रणनीतिक प्रबंधन प्रक्रिया में चार अहम चरण शामिल हैं, जिसमें सर्वप्रथम परिवेश और परिस्थितियों का गहन अध्ययन और संगठन की क्षमताओं, मजबूत व कमजोर पहलुओं का विश्लेषण कर एक रणनीति तैयार की जाती है। उद्देश्य और नीतियां तैयार होने के बाद प्रक्रिया ‘निष्पादन चरण’ में प्रवेश करती है, जहां इन नीतियों को लागू किया जाता है, और रणनीति-प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्ययोजना बनाई जाती है। इसके बाद परिणाम मापा जाता है और विभिन्न स्थितियों में किसी भी विचलन को उजागर करने, और रणनीति को अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के लिए संशोधित भी किया जाता है। प्रक्रिया को उन्नत बनाने में विस्तृत योजना पर ध्यान देना और सटीक मैट्रिक्स का उपयोग शामिल है। कई बार, इस दौरान रणनीति का सबसे अहम हिस्सा — व्यवहार संबंधी पहलू — नजरअंदाज कर दिया जाता है। किसी भी रणनीति की सफलता के लिए कर्मचारियों या इसमें शामिल हितधारकों का सहयोग-समर्थन जरूरी होता है। रणनीति चाहे कितनी भी उत्कृष्ट हो, कर्मचारियों की सहमति बगैर व्यर्थ हो सकती है। इसके विपरीत, यदि रणनीति के व्यावहारिक पहलू सावधानी से प्रबंधित किए जाएं, यह अपेक्षा से बेहतर परिणाम दे सकती है। जाहिर है कि भावनाएं किसी भी रणनीति को बना भी सकती हैं और बिगाड़ भी सकती हैं।