उच्चतम न्यायालय ने नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने को बलात्कार कानून का उल्लंघन माना है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय १८ साल से कम उम्र की लड़कियों को संरक्षित करने के साथ विवाहिताओं को समानता का हक देने के लिए पारित किया है। वैसे तो यह फैसला इसलिए अहम कहा जा सकता है ताकि कोई इस आयुवर्ग की लड़कियों की नादानी का गलत फायदा नहीं उठा पाए। हालांकि, यह बात सही है कि सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र सबके लिए एक ही होनी चाहिए, चाहे वह शादीशुदा हो अथवा नहीं। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में कुछ व्यावहारिक विसंगतियां सामने आ सकती हैं जिन पर भी विचार किया जाना चाहिए।
सोलह वर्ष से कम उम्र की लडक़ी से बनाए जाने वाले शारीरिक संबंधों को हर सूरत में बलात्कार माना जाता है और ऐसा होना भी चाहिए। लेकिन १६ से १८ वर्ष की उम्र के बीच की लड़कियां यदि सहमति से संबंध बनाती हैं तो उनको संरक्षण दिया जाना जरूरी है। हमारे समाज में इस उम्र तक आते-आते लडक़े-लड़कियां विवाह जैसे कदम उठा लेते हैं। ग्रामीण व शहरी दोनों इलाकों में घर से भाग कर विवाह करने, एक गौत्र में या विजातीय विवाह करने जैसी घटनाएं होती रहती हैं। ऐसे हालातों में सहमति के बावजूद कई परिजन लडक़े-लड़कियों के फैसलों से सहमत नहीं होते।
अपने भविष्य के बारे में आगा-पीछा सोच कर फैसला करने वालों को ऐसा संरक्षण तब ही मिलना चाहिए जब दोनों समान या आसपास की आयुवर्ग के हों। यानी दोनों के बीच उम्र का पांच साल से ज्यादा का अंतर नहीं हो। यानी १६ से १८ साल के बीच की नाबालिग लडक़ी यदि सहमति से भी अपने से पांच साल या इससे बड़े उम्र के व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाए तो उसे जरूर बलात्कार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। मसलन लडक़ी सत्रह साल की और पुरुष ४० साल का हो। हमने शादी की न्यूनतम उम्र पहले ही तय कर रखी है। बाल विवाह निषेध कानून में इस उम्र से पहले विवाह करने पर सजा का प्रावधान है। नाबालिग विवाहिता से संबंधों को भी बलात्कार मानने पर न्यूनतम दस साल तक की सजा का प्रावधान हैं।
इस तरह की व्यवस्था से तो उन लडक़ों पर ज्यादती हो जाएगी जो अपने समान वय में संबंध बनाते हैं। वैसे दुनिया के कई देशों में सहमति से संबंध बनाने की उम्र सोलह साल है। मैं अपने अनुभवों से कह सकती हूं कि कई बार लड़कियों को दबाव में लेकर उनके मां-बाप झूठे मामले दर्ज कराकर लडक़ों को फंसा देते हैं। वैसे सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ठीक है। नाबालिग लडक़ी की उम्र १८ साल से पहले की होनी चाहिए लेकिन फैसले से जुड़े दूसरे पहलुओं को भी देखना होगा।