गांधी से हमारी आपकी अनेक असहमतियां हो सकती हैं पर गांधी के जीवन के कुछ पक्ष ऐसे हैं जो गांधी को आदर्श मानने वाले नेताओं को आईना दिखाने को काफी हैं। जनप्रिय नेता और गांधीवादी कहलाने के लिए भाषण और जनहितैषी दिखना या दिखाना गांधी के संदर्भ में ढकोसला है। जनता के बीच में सत्य, ईमानदारी और निर्भीकता से सक्रिय होकर काम करना और काम करते हुए अपनी जान की परवाह न करना गांधी को ‘गांधी’ बनाता है और आज गांधी के आदर्शों की दुहाई देने वालों को छद्म आवरण का भाग बनाता है।
गांधी अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसे पहलुओं को उद्घाटित करते हैं जिनसे वैश्विक महामारी कोविड-19 का सामना कर रही जनता एवं नेतृत्व को समझने की जरूरत है। गांधी की आत्मकथा का छठा भाग किसी भी पाठक को रोमांचक अनुभव का हिस्सा बना देता है। गांधी १८ दिसम्बर १८४७ को दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित बंदरगाह पर पहुंचते हैं। वे जब समुद्री जहाज में बम्बई से सवार हुए थे तो बम्बई में उस वक्त प्लेग फैल चुका था। दक्षिण अफ्रीका के समुद्री बन्दरगाह पर यात्रियों को उतरने की अनुमति नहीं थी। उतरने के पूर्व यात्री की अनिवार्य सम्पूर्ण चिकित्सकीय जांच की जाती थी। यदि जहाज पर कोई यात्री किसी भी बीमारी से संक्रमित है तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए ‘क्वारन्टाइन’ किया जाता था।
गांधी को भी भय था कि प्लेग चूंकि फैला हुआ है अत: उन्हें भी कुछ अवधि के लिए ‘क्वारन्टाइन’ किया जा सकता है। डॉक्टर ने गांधी की जांच की तो उन्हें पांच दिन के लिए ‘क्वारन्टाइन’ कर दिया गया। डॉक्टर का मत था कि प्लेग के कीटाणु अधिक से अधिक तेईस दिन तक जिंदा रह सकते हैं इसलिए आदेश दिया गया कि पूरे जहाज को बम्बई छोडऩे के बाद तेईस दिन की अवधि होने तक नाविकों एवं यात्रियों सहित क्वारन्टाइन कर दिया जाए। जिस जहाज ने लंगर डाला उस पर पीला झंडा लगा दिया जाता था। डॉक्टरी जांच के बाद डॉक्टर की स्वीकृति के बाद झंडा उतार दिया जाता था।
हम उपरोक्त प्रकरण से समझ सकते हैं कि किसी भी महामारी जिससे संक्रमण का भय हो को फैलने से रोकने के लिए नियमों की कठोरता से पालना एवं सम्पूर्ण डॉक्टरी जांच के बाद यात्री को ‘क्वारेन्टाइन’ करना अनिवार्य है। क्या कोविड-19 वैश्विक महामारी पर नियंत्रण करने वाले वर्तमान नेतृत्व ने गांधी की आत्मकथा के पक्षों को गंभीरता से लिया?
आत्मकथा का आगे का भाग यह बताता है कि ‘क्वारेन्टाइन’ किये जाने का एक अन्य कारण गोरे डरबन निवासियों का वह आन्दोलन था जो गांधी एवं उनके सहयोगियों की वापसी को लेकर था। इस आन्दोलन को करने वाले आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न लोग थे। जहाज के यात्री इस कारण भयभीत थे पर निर्भीक गांधी इन यात्रियों को धीरज बंधाते थे। साथ ही छोटी-छोटी सभाओं के द्वारा अहिंसा, प्रेम, सद्भाव, समूह सहभागिता, करूणा और सेवा के मूल्यों से संचालित गांधी दक्षिण अफ्रीका में अपनी भूमिका की सार्वजनिक प्रस्तुति करते हैं।
एक तरफ गांधी अपने सहयोगी दादा अब्दुल्ला, वकील मिस्टर लाटन के साथ मिलकर गोरे लोगों की धमकियों का साहस एवं निर्भीकता से मुकाबला कर रहे थे, वहीं डॉक्टर बूथ द्वारा संचालित चैरिटेबल अस्पताल में नर्सिंग की भूमिका निभाते हुए बीमार भारतीयों की सेवा कर रहे थे। बोअर युद्ध के दौरान गांधी ने अपने सहयोगियों के साथ घायलों की सेवा करने के लिए एक टुकड़ी का गठन किया और इस सेवा से वहां भारतीयों की प्रतिष्ठा बढ़ी। भारतीयों के मध्य इस प्रयास से एकजुटता उत्पन्न हुई। गांधी यह विचार भी व्यक्त करते हैं कि दुख की स्थितियां मानव स्वभाव को पिघलाती भी हैं। पर गांधी का यह विचार कोविड-19 की इस महामारी के दौरान उतना प्रभावी नहीं है क्योंकि स्वभाव की प्रकृति का निर्धारण वर्गीय जागरुकता एवं बाजार से होने लगा है। वर्तमान नेतृत्व का मूलयांकन इस संदर्भ में किया जा सकता है।
दक्षिण अफ्रीका के दो उदाहरण कोविड-19 से मुकाबले के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। भारतीयों पर आरोप था कि वे अपने घर साफ नहीं रखते और गंदे रहते हैं। डरबन में जब प्लेग का डर था गांधी ने घूम -घूम कर सफाई अभियान चलाया। इस अभियान ने गांधी की सहभागिता के कारण एक आंदोलन का रूप ले लिया। गांधी का कुछ जगहों पर अपमान भी हुआ पर धीरज रखना गांधी की विशेषता थी। सफाई का महत्व स्वीकारा गया और गांधी की साख में वृद्धि हुई। गांधी की सहभागिता प्रदर्शन की वस्तु नहीं थी, जैसा आजकल स्वच्छता अभियान के दौरान नेतृत्व करता है। जनता एवं नेतृत्व का सम्बंध पारस्परिक विश्वास एवं समान स्तर की सहभागिता का होता है। जनता अनुकरणकर्ताओं के समूह से परे होती है की समझ ही नेतृत्व को जनतान्त्रिक बनाती है।
एक अन्य उदाहरण महामारी फैलने का है जो जोहान्सिवर्ग के आसपास फैली। गांधी जी ने अपने सहयोगियों के साथ निडर होकर बीमारों की सेवी की तईस बीमारों की सेवा में चार नौजवानों की तनतोड़ मेहनत एवं निडरता की गांधी भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं। साथ ही डॉक्टर गाडफ्रे की हिम्मत एवं भई मदनजीत के योगदान का उल्लेख करते हैं। गांधी जी चूंकि रोगियों की सेवा कर रहे थे अत: स्वयं दूसरों के कम से कम संपर्क में आने के ‘स्व नियम’ का कठोरता से पालन कर रहे थे। आज के संदर्भ में यही ‘फिजीकल/सोश्यल डिस्टेन्सिंग’ है। प्लेग की महामारी में भारतीय मूल के अतिरिक्त दक्षिण अफ्रीकन समाज के विभिन्न तबकों, जिसमें आयु, लिंग, धर्म, प्रजाति आदि सम्मिलित है, की सेवा गांधीजी एवं उनके सहयोगियों ने की। गांधी समानता के पक्षधर थे।
गोरों ने जब जुलू विद्रोहियों की सहायता से इन्कार कर दिया तो निस्वार्थ भाव से गांधी द्वारा उनके घावों को साफ करना, भारत में गांधी जी के द्वारा स्वयं कुष्ठ रोगियों की सेवा एवं जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए अस्पृश्य जातियों के लिए निर्धारित कार्यों को स्वयं करना वे उदाहरण हैं जो उस प्रारूप की रचना करते हैं जिससे विश्व की किसी भी महामारी से लड़ा जा सकता है।
कोविड-19 के कारण उत्पन्न इस संकटकाल में महात्मा गांधी की भूमिका उस ‘रोल मॉडल’ को निर्मित करती है जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। पर क्या नेतृत्व जनता के बीच में समस्त सावधानियां बरतते हुए उस साहस एवं निर्भीकता का प्रदर्शन कर सकता है जो गांधी ने दक्षिण अफीका एवं भारत में किया। सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा पुस्तक इस दौर में राजनेताओं को गम्भीरता से पढऩे की जरूरत है क्योंकि जनता को कैसे साथ लेकर महामारी का मुकाबला किया जाता है की यह पुस्तक प्रमाणिक दस्तावेज है।