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सामयिक : दक्षिण एशिया में संकट कई, पर त्वरित हल नहीं

locationनई दिल्लीPublished: May 08, 2021 08:51:06 am

दुनिया की मौजूदा पारिस्थितिकी में यह लाजिमी है कि ऐसी भयावह स्थितियों से उबरने में तमाम देश एक-दूसरे की मदद को आगे आएं, लेकिन मुसीबत में फंसे देश के लिए सबक सीखना भी अत्यावश्यक है

सामयिक : दक्षिण एशिया में संकट कई, पर त्वरित हल नहीं

सामयिक : दक्षिण एशिया में संकट कई, पर त्वरित हल नहीं

अरुण जोशी

दक्षिण एशिया के सभी बड़े देश, विशेषकर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान अपने बड़े आकार, आकृति और परिमाण की वजह से समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि इनमें से किसी भी राष्ट्र के पास इस भंवरजाल, जिसमें वे फंसे हुए हैं, से निकलने का कोई आसान रास्ता नहीं है। उम्मीद ही की जा सकती है कि वर्तमान समय का उनका संघर्ष भविष्य के लिए उन्हें सीख देगा ताकि उनके सामने फिर इसी तरह की स्थिति न उत्पन्न हो।

चूंकि, भारत इस क्षेत्र के सभी देशों में सबसे बड़ा है, उसका संकट भी, उसकी आबादी और भौगोलिक आकार की वजह से बड़ा है। देश में समस्या बेबसी और कोरोना वायरस की है जिसकी वजह से सैकड़ों लोगों की जान गई और लाखों लोग प्रभावित हुए। सवालों की कोई कमी नहीं कि यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ, लेकिन तथ्य यह है कि स्थिति विकट है। और जिस किसी को भी इससे इनकार है, वह खुद को झूठी तसल्ली ही दे रहा है। संकट कितना गहरा है, इसकी पुष्टि के लिए यह तथ्य पर्याप्त हैं कि देश अब मेडिकल आपूर्ति, ऑक्सीजन, वेंटीलेटर समेत अन्य उपकरणों के लिए अमरीका, ब्रिटेन, सिंगापुर समेत अन्य कई दूसरे देशों पर निर्भर है। दुनिया की मौजूदा पारिस्थितिकी में यह लाजिमी है कि ऐसी भयावह स्थितियों से उबरने में तमाम देश एक-दूसरे की मदद को आगे आएं, लेकिन मुसीबत में फंसे देश के लिए सबक सीखना भी अत्यावश्यक है।

इस समय जरूरी है कि देश फिर कोताही न बरते। पहली बात यह कि महाशक्ति बनने का लक्ष्य साधने वाले भारत के लिए यह निर्भरता बहुत बड़ा धक्का है, और दूसरी बात यह कि घरेलू मोर्चे पर भी अपनों को मौत के मुंह में जाते हुए देख रहे लोगों का विश्वास बुरी तरह हिल गया है। जिस राष्ट्र में मुश्किलों से निकल सामान्य स्थिति में लौटने की असीम क्षमता हो, उसके आत्मविश्वास का इस तरह कमजोर होना अच्छा नहीं है। यह निश्चित है कि राष्ट्र प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देर-सबेर मौजूदा निराशाजनक स्थिति से उबरेगा, लेकिन इस बार, इस उम्मीद के साकार रूप लेने में कुछ वक्त लगेगा।

पड़ोसी देश पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कर्ज चुकाने में असमर्थ है और उसका सर्वकालिक मित्र चीन कर्ज दे-दे कर थक चुका है। इन सबके ऊपर, यूरोपीय संसद ने पाकिस्तान के खिलाफ एक अहम प्रस्ताव पारित किया है कि वहां सड़क से संसद और कार्यपालिका तक में चरमपंथी हावी हैं। इस प्रस्ताव के तहत 2014 में पाकिस्तान को दिए गए ‘जनरल स्कीम ऑफ प्रिफरेंसिस प्लस’ दर्जे की समीक्षा का फैसला किया गया है। इससे पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। इससे पहले कि पाकिस्तान आदतन क्षेत्र के अन्य देशों, विशेष रूप से भारत और अफगानिस्तान में आग भड़काने की किसी हरकत को अंजाम दे, समय रहते वैश्विक ताकतों, विशेषकर अमरीका और चीन को, उसे वश में करना होगा। दक्षिण एशिया में तीसरी समस्या अफगानिस्तान को लेकर बनी हुई है। अमरीकी सैनिकों की वापसी के चलते इस क्षेत्र को बहुत कुछ सहना होगा क्योंकि तालिबान और ज्यादा इलाकों को कब्जे में कर रहा है। यह 70 के दशक की याद दिला रहा है, जब अफगानिस्तान क्षेत्रीय और जातीय टुकड़ों में बंट गया था। हालांकि वह इससे कभी उबरा नहीं, लेकिन यह विभाजन पहले कभी इतना खौफनाक नहीं लगा।

(लेखक दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार हैं)

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