जमा पूंजी : कानून और बुढ़ापे का भरण-पोषण
- मेंटीनेंस ट्राइब्यूनल में याचिका दायर कर अपनी संपत्ति पर पुन: काबिज हो सकते हैं

बेटे के कहने पर शर्मा जी ने उपहार पत्र द्वारा अपना मकान और खेत बेटे को दे दिया ताकि लोन लेकर मकान को नया बनवा सके, खेत का भी स्वतंत्र उपयोग कर सके। वसीयत करने में यह संभव नहीं था कि शर्मा जी के जीवित रहते इकलौता बेटा उनकी सम्पत्तियों का स्वतंत्र उपयोग कर ले, और बिना वसीयत शर्मा जी के बाद भी बेटे को पूरा स्वामित्व मां के जीवित रहते न मिलता, ऊपर से शर्मा जी के तिकड़मी साले साहब जो श्रीमती शर्मा को बरगला सकते थे। पूरी सम्पत्ति बेटे को समय से मिल जाए, और वो सही उपयोग कर सके इसलिए उपहार में दे दी। बदले में ये वचन लिया कि बेटा-बहू माता-पिता का जीवनभर खयाल रखेंगे और सुख-दु:ख में साथ रहेंगे।
कुछ समय बाद शर्मा जी को महसूस हुआ कि उनके स्वयं के ससुराल वालों के दखल को रोकने के चक्कर में बेटे के ससुराल वालों का दखल, उन्हें बेदखल करने की साजिश रच रहा है। अब बहू और बेटा उनका सही ध्यान नहीं रख रहे हैं, उन्हें कम उजाले वाला कमरा दे दिया गया है, फैमिली डॉक्टर बदल दिया गया है, कारण महंगी दवाएं और उसका क्लीनिक दूर होना। शर्माजी नए डॉक्टर के इलाज से संतुष्ट नहीं हैं और अब चाहते हैं कि किसी तरह यह उपहार पत्र निरस्त हो जाए।
कई बुजुर्ग दंपती इस स्थिति में हो सकते है , उनके लिए आज एक विशेष अधिनियम की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा - 'मेंटीनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007। इस अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत माता-पिता अगर ये पाते हैं कि उन्होंने अपनी सम्पत्ति जो उपहार या अन्य तरीके से अपनी संतानों को हस्तांतरित की है, लेकिन उन संतानों द्वारा उनका जीवनयापन आर्थिक या अन्य रूप से प्रभावित, प्रतिबंधित या बाधित किया जा रहा है, तो वे मेंटीनेंस ट्राइब्यूनल में याचिका दायर कर अपनी संपत्ति पर पुन: काबिज हो सकते हैं, उपहार तक शून्य किया जा सकता है। इस कानून में एक विशेषता और है कि अगर बुजुर्ग अपनी याचिका स्वयं दायर कर पाने में असमर्थ हैं, तो इस कानून के अंतर्गत पंजीकृत समाजसेवी संस्थान और समितियां उनकी ओर से याचिका दायर कर उन्हें हक दिला सकती हैं। इसलिए उपहार पत्र में कोई शर्त न भी हो, तब भी कानून आपके बुढ़ापे के भरण-पोषण का पूरा ध्यान रखता है।
- असीम त्रिवेदी
सीए, ऑडिटिंग एंड
अकाउंटिंग स्टैंडड स्टैंडर्ड, कानूनी मामलों के जानकार
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