर्मचारी प्रभावित –
रोजगार छिनने और घर पर रहने जैसी हिदायतों ने समस्या बढ़ा दी है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अधिक बेरोजगार हुईं। एक सर्वे के अनुसार, 26 फीसदी महिला कर्मचारियों को अप्रेल से ही नौकरी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, जबकि ऐसे पुरुष 19 प्रतिशत ही थे। सितम्बर 2020 में कई जापानी एक्टरों ने खुदकुशी की, जिसके बाद अक्टूबर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या अक्टूबर 2019 की तुलना में 90 प्रतिशत बढ़ गई।
मंत्री ने मददगारों से मांगे सुझाव-
साकामोतो की नियुक्ति से जाहिर है कि सरकार इस समस्या को गंभीरता से ले रही है और नीतिगत मोर्चे पर काम कर रही है। इससे पूर्व ब्रिटेन ने अकेलेपन से निपटने के लिए एक मंत्री की नियुक्ति की थी। साकामोतो ने नियुक्ति के बाद कहा – ‘उन लोगों की राय का स्वागत है, जो अकेलेपन और अवसाद से जूझ रहे लोगों की मदद कर रहे हैं।’ जापान ने19 फरवरी को ही आत्महत्या और बाल गरीबी जैसी समस्याओं से निपटने के लिए अकेलापन रोधी विभाग बनाया है।
कारोशी –
जापान में अकेलेपन की एक बड़ी वजह काम के अधिक घंटे भी हैं, जिससे वे अपने परिवार व दोस्तों के साथ समय नहीं बिता पाते। श्रम कानून के बावजूद 2016 के एक सरकारी सर्वे में सामने आया कि 25 प्रतिशत से अधिक जापानी कंपनियां हर महीने अमूमन 80 घंटे के ओवरटाइम की मांग करती हैं।
कोडोकुशी –
विशेषज्ञों का मत है कि जापान में बढ़ती आत्महत्याओं की वजह अकेलेपन की संस्कृति है। देश की 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 65 साल से अधिक उम्र वालों की है। एक बड़ा वर्ग महसूस करता है कि उनका न कोई साथी है, न जरूरत पडऩे पर कोई मददगार। चूंकि बुजुर्ग ज्यादा मेल-मिलाप नहीं कर पाते, कई अकेलेे ही मर जाते हैं और उनके शव कई दिन बाद मिलते हैं। इसे ‘कोडोकुशी’ यानी ‘अकेलेपन से मौत’ कहते हैं।