अनुमान है कि वर्ष 2022 तक भारत की जनसंख्या चीन से ज्यादा होगी और देश की कुल आबादी का 64 फीसदी हिस्सा कार्यशील होगा क्योंकि तब जनसंख्या की औसत आयु 29 वर्ष होगी। ऐसे में अधिक रोजगार की संभावनाएं तलाशनी होंगी और इसके सर्वाधिक अवसर निर्माण क्षेत्र में है।
सार्वजनिक क्षेत्र के शीर्ष उपक्रमों जैसे कोल इंडिया, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, एनटीपीसी , स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 2012 से लेकर 2016 तक इन कम्पनियों में रोजगार के अवसर काफी सीमित हो चुके हैं। इसका बड़ा कारण मशीनीकरण बताया गया है। इन उपक्रमों को लाभ में रहने के लिए लागत कम रखने के साथ ही आधुनिक तकनीक भी अपनानी पड़ती है।
वहीं, दूसरी ओर देश के बैंक भी आर्थिक दबाव और अन्य नियामक मजबूरियों के चलते घाटे में बने हुए हैं। खर्चे नियंत्रित रखने के लिए बैंक भी मशीनीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। कारण दिया जा रहा है कि इससे उत्पादकता बढ़ेगी और गलतियां भी कम से कम होंगी। देखा गया है कि १०० में से करीब ५ लेन-देन मानवीय त्रुटि का शिकार हो जाते हैं। ऐसी त्रुटियां लागत बढ़ाती हैं और ग्राहकों का भी बैंक पर से भरोसा कम हो जाता है।
यह आज के प्रतिस्पर्धी युग में बहुत मायने रखता है। पिछले सालों में बैंकों में भर्तियां कम हो गई हैं और जो हो भी रही हैं वे अग्रिम पंक्ति की होती हैं। मशीनीकरण के कारण बैक ऑफिस की नौकरियां काफी सिमट गई हैं। नौकरियों में यह कमी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों में साफ देखी जा सकती है।
यहां तक कि बैंक अपनी शाखाएं भी दिन-ब-दिन कम करते जा रहे हैं। बैंक अब ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंचकर उन्हें बैंकिंग प्रणाली और डिजिटाइलेजशन की जानकारी पर जोर दे रहे हैं। अगर हम पिछले १५ सालों में ऊंची विकास दर वाले सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की बात करें तो वह भी इन समस्याओं से अछूता नहीं हैं। अगले पांच साल में आईटी क्षेत्र के निचले स्तर की 6.4 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी।
मशीनीकरण से निचले स्तर की नौकरियां करने वाले मध्यम और उच्च स्तर की नौकरियों की ओर पलायन करेंगे जहां निर्णय क्षमता और अलग सोच की जरूरत होगी। इंफोसिस और कॉग्निजेंट जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को उच्च कौशल वाले जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन प्रशिक्षण की ओर प्रवृत्त कर रही हैं।
भारत ने पिछले कुछ सालों में अन्य देशों को परीक्षण और कॉल सेंटर जैसी सेवाएं सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाई हंै जिसमें अर्थव्यवस्था का बड़ा तबका कार्यरत है। भारत का आईटी उद्योग गरीब परिवारों के लिए गरीबी से निकलने की सीढ़ी बना हुआ था पर आधुनिक सॉफ्टवेयरों के चलते यह काम अब कम्प्यूटरों द्वारा न्यूनतम दरों पर हो रहा है।
हालांकि यह भी सच है कि भारत में इस तरह का मशीनीकरण होने में कम से कम १० साल और लगेंगे लेकिन यह होना तय है। इस बदलाव के लिए समय रहते तैयार रहना होगा। कम्पनियां अपने कर्मचारियों को बेसिक सॉफ्टवेयर की जगह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में प्रशिक्षित करने की और बढ़ रही हैं।
नवीन तकनीक में नौकरियां कम होने का खतरा तो बना ही हुआ साथ ही नौकरियों के लिए साइबर सिक्योरिटी, बिग डाटा, मशीन लर्निंग और क्लाउड कम्प्यूटिंग जैसे नए क्षेत्र खुलने की संभावना भी बनी है। आईटी पेशेवरों के लिए यह समय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
समय रहते उन्हें नवीन तकनीकों के अनुसार खुद को प्रशिक्षित करना होगा जिससे उनके रोजगार पर आंच न आए। विशेषज्ञों का मानना है कि मशीनीकरण से उच्च और निम्न स्तर की नौकरियों को कोई खतरा नहीं है। खतरा है तो मध्यम स्तर की नौकरियों को। सबसे बड़ी समस्या यही है कि देश में सर्वाधिक रोजगार मध्यम श्रेणी में ही है। और यह आबादी के बड़े हिस्से के लिए गरीबी से निकलने का जरिया बना हुआ है।
यहां तक कि कृषि मेें भी मानव श्रम का स्थान तेजी से मशीनें लेती जा रही हैं। फसलों की बुवाई से लेकर फल तोडऩे तक के काम मशीनें मानव से भी तेज गति से कर रही हैं। यहां तक खाद और कीटनाशक भी ड्रोन की मदद से छिडक़े जा रहे हैं। पश्चिमी देशों में कृषि कार्यों में मशीनों के उपयोग से अधिक उत्पादकता देखने को मिली है। भारत भी इसी राह पर है, भले ही थोड़ा देर से। देश में भी शीघ्र ही ये मशीनें उचित कीमत पर उपलब्ध होंगी।
यह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ाएगी। नौकरियों का भय सेवा क्षेत्र में ही नहीं है बल्कि यह अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करेगा। हमें युवाओं को आधुनिकीकरण की मांग के अनुरूप पुन: प्रशिक्षित करना होगा ताकि वे नई मशीनों का निर्माण कर सकें, उनका कुशलतापूर्वक संचालन कर सकें।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है तो युवाओं को ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में प्रशिक्षित कर उन्हें आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा।।