scriptआधी आबादी: स्त्री सशक्तीकरण पर लंबे लॉकडाउन का खतरा | Loss of long lockdown on women empowerment | Patrika News
ओपिनियन

आधी आबादी: स्त्री सशक्तीकरण पर लंबे लॉकडाउन का खतरा

महिलाओं का रिश्ते और परिवार के नाम पर भी शोषण ।स्त्रियां आर्थिक और मानसिक स्वतंत्रता के जिस रास्ते पर मुश्किल से आगे बढ़ी हैं, वह फिर से शोषण के अंधेरों में गुम हो सकता है।

नई दिल्लीMay 24, 2021 / 02:28 pm

विकास गुप्ता

आधी आबादी: स्त्री सशक्तीकरण पर लंबे लॉकडाउन का खतरा

आधी आबादी: स्त्री सशक्तीकरण पर लंबे लॉकडाउन का खतरा

रश्मि भारद्वाज (लेखक, अनुवादक, स्त्री विमर्श पर लेखन)

बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसमें एक स्त्री ऑक्सीजन मास्क लगाए खाना बना रही थी। तस्वीर का कैप्शन था, ‘मां का प्यार बेइंतहा होता है।’ तस्वीर पर लोगों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं रहीं। ज्यादातर स्त्रियों ने सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना की, तो परिवारों के वाट्सऐप समूहों में इसे आदर्श स्थिति की तरह साझा किया गया। कहना नहीं होगा कि आपदा के समय में तो रिश्तों के नाम पर स्त्री पुरुष के बीच किए जाने वाले सभी तुच्छ लैंगिक पक्षपात को स्वत: नष्ट हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस तरह की तस्वीर को यह कहकर साझा किया गया कि एक मां की ड्यूटी कभी नहीं खत्म होती। यह स्थिति स्त्रियों के मानसिक और शारीरिक शोषण की सदियों से चली आ रही दास्तां बयां करती है। दुर्भाग्य है कि अधिकांशत: यह शोषण रिश्ते और परिवार के नाम पर ही होता है, जो आपदा में खत्म होने की बजाय बढ़ गया है। अब एक और आंकड़े पर ध्यान दें। विश्व भर में कोरोना वायरस से जहां पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की मृत्यु दर कम है, भारत में इसके विपरीत स्त्रियों की मृत्यु दर अधिक है। इसमें भी किशोरियों और बच्चियोंं की संख्या अधिक है। कारण स्पष्ट हैं- चिकित्सा सुविधा, पौष्टिक भोजन, देखभाल की कमी।

बीते वर्ष कोरोना संक्रमण के फैलते ही विश्व भर में लगे लॉकडाउन में सबसे ज्यादा असर स्त्रियों पर ही पड़ा। दुनिया भर में घरेलू हिंसा के बढऩे की खबरें आईं। भारत में यह स्थिति अपने चरम पर थी। इस वर्ष जहां आंशिक तालाबंदी होने के बाद भी स्त्रियों की स्थिति और कमजोर हुई है। असंगठित क्षेत्रों, घर, कारखानों में काम करने वाली कामगार औरतें बड़ी संख्या में बेरोजगार हुई हैं। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण परिवार में उनकी स्थिति और बिगड़ गई है। परिवार में होने वाले शक्ति संतुलन के खेल में उनकी स्थिति सबसे निचले दर्जे की पहले भी थी, काम के घटते अवसरों ने उनकी स्थिति बदतर कर दी है और भविष्य में ठोस योजनाओं के अभाव में इस स्थिति के और विकट होने के ही आसार हैं। बढ़ती बेरोजगारी, अवसाद, भविष्य की चिंता के बीच शराब के ठेके खोल दिए जाने का सबसे हानिकारक प्रभाव स्त्रियों पर ही पड़ा और उनके ऊपर हिंसा बढ़ती गई।

आपदा के इस समय में स्त्रियों के लिए विशेष रोजगार की व्यवस्था, असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कामगार औरतों के लिए ठोस योजनाएं, घरेलू हिंसा से निपटने के लिए प्रभावी उपाय, स्त्री स्वास्थ्य संबंधी विशेष प्रबंध किए बिना स्त्री सशक्तीकरण और बेटी बचाओ का नारा अधूरा ही रह जाएगा। स्त्रियां अपनी आर्थिक और मानसिक स्वतंत्रता के जिस रास्ते पर मुश्किल से आगे बढ़ी हैं, वह फिर से शोषण के अंधेरों में गुम हो सकता है।

Home / Prime / Opinion / आधी आबादी: स्त्री सशक्तीकरण पर लंबे लॉकडाउन का खतरा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो