बीते वर्ष कोरोना संक्रमण के फैलते ही विश्व भर में लगे लॉकडाउन में सबसे ज्यादा असर स्त्रियों पर ही पड़ा। दुनिया भर में घरेलू हिंसा के बढऩे की खबरें आईं। भारत में यह स्थिति अपने चरम पर थी। इस वर्ष जहां आंशिक तालाबंदी होने के बाद भी स्त्रियों की स्थिति और कमजोर हुई है। असंगठित क्षेत्रों, घर, कारखानों में काम करने वाली कामगार औरतें बड़ी संख्या में बेरोजगार हुई हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण परिवार में उनकी स्थिति और बिगड़ गई है। परिवार में होने वाले शक्ति संतुलन के खेल में उनकी स्थिति सबसे निचले दर्जे की पहले भी थी, काम के घटते अवसरों ने उनकी स्थिति बदतर कर दी है और भविष्य में ठोस योजनाओं के अभाव में इस स्थिति के और विकट होने के ही आसार हैं। बढ़ती बेरोजगारी, अवसाद, भविष्य की चिंता के बीच शराब के ठेके खोल दिए जाने का सबसे हानिकारक प्रभाव स्त्रियों पर ही पड़ा और उनके ऊपर हिंसा बढ़ती गई।
आपदा के इस समय में स्त्रियों के लिए विशेष रोजगार की व्यवस्था, असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कामगार औरतों के लिए ठोस योजनाएं, घरेलू हिंसा से निपटने के लिए प्रभावी उपाय, स्त्री स्वास्थ्य संबंधी विशेष प्रबंध किए बिना स्त्री सशक्तीकरण और बेटी बचाओ का नारा अधूरा ही रह जाएगा। स्त्रियां अपनी आर्थिक और मानसिक स्वतंत्रता के जिस रास्ते पर मुश्किल से आगे बढ़ी हैं, वह फिर से शोषण के अंधेरों में गुम हो सकता है।